2014-11-19 16:14:27

वर्ष ' अ ' का तैंतीसवाँ रविवार,16 नवम्बर, 2014


सूक्ति ग्रंथ 31 : 10: 13, 19-20, 30-31
1 थेसलनीकियों के नाम 5 : 1-6
संत मत्ती 25 : 14-30
धन्य मदर तेरेसा की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को कोलकाता की धन्य मदर तेरेसा के बारे में बतलाता हूँ। धन्य मदर तेरेसा जब जीवित थीं तब कुछ लोगों ने उन पर आरोप लगाये थे कि वे बच्चों का धर्म परिवर्तन करा रही हैं। जब मदर तेरेसा को इस संबंध में कचहरी में हाज़िर हुईं तब वहाँ न्यायधीश ने उनसे अनेक सवालों किये। मदर तेरेसा के कार्यां के बारे में सवाल करने के बाद न्यायधीश ने मदर तेरेसा से एक सीधा सवाल किया कि उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह बच्चों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं। इसके जवाब में मदर तेरेसा ने एक बच्ची को अपनी गोद में उठाया उसे प्यार से पुचकारा और कहा इस बच्ची को किसी ने कचड़े की पेटी में फेंक दिया था। कचड़े की पेटी में बच्ची रो रही थी तब उन्होंने जाकर उठाया और घर ले आयी और तब से वह बच्ची उसके साथ में है। फिर मदर तेरेसा ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि बच्ची का धर्म क्या था उसे यह भी मालूम नहीं था कि बच्ची क्या भाषा को बोलती है। उसे कुछ भी पता नहीं था। हाँ, उसे यह तो पता हुआ था कि वह कचड़े की पेटी में डाल दी गयी नादान मानव शिशु है। और इसी लिये उसने उसे उठा लाया है। न्यायधीश का अगला सवाल था आप इस बच्ची को क्या देते हैं । मैं क्या दूँ इस बच्ची को जो कुछ भी अच्छी चीजें मेरे पास हैं और जो मैं दे सकती हूँ मैं इसे देती हूँ। सबसे पहले तो मैने इसे अपना प्यार दिया फिर मैं इस बच्ची को अपना समय देती हूँ इसका हरदम ख्याल करती हूँ और इसे भोजन देती हूँ। बस इतना ही।तब मदर तेरेसा ने कहा मेरे बस जो भी बहूमूल्य वस्तु है वह मैं इस बच्ची को देती हूँ। उन बहुमूल्य वस्तुओं में सबसे उत्तम हैं ईसा मसीह क्योंकि मैं जो भी करती हूँ उसी के नाम पर करती हूँ और इसीलिये मैं ईसा मसीह को भी इस बच्ची को देती हूँ और देती रहूँगी।
मित्रो, आप रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘अ’ के तैंतीसवें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन-चिन्तन कर रहें हैं। आज प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि उन्होंने हम बहुत से वरदान दिये हैं और उन वरदानों को हमें दूसरों को देना है ताकि उस वरदान से हमारा जीवन प्रसन्न रहे और औरों का जीवन भी सुन्दर और अर्थपूर्ण बन सके। प्रभु हमें बताना चाहते कि उन्होंने हमें अनेक कृपायें दी है हमारे जीवन को अनेक गुणों से सजाया हमें अनेक अच्छाइयाँ से सिंगारा है जिसका हम उपयोग करें और जब उसके दरबार में वापस लौटें तो ईश्वर के लिये एक अद्वितीय उपहार बन सकें।
आइये, आज के प्रभु के दिव्य वचनों पर चिन्तन करें जिसे संत मत्ती रचित सुसमाचार के 25वें अध्याय के 14 से 30 पदों से लिया है।
14) ''स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी।
15) उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियॉ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया।
16) जिसे पाँच हज़ार अशर्फ़ियां मिली थीं, उसने तुरन्त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच हज’ार अशर्फियाँ कमा लीं।
17) इसी तरह जिसे दो हजार अशर्फ़ियाँ मिली थी, उसने और दो हज़ार कमा ली।
18) लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फि’याँ मिली थी, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्वामी का धन छिपा दिया।
19) ''बहुत समय बाद उन सेवकों के स्वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया।
20) जिसे पाँच हजार असर्फियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हजार ला कर कहा, 'स्वामी! आपने मुझे पाँच हजार असर्फियाँ सांैंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हजार कमायीं।'
21) उसके स्वामी ने उस से कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।'
22) इसके बाद वह आया, जिसे दो हजार अशर्फ़ियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फ़ियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।'
23) उसके स्वामी ने उस से कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आन्नद के सहभागी बनो।'
24) अन्त में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने कहा, 'स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं।
25) इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर अपना धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इस लौटाता हूँ।'
26) स्वामी ने उसे उत्तर दिया, 'दुष्ट! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ,
27) तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।
28) इसलिए ये हज़ार अशर्फियाँ इस से ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो;
29) क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।
30) और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।
वरदान
मित्रो, मेरा विश्वास है आपने प्रभु के वचनों को ध्यान से पढ़ा है और प्रभु के दिव्य वचनों ने आप के अन्तरतम को अवश्य ही छूआ है। मित्रो, सुना आपने प्रभु आज के सुसमाचार में वरदानों के बारे में बातें करते हैं । वे हमें बताते हैं कि हर व्यक्ति को वरदान दिये गये हैं। वरदान क्या हैं ? ये दान हैं। ये हमें मुफ़्त में दिये गये हैं। हमने इन्हें माँगा नहीं, न ही हमने इसके लिये कोई निवेदन किया था। मित्रो, क्या आपने कभी वरदानों की गिनती की है। मैं सोचता हूँ आपको इतना तो समय अवश्य ही मिला होगा कि आपने ईश्वर के सामने खड़े होकर अपने वरदानों की गिनती अवश्य की होगी। इसके पहले की वरदानों और ईश्वर प्रदत्त गुणों की गिनती करें आइये हम वरदान संबंधी उन बातों को सुनें जिसे लोग प्रायः हमें सुनाया करते हैं।

