2014-12-08 20:26:49

वर्ष ‘ब’ आगमन का तीसरा रविवार, 14 दिसंबर, 2014


इसायस 61 : 1-2, 10-11 थेसलनीकियों के नाम 5 : 16-24 संत योहन 1 : 6-8,19-28
जस्टिन तिर्की, ये.स.
दीपा की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक गरीब लड़की की कहानी बताता हूँ जिसका नाम दीपा। वह अपने माता पिता की मृत्यु के बाद अपने चाचा-चाची के घर में रहती थी। एक दिन गाँव के सरपंच ने गाँव वालों को बताया कि गाँव में उस क्षेत्र के जाने माने मंत्री अपने पुत्र के साथ आने वाले हैं और गाँव के विकास के लिये अनेक कार्यक्रमों की घोषणायें भी करेंगे और कई लोगों को आर्थिक मदद भी देंगे। नेता की आदत थी वे अपने अनोखे व्यवहार से लोगों को चकित करने की। गाँव के सब लोग अपने प्रिय नेता के आगमन की तैयारी करने लगे। पूरे गाँव को साफ किया गया। विभिन्न गड्ढों को भर दिया गया। प्रत्येक घर को भी लीप-पोतकर सुन्दर बना दिया गया। जगह-जगह रंग-बिरंगे झंडे लगाये गये। सड़क के किनारे एक-
छोर से दूसरे छोर तक आम की पत्तियाँ डाली गयी। गाँव में अन्दर आने के लिये एक प्रवेश द्वार बनाया गया और नेता के स्वागत में स्वागतम् का एक सुन्दर बैनर लगाया गया। जिस दिन नेता के आने का दिन था लोग गाँव के प्रवेश द्वार के पास जमा थे। आस-पास के गाँव वाले भी वहाँ एकत्र होने लगे थे। दीपा को गीत संचालन की जिम्मेदारी दी गयी थी। नेता जी के आने का समय हो चुका था दीपा भी अपने घर से निकली और प्रवेश द्वार की ओर बढ़ी ताकि वह नेता जी के स्वागत समारोह में शामिल हो सके। उसने देखा कि दो व्यक्ति उसके आँगन में खड़े हैं। उन लोगों को दीपा ने नहीं पहचाना। दीपा ने समझा कि वे अतिथि पड़ोस के गाँव से है। हड़बड़ी में होने के बावजूद उसने उन अतिथियों को पानी दिया और कहा कि वे उनकी चाची के साथ रहें क्योंकि वह मंत्री के स्वागत के लिये जा रही है। इतना कहकर वे वह गाँव के प्रवेश द्वार की ओर दौड़ पड़ी। पर सरपंच ने बतलाया कि मंत्री महोदय गाँव में प्रवेश कर चुके हैं।कुछ देर के बाद पूरे गाँव के लोग दीपा के घर के पास जमा हो गये और तब पता चला कि दीपा के घर में जो अतिथि बैठे थे वे मंत्री और उसके पुत्र ही थे। दीपा को विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे उसने पानी पिलाया था वे मंत्री मंत्री महोदय ही हैं। मंत्री ने भी कहा कि वह दीपा के आतिथ्य सत्कार और सह्रदय स्वागत करने की उत्सुकता से बहुत प्रसन्न हैं।
मित्रो, हम रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचाँग के आगमन के तीसरे रविवार के पाठों के आधार पर मनन चिंतन कर रहे हैं। आज प्रभु हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि येसु की आवाज़ को योहन बपतिस्ता के मुख से सुनें। वे कह रहे हैं हम प्रभु के स्वागत के लिये उत्सुक रहें। प्रभु को अपना प्यार देने के लिये अपने घर में तैयारी करें। समुदाय के साथ मिल कर तैयारी करे, प्रभु का मार्ग तैयार करें और प्रभु को आम लोगों में पहचानें । मित्रो, आइये हम प्रभु के वचनों को सुनें जिसे संत योहन रचित सुसमाचार के पहले अध्याय के 6 से 28 पदों से लिया गया है।

