वाटिकन सिटी, 07 दिसम्बर सन् 2014: एम्ब्रोस का जन्म 340 ई. में इटली के मिलान में
हुआ था तथा निधन सन् 397 ई. में हो गया था। 07 दिसम्बर, सन् 374 ई. को एम्ब्रोस मिलान
के धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे इसीलिये उनका पर्व 07 दिसम्बर को मनया जाता है।
एम्ब्रोस
को काथलिक कलीसिया के पितामह एवं धर्माचार्य की संज्ञाओं से विभूषित किया गया है। उनके
लेखों और, विशेष रूप से, उनके उपदेशों एवं प्रवचनों ने पीढ़ियों से ख्रीस्तीय धर्मतत्व
वैज्ञानिकों एवं ईश शास्त्रियों को आलोकित किया है। उनके पत्र भी अत्यधिक प्रभावशाली
हैं तथा कलीसिया संग्रहालय के अनमोल कोष का अंग हैं। अपने एक पत्र में एक नवनियुक्त धर्माध्यक्ष
को एम्ब्रोस लिखते हैं: "प्रभु की कलीसिया, विश्व के समस्त जोखिमों के बीच, प्रेरितों
की मज़बूत चट्टान पर निर्मित की गई है; यही कारण है कि वह अचल एवं सुदढ़ है।"
कहा
जाता है कि 33 वर्ष की आयु में एम्ब्रोस ने सफल एवं फलप्रद जीवन का स्वाद चख लिया था
तथा उस समय वे मिलान शहर के राज्यपाल थे। साथ ही तत्कालीन सम्राट के मित्र एवं परामर्शदाता
भी। चौथी शताब्दी में, कलीसिया में अपधर्मियों का भी बोलबाला था। इनमें आरियनवादी प्रमुख
थे जो प्रभु येसु मसीह के ईश्वरत्व से इनकार करते थे। सन् 374. ई. में, जब मिलान के धर्माध्यक्ष
की मृत्यु हुई तब कलीसिया के प्रति निष्ठावान एवं आरियन के अनुयायियों के बीच कलह मच
गई। प्रश्न यह था, कौन होगा मिलान का भावी धर्माध्यक्ष? बस इसी पर काथलिकों एवं आरियनवादियों
में दंगे भड़क उठे।
राज्यपाल होने के नाते एम्ब्रोस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
उन्होंने दोनों गुटों को शान्त तो कर दिया किन्तु प्रश्न ज्यों का त्यों बना रहाः कौन
होगा मिलान का धर्माध्यक्ष? राज्यपाल एम्ब्रोस ने लोगों से आग्रह किया कि वे बिना लड़ाई
झगड़े के अपने धर्माध्यक्ष को चुन लें। वे लोगों को सम्बोधित कर ही रहे थे कि एकाएक एक
आवाज़ सुनाई दीः "एम्ब्रोस हमारे धर्माध्यक्ष"। बस क्या था एम्ब्रोस को ही धर्माध्यक्ष
चुन लिया गया। शायद इसलिये भी कि वे न तो आरियनवादी थे और न ही काथलिक।
मिलान
के निकटवर्ती धर्मप्रान्तों के पुरोहितों ने भी एम्ब्रोस को धर्माध्यक्ष स्वीकार कर लिया
तथा उन्हें धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसके बाद एम्ब्रोस ने बपतिस्मा ग्रहण किया तथा
काथलिक कलीसिया में कई सुधार किये। उन्होंने कई अपधर्मियों और, विशेष रूप से, आरियनवादियों
को काथलिक कलीसिया में लौटाया। साथ ही, अपनी अपार धन सम्पत्ति निर्धनों में बाँट दी।
सन्त सिमप्लीशियन के अधीन रहकर उन्होंने काथलिक धर्म की शिक्षा प्राप्त की तथा दर्शन
एवं ईशशास्त्र का अध्ययन किया। गूढ़ अध्ययन के उपरान्त धर्माध्यक्ष एम्ब्रोस ने सुसमाचार
के प्रचार एवं काथलिक धर्मशिक्षा के प्रसार पर अत्यधिक बल दिया तथा मिथ्यावादियों के
प्रति काथलिक धर्मानुयायियों को सचेत किया। अपनी उदारता, निष्कपटता, प्रखर बुद्धि और
साथ ही अपने अनेक प्रवचनों, भक्ति गीतों एवं पत्रों के कारण काथलिक कलीसिया ने सन्त एम्ब्रोस
को कलीसियाई आचार्य एवं कलीसिया के पितामह की संज्ञा से विभूषित किया है। मिलान के सन्त
एम्ब्रोस का पर्व 07 दिसम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "पुत्र! यदि तुम
प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने को तैयार हो जाओ। तुम्हारा हृदय
निष्कपट हो, तुम दृढ़संकल्प बने रहो, विपत्ति के समय तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर से
लिपटे रहो, उसे मत त्यागो, जिससे अन्त में तुम्हारा कल्याण हो। जो कुछ तुम पर बीतेगा,
उसे स्वीकार करो तथा दुःख और विपत्ति में धीर बने रहो; क्योंकि अग्नि में स्वर्ण की
परख होती है और दीन-हीनता की घरिया में ईश्वर के कृपापात्रों की" (प्रवक्ता ग्रन्थ 2:
1-5)।