2014-11-24 15:56:10

ख्रीस्त का राज्य


वाटिकन सिटी, सोमवार, 24 नवम्बर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 23 नवम्बर को, ख्रीस्त राजा महापर्व के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस ने पावन ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए 6 नये संतों की घोषणा की तथा पावन ख्रीस्तयाग के उपरांत भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया ।

उन्होंने प्रवचन में विश्व के महाराजा ख्रीस्त के राज्य पर प्रकाश डाला।
संत पापा ने कहा, ″आज की धर्मविधि विश्व के राजा ख्रीस्त की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। प्रस्तावना की सुन्दर प्रार्थना हमें याद दिलाती है कि उनका राज्य ‘सत्य और जीवन, पवित्रता तथा कृपा तथा न्याय, प्रेम एवं शांति का राज्य है।’

संत पापा ने नबी एजेकिएल के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि येसु अपने राज्य को स्थापित किस प्रकार करते हैं, उसे किस प्रकार इतिहास में प्रकट करते हैं तथा अभी वे हमसे क्या कहना चाहते हैं?

संत पापा ने पाठ का विश्लेषण करते हुए कहा, ″येसु ने हमारे प्रति अपनी सामीप्य तथा कोमलता द्वारा अपने राज्य की स्थापना की। वे एक गड़ेरिये हैं जिसके बारे प्रथम पाठ में नबी एज़ेकिएल बतलाते हैं। (एजे.34꞉11-12,15-17)

यह पाठ दिखलाता है कि गड़ेरिया का अपने झुण्ड के प्रति कितनी सहानुभूति तथा स्नेह है। प्रभु कहते हैं ″मैं स्वयं अपनी भेड़ों की सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा। भेड़ों के भटक जाने पर जिस तरह गडेरिया उनका पता लगाने जाता है, उसी तरह में अपनी भेडें खोजने जाऊँगा। कुहरे और अँधेरे में जहाँ कहीं वे तितर-बितर हो गयी हैं, मैं उन्हें वहाँ से छुडा लाऊँगा। प्रभु कहता है - मैं स्वयं अपने भेडें चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा। जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूँगा; जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगा; घायल हो गयी हैं, उनके घावों पर पट्टी बाँधूगा; जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा; जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।″

संत पापा ने कहा कि गड़ेरिये के ये सारे गुण येसु ख्रीस्त में पूर्ण होते हैं। वास्तव में वे अपने भेड़ों के सच्चे गड़ेरिये हैं तथा उनकी आत्मा के रक्षक भी।
हम में से जो कोई भी कलीसिया में गड़ेरिया होने के लिए बुलाये गये हैं, येसु के इस उदाहरण से अपने को अलग नहीं रख सकते। यदि हम ऐसा करते हैं तो हम ठेकेदार के समान हैं जो भेड़ों की देखभाल नहीं करता किन्तु ईश प्रजा भले गड़ेरियों की पहचान करना जानती है।

अपनी विजय के बाद जिसको उन्होंने पुनरुत्थान में प्राप्त किया क्या येसु ने अपने राज्य को अधिक विस्तृत कर दिया? प्रेरित संत पौलुस कुरिंथियों को लिखे अपने प्रथम पत्र में कहते हैं ″क्योंकि वह तब तक राज्य करेंगे, जब तक वह अपने सब शत्रुओं को अपने पैरों तले न डाल दें।″ (कुरि.15꞉25)

पिता ने सब कुछ पुत्र पर छोड़ दिया तथा पुत्र पिता इच्छा से संचालित है। येसु एक सांसारिक राजा नहीं हैं जो अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करता तथा उन्हें आदेश देता है किन्तु वह राजा हैं जो पिता ईश्वर की इच्छा का पालन करता है जिससे उनकी प्रेम एवं मुक्ति योजना पूर्ण हो जाए। इस तरह, पिता एवं पुत्र के बीच गहरा संबंध है।

ख्रीस्त का शासन काल एक लम्बी अवधि है जिसमें समस्त मानव जाति पुत्र के अधीन हो चुकी है तथा उनकी मध्यस्थता द्वारा पिता को समर्पित हो गयी है। येसु की मृत्यु द्वारा सबसे बड़ा शत्रु नष्ट किया जा चुका है।अंत में, जब सब कुछ येसु के अधीन होगा तब सब कुछ ईश्वर का सर्वोच्च अधिकार होगा।

सुसमाचार में येसु का राज्य हमें याद दिलाता है कि सामीप्य तथा कोमलता हमारे लिए भी जीवन के नियम हैं तथा इन्हीं के आधार पर हमारा न्याय किया जाएगा। संत मती रचित सुसमाचार के दृष्टांत में उसी महाविचार के दिन को दर्शाया गया है। ''तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, 'मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है; क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया। मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।' (मती.25꞉34-36) इस पर धर्मी उन कहेंगे, 'प्रभु! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया? हमने कब आपको परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया? कब आप को बीमार या बन्दी देखा और आप से मिलने आये?'' राजा उन्हें यह उत्तर देंगे, 'मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया'।″ (मती. 25꞉40)