वरदान नहीं मिलना
मित्रो, वरदान उपहार या गिफ्ट के बारे में मैंने चार बातें सुनी हैं। पहली बात तो कि लोग कहते हैं कि उन्हें ज्यादा वरदान मिला ही नहीं है जो भी है यह उनकी कमाई है। कई लोग तो वरदान कहने से सिर्फ उन बातों को वरदान के रूप में गिनती करते हैं जो धन दौलत के रूप में मिलता हो या ऐसे उपहार को वरदान मानते हैं जिन्हें व्यक्ति उन्हें मुफ़्त में दे दिये हों। ऐसा प्रायः तब होता है जब व्यक्ति अपना जन्म दिन मनाता हो। तो व्यक्ति उस दिन उन उपहारों की गिनती करता है जिसे उसे उसके दोस्तों ने उन्हें दी हैं। मित्रो, यहाँ पर व्यक्ति भूल जाता है कि मानव जीवन ही सबसे बड़ा दान है। ऐसे लोगों को भगवान से सिर्फ एक ही प्रार्थना होती है भगवान मुझे और देना।

दूसरों से कम वरदान
मित्रो, दूसरी बात लोग वरदान के बारे मे करते हैं वह है कि वे कहते हैं कि उन्हें दूसरों से कम वरदान मिले हैं। अर्थात् व्यक्ति वरदान के मामले मे खुद को दूसरों से तुलना करने लगते हैं। कई बार मैंने लोगों को यह कहते सुना है कि भगवान ने दूसरों को ज्यादा दिया है। दूसरे परिवार को बाल-बच्चे दिये धन दौलत दिये दोस्त- यार दिये पर मुझे तो बहुत कम वरदान दिये। कभी-कभी तो व्यक्ति यह भी कह देता है कि भगवान पक्षपात करता है दूसरों को अच्छी चीजें देता है पर मुझे तो अधिक दुःख दिया है। ऐसे लोगों की भगवान से सिर्फ एक ही प्रार्थना होती है प्रभु हमें धन दौलत देना और सुख का वरदान देना।
सिर्फ़ दुःख का वरदान
मित्रो, कुछ अन्य लोग हैं जो यह कहते हैं कि ईश्वर उन्हें कुछ दिया ही नहीं है जो भी दिया वह सिर्फ दुःख ही दुःख है। वे हाय-हाय करते रहते हैं और उनका सारा जीवन बस ईश्वर से व विभिन्न प्रकार की माँग या याचना करने में बीत जाता है । इनके जीवन में धन्यवाद की प्रार्थना होती ही नहीं है। वे भगवान से सिर्फ शिकायत ही करते हैं कि भगवान ने उन्हें कभी भी वह नहीं दिया जिसकी उन्हें ज़रुरत थी ।
सबकुछ वरदान
