वाटिकन सिटी, 31 जनवरी सन् 2015
जॉन बॉस्को का जन्म इटली के पीडमोन्ट प्रान्त के एक किसान परिवार में, 16 अगस्त सन् 1815 ई. को हुआ था। 19 वीं शताब्दी के काथलिक पुरोहित, शिक्षक एवं लेखक जॉन बॉस्को ही बाद में डॉन बॉस्को नाम से विख्यात हो गये।
डॉन बॉस्को ने सड़कों पर जीवन यापन करने वाले किशोरों, पथभ्रष्ट तथा निर्धन युवाओं की शिक्षा-दीक्षा के प्रति समर्पित रहकर प्रभु येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति की। उन्होंने पथभ्रष्ट युवाओं के सुधार के लिये दण्ड की अपेक्षा प्रेम पर आधारित शिक्षा को उपयुक्त माना तथा भटके हुए युवाओं को जीवन का मार्ग दिखलाया। इसी को साईलिशियन धर्मसमाज की निवारक प्रणाली कहा जाता है। युवाओं के लिये शिक्षण संस्थान खोलने के साथ साथ उन्होंने उन्हें रोज़गार कमाने लायक बनाने के लिये कई तकनीकी एवं शिल्प स्कूलों की स्थापना की तथा सुख-सुविधाओं से वंचित निर्धन युवाओं की बेहतरी के लिये स्वतः को समर्पित रखा।
सन्त फ्राँसिस दे सालेस की आध्यात्मिकता एवं दर्शन का अनुसरण करनेवाले डॉन बॉस्को ने अपनी कृतियों को सन्त फ्राँसिस को समर्पित रखा तथा उन्हीं की प्रेरणा से साईलिशियन धर्मसमाज की स्थापना की। यूखारिस्त की आराधना में वे दिन के कई घण्टे व्यतीत कर देते थे। यूखारिस्त के विषय में जॉन बॉस्को ने अपनी एक कृति में लिखा हैः "इस धरती और स्वर्ग का सबसे अनमोल कोष, प्रकोश में विद्यमान है।"
मरिया दोमेनीका माज़्सारेल्लो के साथ मिलकर जॉन बॉस्को ने धर्मबहनों के लिये ख्रीस्तीयों की सहायिनी मरियम की पुत्रियाँ नामक धर्मसंघ की स्थापना की। यह धर्मसंघ निर्धन कुँवारियों एवं किशोरियों की शिक्षा को समर्पित है।
इसके अतिरिक्त, अपने शिक्षा मिशन को आगे बढ़ाते हुए, सन् 1875 ई. में, डॉन बॉस्को ने एक साईलिशियन पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया जो आज 30 भाषाओं में प्रकाशित की जाती है। सन् 1876 में उन्होंने साईलीशियन धर्मसमाज के सहयोगी नामक लोकधर्मियों का अभियान भी आरम्भ किया। 31 जनवरी सन् 1888 ई. में डॉन बॉस्को का निधन हो गया था। सन् 1929 ई. में वे धन्य घोषित किये गये थे तथा सन् 1934 ई. में सन्त पापा पियुस 11 वें ने उन्हें सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। सन्त डॉन बॉस्को का पर्व 31 जनवरी को मनाया जाता है।
चिन्तनः "जिस मनुष्य पर ईश्वर प्रसन्न है, वह उसे प्रज्ञा, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है;"(उपदेशक ग्रन्थ 2:26)।
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