2014-11-26 14:58:22

अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद मानव जीवन का तिरस्कार


स्ट्रासबर्ग, फ्राँस बुधवार 26 नवम्बर, 2014 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने यूरोपीय कौंसिल को फाँस के स्ट्रासबर्ग में संबोधित करते हुए कहा कि यूरोपीय समाज धार्मिक अतिवादिता और न्यूनीकरण समझदारी में सामंजस्य लाने में असफल रहा है। उसने एक ओर तो धार्मिक कट्टरवाद का उचित जवाब नहीं ढूँढ़ा है तो दूसरी ओर मानव को पूर्ण सम्मान नहीं दिया है।
संत पापा ने कहा कि यूरोपीय कौंसिल ने इन समस्याओं को राजनैतिक समाधान खोजने का प्रयास किया है जिसकी सराहना की जानी चाहिये। उन्होंने यूरोपीय कौंसिल द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा, प्रजातंत्र और कानून के शासन पर बल देने के लिये उनकी सराहना की।
पोप ने इस बात के लिये क्षोभ व्यक्त किया है कि शांति व्यवस्था की दिशा में अब तक सुधार नहीं हो पाया है और अब भी विश्व के विभिन्न प्रांतों में लोग लड़ाई- झगड़ों से तबाह हैं।
उन्होंने कहा कि अन्तर राष्ट्रीय आतंकवाद मानव जीवन का तिरस्कार है। यह भी जगज़ाहिर है कि आतंकवाद कई बार हथियारों की होड़ के कारण बढ़ता रहता है। मानव तस्करी शांति की प्रक्रिया में बाधक है या कहें यह नये तरीके की बंधक प्रथा है।
संत पापा ने कहा कि आज ज़रूरी है कि हम आप्राविसों को शरण दें, बेरोज़गारी की समस्या का समाधान खोजें जो मानव के रोजगार की मर्यादा को प्रभावित करता है।
संत पापा ने कहा कि यूरोपीय कौंसिल के संस्थापकों ने इस बात को ठीक से समझा था कि शांति के प्रयास अनवरत जारी रहें और इसकी रक्षा के लिये व्यक्ति जागरुक रहें।
उनका मानना था कि यूरोप का नवनिर्माण पारस्परिक सेवा भाव से ही संभव हो सकता है। सेवा की भावना, स्वतंत्रता और मानव मर्यादा ही यूरोपीय कौंसिल का कोने का पत्थर हो।
संत पापा ने कहा कि मानवाधिकार और व्यक्तिवादिता को सत्य की खोज से अलग करने के परिणाम गंभीर होंगे। कानूनों के व्यक्तिवादी व्याख्यान से दूसरे के प्रति चिन्ता कम होती जाती और इससे उदासीनता का वैश्वीकरण होता है। यह स्वार्थ का परिणाम है जो सत्य को गले नहीं लगाता और सामाजिक आयाम को भी गले नहीं लगा पाता।

संत पापा ने कहा कि इस तरह की व्यक्तिवादिता से मानव जीवन कमजोर होता और सांस्कृतिक शुष्कता बढती है और इससे बरबादी की संस्कृति का विस्तार होता है।
संत पापा ने यूरोपीय कौंसिल के सदस्यों का आह्वान किया कि वे वैश्वीकृत यूरोपीय संस्कृति में रचनात्मकता के लिये कार्य करें विशेष कर ऐसे समय में जब मुक्त बहुध्रुवीय संस्कृतियाँ लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक विशिष्टता को नष्ट करने पर तुली हुईं हैं।

















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