वाटिकन सिटी, शनिवार, 18 अक्तूबर 2014 (वीआर अंग्रेजी)꞉ ″विश्वव्यापी भूखमरी की समस्या
पर जीत पाने हेतु हमें अपनी विकास पद्धतियों और वैश्विक व्यापार नियमों में परिवर्तन
लाना होगा तथा केवल लाभ पर दृष्टि लगाने का अंत करना होगा।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस
ने 16 अक्तूबर को, विश्व खाद्य दिवस पर अपने संदेश में कही।
संयुक्त राष्ट्रसंघ
के खाद्य एवं कृषि संगठन के अध्यक्ष जोसे ग्रासियानो दा सिलवा को प्रेषित संदेश में संत
पापा ने अपने प्रेरितिक पत्र ‘एवन्जेली गौदियुम’ की बातों को दोहराते हुए कहा, ″विश्व
में खाद्य पदार्थ की एक बड़ी मात्रा नष्ट की जाती है तथा लाभ पाने की होड़ पर उसका मूल्य
बढ़ा दिया जाता है।″ उन्होंने कहा कि हमें यह ख्याल रखने की आवश्यकता है कि जो कोई भूख
एवं कुपोषण के शिकार हैं वे भी मानव हैं तथा उनकी मानव प्रतिष्ठा किसी भी आर्थिक गिनती
से बढ़कर हैं।
विश्व खाद्य दिवस की विषयवस्तु, ″पारिवारिक खेती″ पर ग़ौर करते
हुए संत पापा ने कहा कि यह बिलकुल सटीक है क्योंकि यह ग्रामीण परिवारों की पहचान एवं
उनकी मदद के प्रति हमारी भूमिका की याद दिलाती है। उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा
कि स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिवारों को प्रोत्साहन देने का हमारा
प्रयास वास्तविक आवश्यकता को पूरा करने में असमर्थ है जिसे हमें चुनौती देने की आवश्यकता
है।
संत पापा ने खाद्य सुरक्षा पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मुद्दा दुनिया
की आबादी के कमज़ोर वर्ग पर बुरा प्रभाव डालता है जो सदा हिंसक संघर्षों के शिकार होते
हैं।
संत पापा ने कहा कि भाई-बहनों के प्रति हमारा स्नेह एवं सहानुभूति सृष्टि
की रक्षा हेतु हमें प्रेरित करे जो न केवल ब्रहमाण्ड के भविष्य के लिए आवश्यक है किन्तु
मानव परिवार को सौंपे जाने के कारण हम पर उसकी जिम्मेदारी भी है। संत पापा ने कहा
कि भूखमरी पर जीत पाने हेतु यह काफी नहीं है कि भूखे लोगों को आवश्यक साधन उपलब्ध करा
दिया जाए बल्कि मदद देने के प्रतिमान तथा विकास पद्धतियों में परिवर्तन करना होगा। उत्पादन
तथा व्यापार के नियम तथा कृषी संबंधी सामानों के व्यापार के अंतरराष्ट्रीय नियमों में
बदलाव लाना होगा।
संत पापा ने कहा कि कार्य, उसके उद्देश्य, आर्थिक गतिविधि,
खाद्य उत्पादन एवं पर्यावरण सुरक्षा आदि के प्रति हमारे दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा
क्योंकि यथार्थ भविष्य में शांति निर्माण का यही एकमात्र रास्ता है।