संत योहन 1, 6 -28
6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।
7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।
8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।
9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।
10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।
11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।
12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।
13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।
15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, ‘‘यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।''
16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।
17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।
18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।
19) जब यहूदियों ने येरुसालेम से याजकों और लेवियों को योहन के पास यह पूछने भेजा कि आप कोन हैं,
20) तो उसने यह साक्ष्य दिया- उसने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया कि मैं मसीह नहीं हूँ।
21) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘तो क्या? क्या आप एलियस हैं?'' उसने कहा, ‘‘में एलियस नहीं हँू''। ‘‘क्या आप वह नबी हैं?'' उसने उत्तर दिया, ‘‘नहीं''।
22) तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘तो आप कौन हैं? जिन्होंने हमें भेजा, हम उन्हें कौनसा उत्तर दें? आप अपने विषय में क्या कहते हैं?''
23) उसने उत्तर दिया, ‘‘मैं हूँ- जैसा कि नबी इसायस ने कहा हैं- निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज: प्रभु का मार्ग सीधा करो''।
24) जो लोग भेजे गये है, वे फ़रीसी थे।
25) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘यदि आप न तो मसीह हैं, न एलियस और न वह नबी, तो बपतिस्मा क्यों देते हैं?''
26) योहन ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘मैं तो जल में बपतिस्मा देता हूँ। तुम्हारे बीच एक हैं, जिन्हें तुम नहीं पहचानते।
27) वह मेरे बाद आने वाले हैं। मैं उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।''
28) यह सब यर्दन के पास बेथानिया में घटित हुआ, जहाँ योहन बपतिस्मा देता था।

मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि प्रभु ईश्वर ने आपको वह अपनी दिव्य शक्ति प्रदान की है जिसके द्वारा आपने ने केवल अपने लिये पर पूरे परिवार के लिये भी प्रभु के वचनों को गौर से सुना है। आज के सुसमाचार पर गौर करने से हम अनायास ही योहन बपतिस्ता के शब्दों से प्रभावित होते हैं।
योहन मसीहा नहीं
पहली बात, जिसने मुझे प्रभावित किया वह है संत योहन का यह कहना कि वह मसीह नहीं हैं। मित्रो, कई लोग योहन की बातों को सुन कर यह सोचने लगे थे वे ही मसीहा हैं। योहन ने जिस उत्साह और साहस और कर्मठता से लोगों को मार्ग तैयार करने का उपदेश देता था उससे कई लोगों को यह आभास होने लगा था कि योहन ही आने वाले हैं। आपको मालूम भी होगा कि कुछ नेताओं ने कुछ लोगों को यह पूछने भी भेजा कि वह कौन हैं। मित्रो, आपने सुना होगा योहन का स्पष्ट ज़वाब। मैं मसीहा नहीं हूँ। मित्रो, आज हमें इस बात को जानने की आवश्यकता है कि हम कौन हैं। कई बार हमें खुद ही मालूम नहीं होता कि हम कौन हैं। मित्रो, आज हम योहन से इस बात को सीख सकते हैं कि हम यह जाने कि हमारी पहचान क्या है। हम कौन हैं। मित्रो, आज हम अपने आप से पूछें कि हम कौन हैं। क्या हम ईश्वर के पुत्र पुत्रियाँ नहीं हैं । क्या हम येसु के शिष्य नहीं हैं ।क्या हम येसु के द्वारा चुने हुए व्यक्ति नहीं हैं। मित्रो, ज़वाब हमारे पास है। हम आज इस बात को अवश्य ही खोज़ लें। शायद आप कहेंगे कि मैं तो एक विद्यार्थी हूँ। शायद आप करेंगे मैं तो किसान हूँ शिक्षक हूँ, दफ्तर में कार्य करने वाला हूँ श्रमिक हूँ, एक साधारण व्यक्ति हूँ जो भी हो हम येसु के मित्र हैं हम ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ हैं।

हमारी बुलाहट - येसु का साक्ष्य बनना
मित्रो, दूसरी बात जिसे हम संत योहन से सीख सकते हैं वह हैं कि हम किस लिये बुलाये गये हैं। हमें ईश्वर ने क्या कार्य सौंपा है ॽ मित्रो, हमने योहन के जीवन पर विचार किया है उसे किसी प्रकार के बड़े नाम की आवश्यकता नहीं थी। योहन एक मिशनरी के रुप मे बहुत ही अच्छा उदाहरण है। मित्रो, संत योहन बताते हैं कि वे मसीहा नहीं है। और दूसरी बात वे हमें बताते हैं कि उनका कार्य है येसु के कार्यों का साक्ष्य देना। संत योहन का कार्य बिल्कुल स्पष्ट था और वह था कि वह येसु के बारे में लोगों को जानकारी दे। लोगों को मदद करे ताकि वे येसु को जान सकें। येसु के पास आ सकें और येसु से अनन्त जीवन पा सकें।

