2015-01-05 11:39:00

देवदूत प्रार्थना पर सन्त पापा ने दुहराई शांति की अपील


वाटिकन सिटी, सोमवार, 5 जनवरी 2015 (सेदोक): रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार, 04 जनवरी, को देवदूत प्रार्थना के लिये देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों को सन्त पापा फ्राँसिस ने इस प्रकार सम्बोधित कियाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात!

हमें नव वर्ष का वरदान देता एक सुन्दर रविवार! एक सुन्दर दिन!"

इन शब्दों से देवदूत प्रार्थना से पूर्व अपना सन्देश आरम्भ कर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा............. "आज के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ में, सन्त योहन कहते हैं, "उसमें जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था; वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया। सच्ची ज्योति, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है, वह संसार में आ रहा था"  (योहन 1:4-5, 9)। 

सन्त पापा ने कहा, "लोग ज्योति के बारे में बहुत सी बातें करते हैं किन्तु प्रायः वे अन्धकार की भ्रामक शांति को पसन्द करते हैं। हम शांति के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं, किन्तु प्रायः युद्ध का सहारा लेते हैं, अथवा सह-अपराधिक मौन का चयन करते हैं या फिर हम शांति निर्माण के लिये कोई ठोस कार्य नहीं करते।  सन्त योहन कहते हैं कि "वह अपने यहाँ आया और उसके अपनों ने उसे नहीं अपनाया" (योहन 1:11); सन्त पापा ने कहा, "अभिनर्णय यह है कि ज्योति यानि कि येसु इस संसार में आये, किन्तु लोगों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे। जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिये नहीं आता कि कहीं उसके कर्म प्रकट न हो जायें" (योहन 3:19-20)। सन्त योहन रचित सुसमाचार हमसे यही कहता है। किसी व्यक्ति का हृदय ज्योति का बहिष्कार कर अन्धकार को पसन्द कर सकता है क्योंकि ज्योति उसके बुरे कर्मों का पर्दाफाश कर देती है। जो व्यक्ति बुरे कर्मों में लगता है वह ज्योति से घृणा करता है; जो बुरे कर्म करता वह शांति से घृणा करता है।"

सन्त पापा ने आगे कहा............. "कुछे दिनों पूर्व हमने, "अब कोई दास नहीं अपितु सब भाई बहन" शीर्षक के अन्तर्गत, विश्व शांति दिवस मनाते हुए, ईश माता मरियम के नाम से नववर्ष का शुभारम्भ किया। मेरी आशा है कि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को दूर किया जा सकेगा। यह शोषण एक सामाजिक प्लेग है जो पारस्परिक संबंधों को अपमानित करता तथा सम्मान, न्याय एवं उदारता से अंकित सहभागिता के जीवन में बाधा उत्पन्न करता है। प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक जाति के लोग शांति के लिये तरसते हैं, अस्तु, शांति का निर्माण करना अत्यावश्यक एवं ज़रूरी है।"    

सन्त पापा ने कहाः .... "शांति केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है अपितु एक ऐसी सामान्य शर्त है जिसके तहत मानव व्यक्ति स्वतः के साथ, प्रकृति के साथ तथा अन्यों के साथ सामंजस्य बनाये रखता है। यही है शांति। उसके विभिन्न आयामों में शांतियात्रा की ओर अग्रसर होने की अपरिहार्य शर्त है सर्वप्रथम, हथियारों को शांत करना तथा युद्ध को फूटने से रोकना। मेरे विचार उन संघर्षों के प्रति अभिमुख होते हैं जिनमें विश्व के अनेक क्षेत्रों में अभी भी रक्त बहाया जा रहा है, परिवारों एवं समुदायों में व्याप्त तनावों के प्रति, कितने अधिक परिवारों में, कितने समुदायों में और कितनी पल्लियों में लड़ाईयाँ चल रही हैं? इसके साथ ही, हमारे शहरों और नगरों में निवास करनेवाले, विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न जातियों और विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमियों से आनेवाले लोगों के बीच संघर्ष जारी है। किसी भी विपरीत आभास के बावजूद, हमें अपने आप को यह विश्वास दिलाना होगा कि कि सहमति सदैव सम्भव है, हर स्तर पर एवं हर परिस्थिति में। शांति प्रस्तावों एवं शांति की परियोजनाओं के बिना कोई भविष्य नहीं हो सकता। शांति के बिना कोई भविष्य नहीं।"

उन्होंने आगे कहाः ...... "प्राचीन व्यवस्थान में ईश्वर ने एक प्रतिज्ञा की है। नबी इसायाह कहते हैं: "वे अपनी तलवार को पीट-पीट कर फाल और अपने भाले को हँसिया बनायेंगे; राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध विद्या की शिक्षा समाप्त हो जायेगी" (इसायाह 2:4)। यह अति सुन्दर है!  मुक्तिदाता के जन्म में शांति की घोषणा ईश्वर के विशिष्ट वरदान रूप में हुईः "सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा प्रकट हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले" (लूक. 2:14)।"

सन्त पापा ने कहाः "इस तरह का वरदान निरन्तर प्रार्थना की मांग करता है। इस प्राँगण में हम यह याद करें कि "शांति का मूल है प्रार्थना।" आज जिन परिस्थितियों में हम अपने आप को पा रहे हैं उनमें, इस वरदान की खोज में लगे रहना अनिवार्य है तथा प्रतिबद्धता के साथ हर दिन उसका स्वागत करना आवश्यक है। इस नववर्ष के उषाकाल में, हम सब बुलाये जाते हैं कि हम अपने हृदयों में आशा की ज्योत जगायें जो शांति के ठोस कार्यों में परिणत हो। किसी व्यक्ति के साथ आपके सम्बन्ध ठीक नहीं हैं? आप शांति स्थापित करें! घर में, शांति स्थापित करें! समुदाय में, शांति स्थापित करें! अपने कार्य क्षेत्र में, शांति स्थापित करें!  शांति, पुनर्मिलन एवं भाईचारे को बढ़ावा दें। हम में से हर एक को अपने पड़ोसियों के प्रति भ्रातृत्व की भावना से ओत्-प्रोत होकर काम करना चाहिये, विशेष रूप से, उनके साथ जो पारिवारिक तनावों से घिरे हैं अथवा विभिन्न प्रकार की असहमति के कारण त्रस्त हैं। इन छोटे छोटे कृत्यों का मूल्य महान हैः ये वे बीज बन सकते हैं जो आशा का संचार करते, ये शांति के मार्गों एवं सम्भावनाओं को प्रशस्त कर सकते हैं।"

अन्त में सन्त पापा फ्राँसिस ने इस तरह प्रार्थना कीः "शांति की रानी, मरियम को हम पुकारें। धरती पर अपने जीवन के समय, प्रतिदिन की थकावट एवं कठिनाइयों के साथ साथ, उन्होंने भी कम कष्ट नहीं भोगे। तथापि, उन्होंने कभी मन की शांति नहीं खोई, जो कि ईश्वर की दया के प्रति उनके समर्पण का फल था। दयामयी माता मरियम से हम आग्रह करें कि वे सम्पूर्ण विश्व को प्रेम एवं शांति के निश्चित्त पथ का दर्शन करायें।"

इतना कहकर सन्त पापा फ्राँसिस ने अपना सन्देश समाप्त किया तथा एकत्र तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ कर सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

 

 

 








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