2014-10-13 08:56:28

प्रेरक मोतीः धर्मवीर सन्त एडवर्ड (1003 - 1066)


वाटिकन सिटी, 13 अक्टूबर सन् 2014:

इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड का जन्म सन् 1003 ई. तथा निधन सन् 1066 ई. में हो गया था। वे इंग्लैण्ड के राजा एथलरेड तृतीय तथा नोरमाण्डी के ड्यूक की बेटी एम्मा के सुपुत्र थे। जब एडवर्ड दस वर्ष के थे तब डेनमार्क के स्वेन तथा उनके बेटे कैन्यूट ने इंग्लैण्ड पर आक्रमण कर दिया था जिसके चलते एडवर्ड अपनी माँ एम्मा के साथ नोरमाण्डी चले गये थे।


सन् 1016 ई. में, राजा एथेलरेड की मृत्यु के बाद, एडवर्ड की माँ रानी एम्मा पुनः इंग्लैण्ड लौट आई जबकि एडवर्ड नोरमाण्डी में ही रहे। राजा एथेलरेड की मृत्यु के बाद स्वेन के बेटे कैन्यूट ने एडवर्ड की माँ एम्मा से विवाह रचा लिया था तथा ख़ुद को इंग्लैण्ड का राजा घोषित कर दिया था। इस दौरान, एडवर्ड नोरमाण्डी में ही रहकर निष्कासन में जीवन यापन करते रहे थे।


कैन्यूट तथा एम्मा के बेटे तथा अपने सौतेले भाई हार्थाक्नूट की मृत्यु के बाद राज दरबार के प्रवक्ता अर्ल गॉडविन की मदद से एडवर्ड को पुनः इंग्लैण्ड बुलाया गया तथा इंग्लैण्ड का राजा घोषित कर दिया गया। राजा एडवर्ड ने गॉडविन की बेटी इडिथ को पत्नी रूप में चुना तथा उनसे विवाह रचा लिया। इस प्रकार 29 वर्षों के निष्कासन के बाद एडवर्ड पुनः अपनी मातृभूमि इंग्लैण्ड पहुँचे थे।


उनके मुकुटाभिषेक तक इंग्लैण्ड का इतिहास अशांति से भरा रहा था तथा सभी ओर सत्ता की होड़ मची हुई थी। इस परिस्थिति में शान्तिप्रिय राजा एडवर्ड ने मेल मिलाप के प्रयास आरम्भ किये। उन्होंने लोगों पर लगाये गये अनेक करों को रद्द कर दिया, कई प्रशिक्षण केन्द्र खोले अस्पतालों एवं गिरजाघरों का निर्माण करवाया तथा राज दरबार से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये कई रचनात्मक कदम उठाये किन्तु उन्हें भी कई विरोधों का सामना करना पड़ा।


नोरमाण्डी से शिक्षा दीक्षा प्राप्त कर लौटे एडवर्ड के काम करने के तौर-तरीके नोरमान लोगों की तरह थे तथा नोरमान लोगों में उनकी रुचि अधिक थी जिसके लिये उन्हें अपने ससुर अर्ल गॉडविन के विरोध का भी सामना करना पड़ा। फिर, एडवर्ड की कोई सन्तान नहीं थी इसलिये गॉडविन के दो बेटों के अतिरिक्त, कई ऐसे थे जो उनके बाद राज सिंहासन पर बैठने की होड़ में लगे थे।


हालांकि, इन नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद, राजा एडवर्ड ने लोगों के लिये कई कल्याणकारी पहलों को आरम्भ किया तथा देश के धार्मिक मामलों में अधिकाधिक रुचि दर्शाई। वेस्टमिन्सटर में उन्होंने सेन्ट पीटर्स मठ एवं महागिरजाघर का निर्माण करवाया था जहाँ आज भी उनकी समाधि मौजूद है। उनकी धर्मपरायणता एवं उदारता ने उन्हें धर्मवीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शासनकाल के बारे में लिखा गया हैः "24 वर्षीय राजा एडवर्ड का शासनकाल अखण्डित एवं अटूट शांति का समय था, देश समृद्ध होता गया, उनके राजपाठ के अधीन संशोधित गिरजाघरों का उदय देखा गया, कमज़ोर वर्ग सुरक्षा में जीवन यापन करते रहे तथा युग युगों तक लोग स्नेहपूर्वक भले और नेक सन्त एडवर्ड की चर्चा करते रहे।"


05 जनवरी, सन् 1066 ई. को, लन्दन में, धर्मवीर राजा एडवर्ड का निधन हो गया। सन् 1161 ई. में सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर तृतीय ने उन्हें सन्त घोषित किया था। धर्मवीर सन्त एडवर्ड का पर्व 13 अक्टूबर को मनया जाता है।



चिन्तनः "वे मुझे धक्का दे कर गिराना चाहते थे, किन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की। प्रभु ही मेरा बल है और मेरे गीत का विषय, उसने मेरा उद्धार किया। धर्मियों के शिविरों में आनन्द और विजय के गीत गाये जाते हैं। प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है; प्रभु का दाहिना हाथ विजयी है, प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है। मैं नहीं मरूँगा, मैं जीवित रहूँगा, और प्रभु के कार्यों का बखान करूँगा।" (स्तोत्र ग्रन्थ, भजन संख्या 118: 12-17)











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