2015-01-19 11:23:00

प्रेरक मोतीः सन्त सेबास्तियन (निधन 288 ई.)


वाटिकन सिटी, 19 जनवरी सन् 2015 

सन्त सेबास्तियन का जन्म फ्राँस के नारबोन्न में हुआ था। उनके माता पिता इटली के मिलान के शहर के निवासी थे इसलिये सन्त का बाल्यकाल इसी शहर में बीता। धर्मपरायण माता पिता की छत्रछाया में, बाल्यकाल से ही सेबास्तियन की रुचि प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ में रही। सन् 283 ई. में सेबास्तियन रोम आये तथा सम्राट दियोक्लेशियन के काल में रोमी सेना में भर्ती हो गये। 

उन दिनों ख्रीस्तीयों पर घोर अत्याचार हो रहा था। मारकुस और मारसेलियन नामक दो जुड़वा भाई ख्रीस्तीय विश्वास के ख़ातिर क़ैद थे तथा यातनाएँ भोग रहे थे। सेबास्तियन ने उनमें ढाढ़स बँधाया तथा विश्वास का परित्याग न करने हेतु उन्हें प्रोत्साहित किया। दोनों भाइयों को प्राणदण्ड दे दिया गया जो ख्रीस्तीय धर्म के ख़ातिर शहीद हो गये।

रोमी सेना में रहते सेबास्तियन ने कई लोगों को ख्रीस्तीय विश्वास के प्रति आकर्षित किया तथा कईयों का मनपरिवर्तन किया। कारावास के निदेशक निकोस्त्रास तथा उनकी पत्नी ज़ोए इन्हीं में से थे। ज़ोए गूँगी थी। सेबास्तियन की साधुता और धर्मपरायणता से प्रभावित होकर वह उनके पाँव पर गिर गई और फूट फूट कर रोने लगी। सेबास्तियन ने उसपर पवित्र क्रूस का चिन्ह बनाया और उसने चंगाई प्राप्त की। ज़ोए की वाकशक्ति लौट आई थी यह देखकर निकोस्त्रास, उनकी पत्नी, कारावास का जेलर क्लाऊदियुस, मारकुस और मासेलियन के माता पिता तथा 16 अन्य क़ैदियों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया। इनके अतिरिक्त, रोम के राज्यपाल क्रोमासियुस भी सेबास्तियन की प्रार्थना चंगाई से लाभान्वित हुआ था। उसे गठिया रोग से छुटकारा मिल गया था। धर्मी सेबास्तियन से प्रभावित हो उसने कई क़ैदियों को जेल से रिहा कर दिया और गुलामों को मुक्ति दिलाई। 

सेबास्तियन के वीर एवं गरिमापूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हो सम्राट दियोक्लेशियन ने उन्हें अपनी अंगरक्षक सेना का नायक नियुक्त कर दिया था। वस्तुतः सम्राट दियोक्लेशियन को यह पता नहीं था कि सेबास्तियन ख्रीस्तीय धर्मानुयायी थे। इसी प्रकार, सम्राट माक्सीमियन को भी पता नहीं था। सम्राट दियोक्लेशियन की अनुपस्थिति में सम्राट माक्सीमियन राज्य का कार्यभार सम्भाला करते थे। माक्सीमियन के दमनकाल में जब यह पता चला कि सेबास्तियन भी ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं तथा अनेकों को ख्रीस्तीय धर्म के प्रति आकर्षित करने के ज़िम्मेदार थे तो वह आग बबूला हो उठा। सम्राट दियोक्लेशियन को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सेबास्तियन को मार डालने का आदेश देकर मौरितानिया के एक तीरन्दाज़ के हवाले कर दिया जिसने तीर मार-मारकर सेबास्तियन को बेहोश कर दिया। सेबास्तियन को मृत समझकर सैनिक उन्हें वहीं छोड़कर भाग गये। तब रोम की एक धर्मी महिला आयरीन अन्तयेष्टि के लिये सेबास्तियन का शव लेने आई। उन्होंने सेबास्तियन को जीवित पाया और अपने घर ले जाकर उनकी देखरेख की। सेबास्तियन फिर भले चंगे हो गये तथा सम्राट के सामने उपस्थित होकर उन्होंने उन्हें ख्रीस्तीयों को उत्पीड़ित करने के लिये फटकार बताई जिसके बाद सम्राट ने उन्हें एक बार फिर मार डालने का आदेश दे दिया।

बताया जाता है कि बड़ी क्रूरती के साथ लाठी से पीट-पीट कर सेबास्तियन को मार डाला गया तथा उनकी लाश एक नाले में फेंक दी गई। तब लूसीना नामक एक महिला को सेबास्तियन ने दर्शन दिये और उनसे अनुरोध किया कि वे उनकी लाश को नाले से निकाल कर कब्र में दफना दे। लूसिना ने ऐसा ही किया। सेबास्तियन की शहादत के तुरन्त बाद मिलान तथा आसपड़ेस के नगरों और गाँवों में उनकी भक्ति आरम्भ हो गई थी। सन् 288 ई. में ख्रीस्तीय धर्म के ख़ातिर अपने प्राणों की बलि अर्पित करनेवाले, शहीद सन्त सेबास्तियन का पर्व, 20 जनवरी को मनाया जाता है।       

चिन्तनः शहीद सन्त सेबास्तियन के बारे में लिखते हुए सन्त एम्ब्रोज़ स्तोत्र ग्रन्थ के 118 वें भजन की इन पंक्तियों का प्रस्ताव करते हैं: "वे मुझे धक्का दे कर गिराना चाहते थे, किन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की। प्रभु ही मेरा बल है और मेरे गीत का विषय, उसने मेरा उद्धार किया। धर्मियों के शिविरों में आनन्द और विजय के गीत गाये जाते हैं। प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है; प्रभु का दाहिना हाथ विजयी है, प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है। मैं नहीं मरूँगा, मैं जीवित रहूँगा,  और प्रभु के कार्यों का बखान करूँगा। प्रभु ने मुझे कडा दण्ड दिया,  किन्तु उसने मुझे मरने नहीं दिया। मेरे लिए मन्दिर के द्वार खोल दो, मैं उस में प्रवेश कर प्रभु को धन्यवाद दूँगा" (स्तोत्र ग्रन्थ 118, 13-19)।   

 








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