योहन - निर्दन प्रदेश की आवाज़
मित्रो, आपने आज के सुसमाचार को ध्यान से पढ़ा होगा। योहन अपने बारे में बतलाते हुए कहते हैं कि वे निर्जन प्रदेश की आवाज़ हैं। आज हम इस बात पर गौर करें कि येसु मसीह शब्द है या वचन हैं और संत योहन उसकी आवाज़ हैं। मित्रो, क्या ये बातें आपके दिल को नहीं छू लेती हैं। हम सब लोगों का परम दायित्व है कि हम येसु अर्थात् ईश्वरीय शब्द की आवाज़ बनें और लोगों को येसु के बारे में जानकारी दें। येसु के बारे में जानकारी देने का अर्थ है सत्य प्रेम दया क्षमा और भाईचारा का प्रचार करें । मित्रो, यहाँ पर इन गुणों के बारे में बताते हुए मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहता हूँ कि हम ईश्वरीय गुणों का साक्ष्य तब ही दे पायेंगे जब हमारे ही दिल में ये सब गुण विद्यमान हैं। हम येसु की आवाज़ तब ही बन पायेंगे जब इस बात को ठीक से समझ पाये है कि हमें ईश्वर ने बुलाया हैं। हम यह समझ पायेंगे कि हमें ईश्वर ने इसलिये यह जीवन दिया है कि सच्चाई अच्छाई और भलाई का प्रचार करें।
योहन एक संदेशवाहक
तीसरी बात जिसने मेरा ध्यान खींचा है वह है कि यदि हम येसु के संदेशवाहक बनना चाहते हैं तो सिर्फ इस बात से काम नहीं हो पायेगा कि यह जानना कि प्रभु ने हमें बुलाया हैं हमें उसकी आवाज़ बनना है। अगर हम चाहते हैं कि प्रभु के सच्चे सेवक बने तो हमें चाहिये कि लोगों को मार्गदर्शन दें। संत योहन ने लोगों को स्पष्ट आदेश दिया कि उन्हें क्या करना हैं। उन्होंने उनसे कहा कि वे प्रभु का मार्ग तैयार करें । ऐसा जीवन जीयें कि प्रभु हमारे दिल में प्रवेश कर सके। योहन ने इस बात पर भी बल दिया कि उन्हें चाहिये कि मनफिराव करें वे ईश्वर की ओर मुढ़ें औऱ येसु से ही सारा जीवन ग्रहण करें। मित्रो, अगर हमारा जीवन येसु की ओर हरदम वापस आता रहेगा तो हम सहा ही ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन बिता पायेंगे। हमारा जीवन येसु को पाने के लिये सदा तैयार रहेगा और जब भी येसु हमारे जीवन में आयें हम उन्हें पहचान पायेंगे और वे हमें एक योग्य सेवक की तरह पायेंगे।
मित्रो, संत योहन की बातों की याद करते हुए हम और एक खूबी योहन में पाते हैं वह कि अन्त में वे इस बात को भी बता ही देते हैं कि जौभि के वे लोगों के लिये एक नबी या महान् व्यक्ति है पर येसु के सामने वे बहुत छोटे हैं । वे कहते हैं कि वे उसके जूते के बन्धन का फीता भी खोजने योग्य नहीं हैं।
ईश्वर बढ़ें - मैं घटूँ
मित्रो, संत योहन ने हमें इन चार बातों को बताया है।पहली की हम ईश्वर के द्वारा बुलाये गये हैं, हमें ईश्वर की आवाज़ बनना हैं हमें लोगों को बता पाना है कि ईश्वर के पास लौटने के लिये उन्हें क्या करना है औऱ अंतिम बात कि अपनी सफलताओं के बाद भी यह हरदम समझ पाना है कि हम ईश्वर के सामने छोटे हैं। हमें यह कह सकना चाहिये कि ईश्वर सब लोगों में बढ़ें और जो कुछ भी मानव जीवन की कमजोरियाँ हैं वह घटें। अगर हर व्यक्ति इस प्रकार का सोच और मानसिकता से कार्य करेगा तो अवश्य ही किसी को भी इस बात का भय नहीं होगा कि येसु का स्वागत कैसे किया जाये तब हम उस गरीब लड़की आशा के समान येसु के आगमन के लिये सदा ही तैयार पाये जायेंगे। जब हम येसु के आगमन की राह देखते है जब हम दूसरों में ईश्वर के रूप को देख पाते हैं जब हमें देखकर लोगों को ईश्वरीय प्रेम का आभास होता है जब हम छोटे-छोटे भले कार्यों जैसे प्रेम दया क्षमा और मेलमिलाप के द्वारा अपने मन को दिल को रोज सिंगारते हैं और हर दूसरे जन को अच्छाई सच्चाई और भलाई की प्रेरणा देते हैं तब विश्वास मानिये येसुमय हो गये हैं और जब भी येसु आये आपको तैयार पायेंगे आपको येसु से मिलने की खुशी होगी और येसु को आपको अपने साथ लेने का आनन्द तब हमारा जीवन सफल हो जायेगा और येसु के इस धरा में आने का मिशन पूरा हो जायेगा।








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