2015-02-11 08:32:00

दैनिक मिस्सा पाठ


बुधवार- 11.2.15

दैनिक मिस्सा पाठ

पहला पाठ- उत्प.25-9,15-17

5) उस समय पृथ्वी पर न तो जंगली पौधे थे और न खेतों में घास उगी थी; क्योंकि प्रभु-ईश्वर ने पृथ्वी पर पानी नहीं बरसाया था और कोई मनुष्य भी नहीं था, जो खेती-बारी करें;  6) किन्तु भूमि में से जलप्रवाह निकले और समस्त धरती सींचने लगे। 7) प्रभु ने धरती की मिट्ठी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया। 8) इसके बाद ईश्वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगायी और उस में अपने द्वारा गढ़े मनुष्य को रखा। 9) प्रभु-ईश्वर ने धरती से सब प्रकार के वृक्ष उगायें, जो देखने में सुन्दर थे और जिनके फल स्वादिष्ट थे। वाटिका के बीचोंबीच जीवन-वृक्ष था और भले-बुरे के ज्ञान का वृक्ष भी।

15) प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को अदन की वाटिका में रख दिया, जिससे वह उसकी खेती-बारी और देखरेख करता रहे। 16) प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को यह आदेश दिया, ''तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो, 17) किन्तु भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना; क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे''। 

सुसमाचार पाठ- मार. 714-23

14) ईसा ने बाद में लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, ''तुम लोग, सब-के-सब, मेरी बात सुनो और समझो।15) ऐसा कुछ भी नहीं है, जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है।16) जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले! 17) जब ईसा लोगों को छोड़ कर घर आ गये थे, तो उनके शिष्यों ने इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा 18) ईसा ने कहा, ''क्या तुम लोग भी इतने नासमझ हो? क्या तुम यह नहीं समझते कि जो कुछ बाहर से मनुष्य में प्रवेश करता है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकता?  19) क्योंकि वह तो उसके मन में नहीं, बल्कि उसके पेट में चला जाता है और शौचघर में निकलता है।'' इस तरह वह सब खाद्य पदार्थ शुद्ध ठहराते थे। 20) ईसा ने फिर कहा, ''जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। 21) क्योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या,  22) परगमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता- 

23) ये सब बुराइयाँ भीतर से निकलती है और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।  








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