मुक्ति की शुरुआत ख्रीस्त की प्रभुता स्वीकार करने में नहीं है बल्कि उनका अनुसरण करने में है। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार दया के कार्यों द्वारा किया जो इन कार्यों को अपनाता वह ख्रीस्त के सम्प्रभूता को स्वीकार करता है क्योंकि उसने अपने हृदय को ईश्वर की करूणा के लिए खुला रखा है। अपने जीवन की संध्या में हम अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम, सामीप्य, और कोमलता द्वारा परखे जायेंगे। ईश्वर के राज्य में प्रवेश पाने के लिए यही हमारा मापदण्ड होगा, उस दिन हम या तो ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे अथवा बाहर छोड़ दिये जायेंगे। यह हम पर निर्भर है कि हम प्रवेश करना चाहते हैं या नहीं। रोटी, कपड़ा, स्वीकृति, सहानुभूति तथा शिक्षा के ठोस कार्यों द्वारा हम अपने भाई बहनों के नजदीक रहें यदि हम उन्हें सचमुच प्यार करते हैं तब हम सबसे मुल्यवान उपहार येसु एवं उनके सुसमाचार को लोगों के बीच बांटेंगे।

संत पापा ने नये संतों की ओर इंगित करते हुए कहा, ″आज कलीसिया हमारे लिए इन संतों का उदाहरण प्रस्तुत करती है। प्रत्येक ने अपने तरीके से ईश्वर के राज्य की सेवा की है विशेषकर, ईश भक्ति के माध्यम से तथा अपने भाई-बहनों की उदार सेवा द्वारा। ईश्वर के प्रति प्रेम तथा पड़ोसी के प्रति प्रेम की आज्ञा के पालन में अपने को पूर्ण रूपेण समर्पित किया। ग़रीब, बीमार, वयोवृद्ध, तीर्थयात्री और असहाय लोगों की सेवा में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा।

अत्यन्त ग़रीब एवं नगण्य लोगों के प्रति उनका विशेष ध्यान ईश्वर के प्रति उनके गहरे प्यार को दर्शाता है। वास्तव में, वे ईश्वर के साथ गहरा व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने के कारण उनके प्रेम में सुदृढ़ हुए तथा उसी प्रेम से प्रेरित होकर पड़ोसियों को भी प्यार किया। महाविचार के समय उन्होंने उस मधुर आवाज को सुना, 'मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है।″ (मती.25꞉34)

संत घोषणा की धर्मविधि के द्वारा हम ईश राज्य के रहस्य को स्वीकार किया है तथा भेड़ों के लिए अत्यधिक स्नेह रखने वाले गड़ेरिये ख्रीस्त राजा को सम्मान प्रदान किया है।
हमारे सभी नये संत अपने साक्ष्य तथा मध्यस्थता द्वारा सुसमाचार के रास्ते पर चलने हमारे आनन्द की वृद्धि करें तथा सुसमाचार को हमारे जीवन के मार्गदर्शक की तरह स्वीकार करने के संकल्प को दृढ़ करे। आइये, हम उनके विश्वास एवं प्रेम का अनुसरण करते हुए उनके पदचिन्हों पर चलें, हम दुनियावी आकर्षण से विचलित न हों। हमारी माता एवं महारानी मरियम तथा सभी संत हमें स्वर्ग राज्य की ओर बढ़ने में मदद करें।

समारोही पावन ख्रीस्तयाग के उपरांत संत पापा ने सभी विश्वासियों का अभिवादन किया तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने कहा अति प्रिय भाईयो एवं बहनो,
ख्रीस्तयाग के अंत में मैं आप सभी का अभिवादन करता हूँ तथा सभी नये संतों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। विशेषकर, इटली और भारत के अधिकारिक प्रतिनिधियों का।
इटली के चार संतों ने इटली वासियों को सहयोग, सद्भाव तथा जनकल्याण में बढ़ाया है जिसके कारण उन्होंने भविष्य को आशा एवं एकजुटता के साथ स्वीकार किया तथा विपत्तिकाल में भी ईश्वर पर भरोसा नहीं छोड़ा।

दृढ़ विश्वास तथा धर्मसंघीय बुलाहत की पावन धरती भारत स्थित केरल के दो नये संतों की मध्यस्थता द्वारा भारत की कलीसिया में मिशनरी भावन में वृद्धि हुई है। जो अति उत्तम है। मेल-प्रेम एवं सद्भावना के उदाहरणों से प्रेरित होकर भारत क ख्रीस्तीय एकता एवं भाईचारे की भावना में बढ़ें।

अंत में संत पापा ने सभी को अपना आध्यात्मिक सामीप्य प्रदान करते हुए देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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