2014-12-16 15:05:42

वर्ष ‘ब’
आगमन का चौथा रविवार, 21 नवम्बर, 2014


सामूएल का दूसरा ग्रंथ 6 : 1-5,8-11,1-6
रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र 16 : 25-27
संत लूकस 1 : 26-38
जस्टिन तिर्की, ये.स.

दारुपीने वाले की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताता हूँ जिसे दारु पीने की आदत थी। उस क्षेत्र के सब लोगों को मालूम था कि वह दारु पीता है। एक दिन उसके एक दोस्त ने उसे गिरजा जाते हुए देखा तब उसने उससे पूछा कि वह गिरजा क्यों जा रहा है तब उस दारु पीने वाले व्यक्ति ने कहा कि अब वह ईसाई बन गया है इसी लिये वह गिरजा जा रहा है। तब उसके दोस्त ने उससे कहा कि क्या वह येसु के बारे कुछ पूछ सकता है ? तब उस दारूपीने वाले व्यक्ति ने कहा कि वह अवश्य पूछ सकता है। तब उसके दोस्त ने उससे पूछा कि येसु का जन्म कहाँ हुआ था ? दारु पीनेवाले दोस्त ने कहा कि उसे नहीं मालूम है। उसके दोस्त ने कहा कि येसु के माता-पिता का क्या नाम है ? उसने कहा मालूम नहीं। येसु ने क्या-क्या काम किये। मुझे नहीं मालूम। उसने लोगों को क्या शिक्षा दी ? उसने कहा कि मुझे नहीं मालूम है। उसके दोस्त ने कुछ खीजते हुए कहा कि फिर तुम्हें मालूम क्या है ? अगर तुम येसु के बारे में कुछ नहीं जानते हो तो तुमने ईसाई धर्म को स्वीकार कैसे कर लिया ? तब उस पीने वाले दोस्त ने कहा कि सच, मुझे यह तो मालूम नहीं है कि येसु कौन है पर इतना तो अवश्य मालूम हो गया कि येसु के कारण ही मेरा जीवन बदल गया। इसीलिये मैं रविवार को गिरजा जाता हूँ। मेरे घर में भी येसु आते हैं । मेरे परिवार में शांति है और मेरी पत्नी और मेरे बच्चे मुझसे बहुत प्रसन्न हैं और कहते हैं पिताजी अब हमारा घर येसु का घर हो गया है ।
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष ' ब ' के आगमन के चौथे सप्ताह के लिये प्रस्तावित सुसमाचार के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। मित्रो, प्रभु का जन्म दिन बहुत निकट है। प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि प्रभु हमारे दिल मे जन्म लेना चाहते हैं। वे हमारे पास रहना चाहते हैं। वे एम्मानुएल हैं और वे हमारे पास हैं, हमारे साथ हैं। और वे चाहते हैं कि हमारे जीवन को वे बदल दें हमारे परिवार को खुशियों से भर दें और इसे नया कर दें।
मित्रो, आइये आज हम आज के सुसमाचार को सुनें जिसे संत लूकस रचित सुसमाचार के 1 अध्याय के 26 से 38 पदों से लिया गया है।
संत लूकस, 1, 26-38
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ''मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।''
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ''यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।''
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ''पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज’बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।''
38) मरियम ने कहा, ''देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।'' और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।

