वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 23 जनवरी 2015 (वीआर सेदोख)꞉ ″ईश्वर का कार्य मेल-मिलाप करना है क्योंकि हमारा ईश्वर सभी पापों से हमें क्षमा प्रदान करता है। वह सदा क्षमा प्रदान करता तथा खुश होता है जब कोई उनसे क्षमा मांगता। मेल-मिलाप का संस्कार दण्डाज्ञा नहीं किन्तु ईश्वर के साथ मुलाकात करना है जो हमारा आलिंगन करते हैं। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने 23 जनवरी को वाटिकन स्थित संत मार्था के प्रार्थनालय में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।
उन्होंने कहा, ″ईश्वर जो मेल-मिलाप करते हैं उन्होंने मानव-जाति के साथ नया व्यवस्थान स्थापित करने हेतु येसु को भेजा और इस व्यवस्थान के कोने का पत्थर है क्षमाशीलता।
क्षमाशीलता की कई विशेषताएँ हैं। इसकी पहली विशेषता है कि ईश्वर हमेशा क्षमा प्रदान करते हैं। वे कभी नहीं थकते। वास्तव में, हम क्षमा मांगने से थक जाते हैं। प्रेरित संत पेत्रुस येसु से पूछा- हमें कितनी बार क्षमा करनी चाहिए, सात बार तक? येसु ने उन्हें उत्तर दिया न केवल सात बार किन्तु सत्तर गुणा सात बार तक।
संत पापा ने कहा, ″यद्यपि आपने जीवन में बहुत पाप किये हों किन्तु क्षमा मांगने ईश्वर उसे पूरी तरह माफ कर देते हैं।″
उन्होंने कहा कि क्षमा पाने के लिए कुछ भी चुकाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ख्रीस्त ने उसे चुका दिया है। उड़ाव पुत्र इसका उत्तम उदाहरण है। पश्चाताप करते हुए उसने पिता के सम्मुख अपनी गलतियों को प्रस्तुत करने की अच्छी तैयारी की किन्तु जब वह पिता के पास आया तो पिता ने उसे बोलने का अवसर भी नहीं दिया। उन्होंने उसे अपनी बाहों में ले लिया।
संत पापा ने कहा कि ऐसा कोई भी पाप नहीं है जिस ईश्वर माफ नहीं करते। कई लोग यह सोच सकते हैं कि मैंने बहुत अधिक पाप किया है अतः मैं क्षमा पाने के योग्य नहीं हूँ किन्तु उनका यह सोचना सही नहीं है। वे हमारे सभी पापों को माफ कर भूला देते हैं। मेल मिलाप संस्कार के समाप्त होने के पूर्व ही हमें आनन्द का अनुभव होता है
दूसरी बात ये है कि जब ईश्वर हमें क्षमा प्रदान करते तो वे स्वयं खुश होते हैं। संत पापा ने पुरोहितों को आत्म जाँच करने की सलाह देते हुए कहा कि क्या वे सभी को क्षमा देने के लिए तैयार रहते हैं? मेल-मिलाप संस्कार वास्तव में एक मुलाकात है निर्णय नहीं। संत पापा ने मेल मिलाप संस्कार को अर्थपूर्ण तरीके से अभ्यास करने की सलाह देते हुए कहा कि कई बार हम उसे नियमतः पूरा करते हैं। इस प्रकार के अभ्यास में संस्कार का कोई अर्थ नहीं रह जोता।
अतः संत पापा ने विश्वासियों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को मेल-मिलाप संस्कार में भाग लेने हेतु अच्छी शिक्षा दें। वे सिखलायें कि इस संस्कार में भाग लेना एक ड्राई क्लिनर की तरह नहीं होनी चाहिए जो दाग साफ करता किन्तु पिता ईश्वर से मुलाकात करना है उनसे मेल-मिलाप करना कर, उनका आलिंगन करना है।
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