2015-01-03 10:41:00

ख्रीस्तीय व मुस्लिम दलितों को अनुसूचित जाति स्थिति प्रदान करना ज़रूरी


मुम्बई, शनिवार, 03 जनवरी सन् 2015 (एशियान्यूज़): भारत के ख्रीस्तीय संगठन, ग्लोबल काऊन्सल ऑफ इन्डियन क्रिस्टियन्स (जीसीआईसी) के अध्यक्ष, साजन के. जॉर्ज, ने कहा है कि ख्रीस्तीय एवं मुसलमान दलितों को अनुसूचित जाति स्थिति प्रदान करने की ज़रूरत है ताकि धर्म पर आधारित भेदभाव को समाप्त किया जा सके तथा भारतीय संविधान की धर्मनिर्पेक्ष प्रकृति के उल्लंघन को रोका जा सके।  

पहली जनवरी को, एशियान्यूज़ से बातचीत में श्री जॉर्ज ने, काथलिक कलीसिया द्वारा घोषित 48 वें विश्व शान्ति दिवस पर प्रकाशित सन्त पापा फ्राँसिस के सन्देश पर चिन्तन किया। सन्देश के शीर्षक "अब कोई दास नहीं बल्कि सब भाई बहन" पर चिन्तन करते हुए उन्होंने कहा कि सन्त पापा का शांति सन्देश सब प्रकार के भेदभावों को दूर करने तथा न्याय की स्थापना हेतु एक नबूवती आह्वान है।

भारत के सन्दर्भ में शांति सन्देश पर विचार करते हुए उन्होंने कहा, "भारत एक बहु-धार्मिक समाज है तथा इस प्रकार के समाज की उत्तरजीविता तब ही सम्भव है जब सभी धर्मों के लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाये तथा किसी के भी साथ न तो पक्षपात और न ही भेदभाव किया जाये।"

ख्रीस्तीय नेता श्री जॉर्ज ने कहा, "भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है और धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य है कि कानून, संविधान और सरकार के आगे विभिन्न धर्मों के लोग बराबर हैं, उनके समान अधिकार हैं। धर्मनिर्पेक्षता की दूसरी मांग है कि धर्म एवं राजनीति अलग-अलग रहें क्योंकि यदि ऐसा होगा तब ही भेदभावों को हटाया जा सकेगा।" 

सन् 2013 के अक्तूबर माह में प्रकाशित "प्रथम ग्लोबल स्लेवरी इन्डेक्स" यानि "विश्वव्यापी दासता अभिसूचक"  दर्शाता है कि विश्व के तीन करोड़ दासों में लगभग पचास प्रतिशत भारत में जीवन यापन करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत देश के भीतर ही मानव तस्करी के शिकार बनते हैं। दासों में अधिकांश दलित, अछूत एवं आदिवासी होते हैं। भारत के ढाई करोड़ ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों में दो करोड़ दलित जाति के हैं। 

 








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