2015-01-08 15:14:00

मुक्तिदाता येसु मसीह की जयन्ती पर चिन्तन


वाटिकन सिटी, 24 दिसम्बर सन् 2014 (वाटिकन रेडियो): 25 दिसम्बर क्रिसमस, ख्रीस्तजयन्ती, बड़ा दिन अर्थात् येसु मसीह का जन्मदिवस मुक्तिदाता ख्रीस्त की जयन्ती की सुखद स्मृति का दिन है। वाटिकन रेडियो के सभी श्रोताओ को ख्रीस्त जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए हम प्रभु ईश्वर से आर्त याचना करते हैं कि वे आपको, आपके परिजनों, मित्रों एवं सभी शुभचिन्तकों को सुख-समृद्धि, शांति और प्रेम से परिपूर्ण कर दें।

सुसमाचार लेखक सन्त लूकस येसु जन्म का विवरण करते हुए बताते हैं कि दाऊद के वंश के होने के नाते योसफ नाम लिखवाने के लिये अपनी गर्भवती पत्नी मरियम को लेकर दाऊद के नगर बेथलेहेम गये और "वहीं मरियम के गर्भ के दिन पूरे हो गये, और उन्होंने अपने पहलौठे पुत्र को जन्म दिया और उसे कपड़ों में लपेट कर चरनी में लिटा दिया; क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी। उस प्रान्त में चरवाहे खेतों में रहा करते थे। वे रात को अपने झुण्ड पर पहरा देते थे। प्रभु का दूत उनके पास आ कर खड़ा हो गया। ईश्वर की महिमा उनके चारों ओर चमक उठी और वे बहुत अधिक डर गये। स्वर्गदूत ने उन से कहा, ''डरिए नहीं। देखिए, मैं आप को सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ। आज दाऊद के नगर में आपके मुक्तिदाता, प्रभु मसीह का जन्म हुआ है। यह आप लोगों के लिए पहचान होगी-आप एक बालक को कपड़ों में लपेटा और चरनी में लिटाया हुआ पायेंगे।''

ईशपुत्र होने के बावजूद प्रभु येसु ने एक निर्धन गोशाले को अपना जन्म स्थल चुना जिससे मनुष्यों के बीच इस सत्य की प्रकाशना हुई कि येसु ईश्वर के एकलौते पुत्र होने के साथ-साथ सभी अर्थों में एक साधारण मानव व्यक्ति थे। एफेसियों को लिखे पत्र में सन्त पौल कहते हैं: "वे वास्तव में ईश्वर थे और उनको पूरा अधिकार था कि वे ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बनकर अपने को दीन हीन बना लिया।"

ख्रीस्तीयों के लिये यह बड़े गौरव एवं सुयश का विषय है कि एक सर्वसाधारण व्यक्ति द्वारा उनपर ईशराज्य की प्रकाशना की गई। उस व्यक्ति द्वारा जिसने अपार धन सम्पत्ति की अपेक्षा सुयश को श्रेष्ठ समझा तथा चाँदी और सोना संचित करने के बजाय दीनता और विनम्रता धारण कर मनुष्यों के बीच प्रेम का कोष खाली कर दिया। प्रभु येसु के जन्म का सन्देश सर्वप्रथम निर्धन एवं समाज के उपेक्षित चरवाहों को मिला जिन्होंने स्वर्गदूतों के एक विशाल समूह को यह कहते सुनाः "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपा पात्रों को शान्ति मिले।"

25 दिसम्बर क्रिसमस, ख्रीस्तजयन्ती, बड़ा दिन अर्थात् येसु मसीह का जन्मदिवस मुक्तिदाता ख्रीस्त की जयन्ती की सुखद स्मृति का दिन है। यह हर्षोल्लाद के गीत गाने और अपने आनन्द में अन्यों को शामिल करने का सुअवसर है।

क्रिसमस और इसके आसपास की अवधि विश्व के एक अरब से अधिक ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों द्वारा पश्चिमी गोलार्द्ध के धनी देशों में शानो शौकत, महेंगे खान पान एवं बेशुमार दौलत प्रदर्शन कर मनाई जाती है तो एशिया, लातीनी अमरीका एवं अफ्रीका के निर्धन राष्ट्रों में सामान्यतः प्रार्थना व दान पुण्य, नृत्य और गीतों तथा परिवारों में एकत्र होकर मनाई जाती है।

दुर्भाग्यवश, आज विश्व के कई देशों में क्रिसमस महापर्व आतिशबाज़ियों, मंहगे उपहारों के आदान प्रदान, चकमक दूकानों से वस्त्रों और खिलौने की ख़रीदी तथा बढ़िया और उमदा खान पान का महोत्सव बन कर रह गया है। इस स्थल पर मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा सन् 1931 ई. में अमरीका के एक ईसाई समुदाय को दिये सन्देश की कुछ पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं जो आज भी समसामयिक हैं। महात्मा गाँधी ने उस अवसर पर कहा थाः "क्रिसमस की तड़क-भड़क और रंगरलियों ने मुझे कभी भी प्रभावित नहीं किया क्योंकि ये प्रभु येसु मसीह के विनीत जीवन और उदार कर्मों के बिल्कुल विपरीत हैं। मेरी कितनी चाह रही है कि ख्रीस्तीय धर्म के अनुयायी क्रिसमस को अपने यथार्थ नैतिक स्टॉक की जाँच का सुअवसर बनायें।"

जी हाँ! क्रिसमस महापर्व प्रार्थना, मनन चिन्तन एवं प्रभु में आनन्द मनाने का सुअवसर है। येसु मसीह में विश्वास करनेवालों के लिये यह शुभ पर्व अपने कम नसीब भाइयों के लिये दुआ का सुअवसर है। इस शुभअवसर पर हम विश्व के उन लोगों के लिये प्रार्थना करना नहीं भूलें जो ईराक, सिरिया, तुर्की, यूक्रेन तथा इसराएल एवं फिलीस्तीन जैसे देशों में युद्धों एवं संघर्षों से जूझ रहे हैं या फिर युद्धोपरान्त कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं। आतंकवाद के कारण पाकिस्तान एवं अफ़गानिस्तान जैसे देशों में प्रताड़ित लोगों की हम याद करें। विश्व के उन लोगों के लिये भी अवश्य ही प्रार्थनाएँ अर्पित करें जिनकी दशा हाल की वैश्विक आर्थिक मन्दी के कारण बद से बदत्तर हो गई है, उन लोगों के लिये जो भुखमरी एवं कुपोषण के शिकार हैं, जो रोग से ग्रस्त मौत की शैया पर अपार पीड़ा भोग रहे हैं, परित्यक्त, बहिष्कृत एवं तिरस्कृत हैं, बालक येसु से हम प्रार्थना करें कि हमारे ये पीड़ित भाई-बहन भी प्रभु के सामीप्य का आनन्द उठा सकें। समस्त पीड़ित व्यक्ति प्रभु की सान्तवना एवं शक्ति को महसूस करें ताकि येसु ख्रीस्त की जयन्ती उनके लिये भी सुखद अनुभूतियों का समय सिद्ध हो।
 








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