2014-12-06 08:55:11

प्रेरक मोतीः सन्त निकोलस (चौथी शताब्दी)


वाटिकन सिटी, 06 दिसम्बर सन् 2014:
पूर्व तथा पश्चिम के ख्रीस्तीयों द्वारा बारी के सन्त निकोलस की भक्ति की जाती है जो चौथी शताब्दी में मिराह के धर्माध्यक्ष थे। इस समय मिराह दक्षिण पश्चिमी तुर्की के लिच्या में है तथा इसे मुगला नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि सन्त के चमत्कारी कार्यों के द्वारा छठवीं शताब्दी में ही पूर्वी ख्रीस्तीय कलीसियाओं में उनकी भक्ति होने लगी थी तथा लगभग 847 ई. में कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष मेथोदियुस द्वारा लिखी गई सन्त निकोलस के जीवन चरित के प्रचार के उपरान्त यह पश्चिम के ख्रीस्तीयों में भी प्रचलित हो गई।

धर्माध्यक्ष निकोलस के निधन के बाद उनके पार्थव शव को मिराह के गिरजाघर में दफना दिया गया था किन्तु जब मुसलमानों ने मिराह पर चढ़ाई की तब उनके पवित्र अवशेषों को सन् 1087 ई. में उनके जन्मस्थल इटली के बारी में स्थानान्तरित कर दिया गया था। यहाँ के ग्रीक आप्रवासियों में सन्त निकोलस लोकप्रिय थे जिन्होंने सन्त के आदर में एक गिरजाघर का निर्माण भी करवाया था। सन्त निकोलस को समर्पित बारी स्थित इस गिरजाघर के अनुष्ठान समारोह में सन्त पापा अर्बन द्वितीय भी उपस्थित थे। इस घटना के बाद सन्त निकोलस की भक्ति विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित हो गई।

अपनी दरियादिली एवं चमत्कारिक कार्यों के कारण सन्त निकोलस सर्वत्र विख्यात हो गये थे। प्राधिधर्माध्यक्ष मेथोदियुस द्वारा रचित उनके जीवन चरित में कई चमत्कारों का विवरण मिलता है। इसी कारण वे बच्चों, नाविकों, अविवाहित युवतियों, व्यापारियों, व्यवसायियों, औषध विक्रेताओं तथा इत्रसाज़ियों के संरक्षक सन्त रूप में विख्यात हो गये हैं। यह भी कहा जाता रहा है कि बारी में सन्त निकोलस के अवशेषों के आगमन के बाद उनकी समाधि से एक सुगन्धित द्रव्य निकल पड़ा था जिसे "मन्ना" का नाम दिया तथा निकोलस को इत्रसाज़ियों के संरक्षक घोषित कर दिया गया। इस घटना के बाद से बारी स्थित सन्त निकोलस की समाधि एवं सन्त निकोलस गिरजाघर तीर्थयात्रियों के लिये आराधना-अर्चना का लक्ष्य बन गया है।

किंवदन्ती है कि धर्माध्यक्ष निकोलस ने दहेज़ देने में असमर्थ तीन युवतियों को वेश्यावृत्ति एवं दासप्रथा से बचाने के लिये उन्हें सोने के तीन थैले प्रदान किये थे ताकि युवतियों का विवाह पूर्ण प्रतिष्ठा और मर्यादा के साथ हो सके। इसी आधार पर कई बार तीन सोने की गेंदों को सन्त निकोलस का प्रतीक बताया गया है। वस्तुतः अंक "तीन" सन्त निकोलस के जीवन में बहुत महत्व रहा है। उदाहरणार्थ, उन्होंने उन तीन युवकों को पुनः जिला दिया था जिनका एक कसाई द्वारा वध कर दिया गया था। फिर यह भी कहा जाता है कि धर्माध्यक्ष निकोलस ने उन तीन नाविकों की रक्षा की थी जिन्हें अन्यायपूर्ण ढंग से प्राणदण्ड दिया जा रहा था।

उदारमना ईशसेवक बारी के सन्त निकोलस या सन्त निकोला का पर्व 06 दिसम्बर को मनाया जाता है।

चिन्तनः पृथ्वी के शासको! न्याय से प्रेम रखो। प्रभु के विषय में ऊँचे विचार रखो और निष्कपट हृदय से उसे खोजते रहो; क्योंकि जो उसकी परीक्षा नहीं लेते, वे उसे प्राप्त करते हैं। प्रभु अपने को उन लोगों पर प्रकट करता है, जो उस पर अविश्वास नहीं करते" (प्रज्ञा ग्रन्थ 1: 1-2)।








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