मित्रो, मेरा पक्का विश्वास है कि आपने सुसमाचार के दिव्य शब्दों को ध्यान से पढ़ा है। आज के सुसमाचार में जिस घटना का वर्णन किया गया है इसमें हम तीन पात्रों को पाते हैं । कुँवारी मरिया, जोसेफ और गाब्रिएल दूत । मित्रो, इस घटना के बारे में आपने कई बार सुना होगा कि किस प्रकार गाब्रिएल दूत माता मरिया को येसु के जन्म का संदेश देते हैं। किस प्रकार मरिया को डर लगता है और फिर किस तरह से माता मरिया ने ईश्वर के वचन को स्वीकार करती है और पूरी दुनिया को ईश्वर के बचाये जाने की योजना के साथ अपना अद्वितीय योगदान करती है।
ईश्वर की योजना
मित्रो, पूरी घटना पर मनन चिन्तन करने से हम क्या पाते है। येसु के जन्म की घटना का बखान करने के द्वारा आज प्रभु येसु हमें क्या बताना चाहते हैं।वे चाहते हैं कि ईश्वर की योजना को जानना सीखें। हम ईश्वर की योजना को स्वीकार करना सीखें और हम ईश्वर की योजना के अनुसार ही सारा जीवन बिताना सीखें। अगर सच पूछा जाये तो ऐसा करने से ही हमारे जीवन का मतलब पूरा हो जायेगा।
ईश्वर का बुलावा
अगर हम संक्षेप में कहना चाहें तो यह एक बुलाहट की घटना है जिसमें ईश्वर कुँवारी मरिया को एक विशेष कार्य के लिये बुलाते हैं।एक विशेष मिशन के लिये बुलाते हैं। ईश्वर मरिया को येसु की माता बनने के लिये बुलाते हैं। यह ईश्वर की ओर से एक बुलावा है। और कुँवारी माँ मरियम ने इसे पूरे साहस के साथ स्वीकार किया और अन्त तब वफादार बनी रही। मित्रो, कभी कभी हम सोचते हैं कि आज के युग में चमत्कार नहीं होते हैं।पर मित्रो, जब-जब हम ईश्वर की योजना के अनुसार अपने आप को ढालते हैं और उसकी इच्छा के अनुसार चलते हैं हम ईश्वरीय कृपा का अऩुभव अवश्य करेंगे। हम चमत्कार अवश्य देखेंगे। 'चमत्कार' अर्थात् हमारे जीवन में ईश्वर का होना। कई बार हम चमत्कार के बारे में बोलते हुए उन बातों की कल्पना करते हैं जो कुछ जादू के समान हो। चमत्कार की बातें करते हुए हम उन बातों की याद करते है को देखने के लिये हमसे बड़ी बातों की उम्मीद नहीं करते हैं। वे यह भी नहीं चाहते हैं कि हममें उनके वरदान को देखने या अनुभव करने के लिये हमारे पास कोई शैक्षणिक योग्यता हो। ईश्वर बस चाहते हैं कि हम उनकी बात को सुनने के लिये तैयार रहें।
मनन-चिन्तन
मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि हमने माता मरिया के जीवन पर कई बार मनन-चिन्तन किया है और हमने पाया है कि माता मरिया गाँव की एक साधारण कुँवारी थी। उसका जीवन सरल था। उसका मन प्रभु पर लगा रहता था। वह ईश्वर की वाणी सुनने के लिये तैयार थी। उसके बाद के जीवन से हमें मालूम होता है कि वह प्रार्थना किया करती थी। वह ईश्वर की बातों पर मनन-ध्यान किया करती थी।
ईश्वर से सवाल
