वाटिकन सिटी, शनिवार, 22 नवम्बर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ ″ख्रीस्तीय जीवन के लिए दो मुख्य
बातें आवश्यक हैं मन-परिवर्तन एवं मिशन। इन दोनों में गहरा संबंध है। वास्तव में, बिना
मन- परिवर्तन के सुसमाचार का प्रचार असंभव है जबकि सुसमाचार को अस्वीकार करने के कारण
मन-परिवर्तन भी नहीं हो सकता।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने 22 नवम्बर को कलीसियाई आंदोलन
और नए समुदायों के तृतीया विश्व कॉग्रेस में भाग ले रहे प्रतिनिधियों से कही।
वाटिकन
स्थित क्लेमेंटीन सभागार में तृतीया विश्व कॉग्रेस के 350 सदस्यों से मुलाकात कर संत
पापा ने उनके सम्मुख तीन मुख्य बिन्दुओं को रखा कहाः
प्रथम बिन्दु में उन्होंने
कहा कि वे अपनी विशिष्टता को बनाये रखें। प्रथम प्यार यानी शुरू के धर्मोत्साह का नवीनीकरण
करते रहें क्योंकि समय बीतने के साथ साथ आरामदायक जिंदगी की ओर प्रलोभन भी बढ़ता है।
विचारों की तुलना में वास्तविकता अधिक महत्वपूर्ण है। हमें अपने कारिज्म के स्रोत की
ओर लौटना चाहिए तथा आज की चुनौतियों को पहचानते हुए उनका प्रत्युत्तर देने का प्रयास
करना चाहिए।
दूसरे बिन्दु पर उन्होंने कहा, ″आज के लोगों को स्वीकार करना एवं
उनका साथ देना, विशेषकर युवाओं का।″ संत पापा ने कहा कि हम घायल मानवीय संस्थाओं के अंश
हैं जिसमें परिवार समेत विश्व की सभी संस्थाएँ कई समस्याओं के जूझ रहे हैं। आज के लोग
सही चुनाव करने में असमर्थ हैं जिसके कारण अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए
भी उन्हें दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है। ख्रीस्तीय शिक्षा में धीरज की आवश्यकता है
जो व्यक्ति के लिए उचित समय के इंतजार की माँग करता है। धैर्य ही सच्चे प्यार का उत्तम
मार्ग है जो उन्हें प्रभु के साथ सच्चा संबंध जोड़ने हेतु प्रेरित करता है।
तीसरे
बिन्दु के रूप में संत पापा ने कहा कि हमें महान वरदान पवित्र आत्मा की मुहर को कभी नहीं
भूलना चाहिए। यह सबसे बड़ी कृपा है जिसे ख्रीस्त ने क्रूस द्वारा हमारे लिए अर्जित किया
है। अपने महिमामय घावों को प्रकट करते हुए उन्होंने उस कृपा को हमें प्रदान की है। संसार
येसु को प्रभु तभी स्वीकार करेगी जब हम सभी ख्रीस्तीय एकता में बंध कर उनका साक्ष्य प्रस्तुत
करेंगे।
संत पापा ने सभी प्रतिनिधियों को सलाह देते हुए कहा कि कलीसियाई परिपक्वता
हासिल करने के लिए कारिज्म को सजीव बनाये रखें तथा एक-दूसरे की स्वतंत्रता का कद्र करें
साथ ही समुदाय से सदा जुड़कर रहें।