मित्रो,वरदान के संबंध में मैंने कुछ ऐसे लोगों से भी मुलाकात की है जिनके लिये जीवन में जो कुछ भी होता है वह भगवान की ओर से वरदान ही है। उनके जीवन में जो भी है जो भी हो रहा है और जो कुछ भी होगा उसे वे प्रभु की इच्छा समझते हैं और उसे स्वीकार करते हैं और ईश्वर को वे धन्यवादी दिल से चढ़ाते रहते हैं। चाहे वे इसे समझते हैं अथवा नहीं वे इसे खुले दिल से स्वीकार करते जाते हैं। ऐसे लोग भगवान से सिर्फ एक ही प्रार्थऩा करते है कि हे प्रभु मेरे जीवन में जो कुछ भी देना बस मुझे वो शक्ति देना कि हम उसे समझ सकें। और उसे वरदान या तेरा उपहार या तेरी इच्छा समझ कर स्वीकार कर सकें। मित्रो, ऐसे लोग ही प्रभु की हर इच्छा को अपने जीवन में एक वरदान बना देते हैं और ऐसे लोगों के लिये क्रूस को खुशी से ढोना ही जीवन का मार्ग बन जाता है और लोगों के लिये खुशियाँ बाँटने में उन्हें दोहरा आनन्द मिलता हैं ।
वरदानों का सदुपयोग
मित्रो, आज हम इस बात पर भी ध्यान करें कि तीसरा व्यक्ति क्यों अपने उपहार का सदुपयोग नहीं किया और अपने मालिक को वही लौटाया जो उसके मालिक ने दिया था। पहली कमजोरी जो इस तीसरे व्यक्ति में है वह है कि वह बहाना बनाने में माहिर है। उसके मन में एक दूसरी बात है वह है कि वह सोचता है कि उसने उस उपहार का कोई दुरुपयोग तो नहीं न किया बस उसे सुरक्षित रखा और मालिक को लौटा दिया। तीसरी बात इस व्यक्ति के मन में है वह यह कि मालिक ने उसे कम दिया है। हो सकता है कि मालिक ने औरों को कुछ अधिक दिया और मुझे कम दिया इसलिये मैं मालिक को अपनी नाराजगी दिखाउँगा। मित्रो, जो भी कारण रहा हो लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि व्यक्ति ने उस उपहार को अधिक बनाने कि लिये कुछ भी नहीं किया।
वरदानों को बाँटें
मित्रो, प्रभु तो चाहते है कि हम ईश्वर से मिले वरदान का सदुपयोग करें और उसे दोगुना कर दें। हम समय का सदुपयोग करें, हम मीठा वचन बोलें, गिरे हुओँ को उठायें, हम क्षमा करें, माता-पिता का सम्मान करें, सर्वधर्मसमभाव रखें ईमानदारी से अपने छोटे दायित्वों को निभायें और धन्य मदर तेरेसा की तरह बच्चों को प्यार दें और धर्म अर्थात् भलाई का प्रचार करें और उड़ीसा में हुए अधर्म अर्थात् धर्म के नाम पर हिंसा जैसे कुकृत्य का सदैव विरोध करें। प्रभु हमें सच में धनी बना देंगे और कहेंगे शाबाश मेरे सेवक तुम छोटी बातों में ईमानदार रहे तुम्हें बड़ा दायित्व दिया जायेगा। इससे बढ़कर हमारे ओर से प्रभु के लिये गिफ्ट और जीवन की खुशी और हो ही क्या सकती है।








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