स्ट्रासबर्ग, मंगलवार 25 नवम्बर, 2014 (सेदोक,वीआऱ) संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 25
नवम्बर को अपने एक दिवसीय दौरे के अंतर्गत फ्राँस में अवस्थित यूरोपीय संसद को संबोधित
किया।
संत पापा ने कहा यूरोप से कहा कि वह न्याय और एकतापूर्ण प्रवासी नीति बनाये
ताकि अप्रावासियों को स्वीकारा जा सके और उनकी मदद की जा सके।
उन्होंने कहा कि
उनके लिये ऐसी नीति बने जो स्वार्थपूर्ण न हो ताकि सामाजिक विद्वेश और झगड़ों से बचा
सके।
विदित हो संत पापा जोन पौल द्वितीय ने सन् 1988 ईस्वी की यूरोपीय संसद की
संबोधित किया था।
संत पापा ने कहा कि विश्व यूरोप को अब एक " वृद्ध और कमजोर
" राष्ट्र के रूप में देखने लगी है। मैं आपलोगों को एक धर्मगुरु के रूप में आशा का प्रोत्साहन
का संदेश देने आया हूँ।
उन्होंने कहा कि समस्यायें हमें एक साथ काम करने का अवसर
प्रदान करती है ताकि हम उन समस्याओं और दहशतों का सामना कर सकें जिसे यूरोप सहित पूरी
दुनिया अनुभव कर रही हैँ।
संत पापा ने कहा कि मर्यादा और उत्कृष्टता दो शब्द
ऐसे हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के नवनिर्माण की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध
हुई।
संत पापा ने कहा कि यूरोपीय संघ का मुख्य कार्य है मानवाधिकारों के लिये
कार्य करना ताकि संघ के अन्तर्गत तथा इससे जुड़े राष्ट्रों में मानव मर्यादा की रक्षा
हो। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के बिना मानव मर्यादा अर्थहीन हो जाता है। संत
पापा न कहा कि आज ज़रूरत है एक मानवाधिकारों की एक संस्कृति के विकास काजो व्यक्ति को
सार्वजनिक हित से जोड़े जिसमें व्यक्ति, परिवार और समाज के अन्य लोग जुड़े हुए हैं।
संत पापा ने कहा कि यूरोप की सबसे बड़ी बीमारी है अकेलापन इससे वे ही लोग ग्रस्त
होते हैं जो दूसरों के साथ जुड़े नहीं रहते। अकेलापन आर्थिक मंदी के कारण और ही गंभीर
हो गयी है जिसके भयानक परिणाम से हम सब परिचित है।
संत पापा ने कहा कि मानव मर्यादा
की रक्षा करने का अर्थ है मानव जीवन के मूल्य को पूर्ण महत्व देना और मानव को वस्तु या
व्यापार की चीज़ नहीं समझना।
व्यक्ति की रक्षा करने का अर्थ है उसकी याद और आशा
को बचाये रखना। और इसका अर्थ है आज की परिस्थितियों के लिये ज़िम्मेदारी उठाना तथा व्यक्ति
की मर्यादा की रक्षा का पूर्ण दायित्व उठाना।
संत पापा ने कहा कि यूरोप को आशा
देने का अर्थ है मानव प्राणी को केन्द्र में रखना अर्थात नर और नारी के गुणों का विकास
और परिपोषण।
संत पापा ने आप्रवासियों के हितों की रक्षा में बोलते हुए कहा कि
हम भूमध्यसागर को आप्रवासियों का कब्रस्थान बनने नहीं दे सकते हैं। जो भी व्यक्ति यूरोप
की धरती में अपना कदम रखे उसे स्वीकार किया जाये और उसकी सहायता की जाये।
संत
पापा ने आशा व्यक्त की है कि यूरोपीय संघ एक साथ मिल कर न केवल आर्थिक विकास के लिये
कार्य करेगा पर मानव प्राणी की पवित्रता और उसकी अविच्छेदनीय गुणों की रक्षा के लिये
भी ताकि यूरोप एक ऐसा महादेश बन सके जो नर-नारी की चिन्ता करता, उसकी रक्षा करता और सबको
बचाता है।