मित्रो, माता मरिया की एक और विशेषता थी वह यह कि मरिया ईश्वर से सवाल भी किया करती थी। अगर आप को आज के सुसमाचार के पद अच्छी तरह से याद होंगे तो आप पायेंगे कि मरिया ने अपने संदेह को दूर करने के लिये संदेशवाहक दूत गाब्रिएल से सवाल भी किया। मित्रो, ईश्वर से प्रश्न पूछऩा अच्छा है । मैं कई बार सोचता था कि ईश्वर से सवाल नहीं करना चाहिये। मैं सोचता था कि ईश्वर से सवाल करना ईश्वर की इच्छा पर संदेह करना है । पर सच बात तो यह है कि जब हमारे अंतःकरण में संदेह हो तो हमें ईश्वर से यह पूछना चाहिये कि ईश्वर अपनी इच्छा को हमारे लिये स्पष्ट रूप से बतायें। हमें ईश्वर से इस बात का निवेदन करना चाहिये कि वे हमें बतायें कि हमारे जीवन से क्या चाहते हैं । मित्रो, ईमानदारी और समर्पण के साथ ईश्वर से सवाल करने को ही हम दूसरे शब्दों में मनन-चिन्तन कह सकते हैं । और मित्रो, माता मरिया ने यही किया। जब उन्हें आभास हो गया कि ईश्वर ने दुनिया को बचाने की योजना में माता मरिया को शामिल किया है तो उसने इस संबंध में स्पष्टीकरण माँगा। मित्रो, आपको याद होगा कि जब गाब्रिएल दूत कुँवारी मरिया के पास आये और उन्होंने माता मरिया का अभिवादन किया तो मरिया ने कहा कि उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया। फिर जब दूत ने कहा कि मरिया को येसु की माँ बनना है तब मरिया ने फिर सवाल किया कि यह कैसे संभव है। मित्रो, मरिया ने सवाल किया पर इसलिये नहीं कि वह ईश्वर के कार्य करने से बच जाये। मरिया ने सवाल इसलिये किया ताकि वह ईश्वर के कार्यों को बखूबी कर पाये।
मित्रो, आज हम लोग मरिया के बुलाहट पर मनन-चिन्तन कर रहे हैं और इसमें हमने अब तक इस बात पर मनन किया है कि प्रभु साधारण लोगों को अपना कार्य सौपते हैं । दूसरी बात जिस पर हमने मनन किया है वह कि प्रभु के निमंत्रण कई बार असंभव-सा लगता है। ऐसा लगता है कि वह कार्य पूरा नहीं हो पायेगी। तीसरी बात यह भी है कि प्रभु के कार्य को शुरु करने के पहले यह बहुत ही कठिन लगता है और इसमें व्यक्ति को संदेह होने लगता है। मित्रो, अब आइये हम बुलावे के संबंध में एक और बात को जाने जिसे कुँवारी मरियम हमें सिखा रही हैं वह है कि हमें प्रभु की योजना में ईश्वर का साथ ईमानदारी से निभाना चाहिये। बुलाहट के मामले में माता मरिया का ज़वाब सबसे छोटा पर सबसे अर्थपूर्ण था।
मिशन को निभाना
मित्रो, क्या आपको याद है कुँवारी मरिया ने ईश्वर के निमंत्रण के ज़वाब में क्या कहा। उन्होंने कहा देख मैं प्रभु की दासी हूँ। मित्रो, मरियय का ज़वाब कितना छोटा पर कितना प्यारा था। उस छोटे से हाँ से मरियम ने पूरी दुनिया को बचाने की ईश्वर की योजना को स्वीकार कर लिया उन्हीं की मदद से इतना बड़ा चमत्मकार हो गया। मित्रो, मैं इतना तो कह सकता हूँ कि मरियम ने अवश्य ही सब बातों को शुरु में ही नहीं समझा होगा पर उन्होंने ईश्वर पर इतना बड़ा विश्वास किया। ईश्वर पर अटूट विश्वास और समर्पण होने से हम अवश्य ही चमत्कार देखेंगे। ईश्वर हमारे जीवन को खुशियों से भर देंगे। शायद हम भी उस दारू पीने वाले व्यक्ति के समान कहेंगे मैं येसु को ठीक से नहीं जानता हूँ पर इतना तो कह सकता हूँ कि येसु को खोजने से उसकी इच्छा को पहचानने से और उसे स्वीकार उसके अनुसार जीवन जीने से हमारा जीवन नया हो जायेगा जो खुशियों से भरा होगा और दूसरों के जीवन को भी खुशी और आशा से भर देगा। ख्रीस्त के जन्म पर्व में इससे बड़ा और उपहार हो ही क्या सकता है।













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