कलीसिया चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में पड़े परिवारों के लिए स्थान
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 9 अक्तूबर 2014 (वीआर सेदोक)꞉″चुनौतीपूर्ण प्रेरितिक परिस्थिति
में काथलिक कलीसिया किस प्रकार परिवारों का साथ दे सकती है, विशेषकर, अलगाव, तलाक, दूसरी
शादी, एकल माता-पिता, किशोर माताओं तथा टूटे परिवार के बच्चों की परिस्थिति में? समलैंगिकों
के प्रति कलीसिया की क्या प्रेरितिक पहुँच है?″ ये थीं विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के
8 वीं सत्र की प्रमुख विषयवस्तुएँ।
बुधवार 8 अक्तूबर को, 8 वीं सत्र की अध्यक्षता
ब्राजील के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल रेमंडो दमाशेनो असीस ने की। अदूरदर्शी कानूनी
दृष्टिकोण पर चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि कलीसिया इन चुनौतियों की गहराई में जाकर,
सभी का स्वागत करना चाहती है जिससे कि वह सभी के लिए एक पैतृक गृह बन सके और जहाँ सभी
लोग अपने जीवन की कठिनाईयों के बावजूद स्थान पा सकें।
वैवाहिक जीवन में संकट
काल से गुजर रहे दम्पतियों की मदद करने वाले, सिनॉड में भाग ले रहे दक्षिण अप्रिका के
स्टेफन एवं सांद्रा कोनवे ने कहा, ″आर्थिक परिस्थितियाँ, अविश्वास तथा परिवार के मूल
आदि मुद्दे परिवार की आम समस्याएँ हैं, किन्तु एकल वैवाहिक जीवन शैली भी एक प्रमुख समस्या
है जिसकी शुरूआत भले ही अच्छी भावना से होती हो किन्तु समयानंतराल में यह दम्पति के बीच
के संबंध को तोड़ने में कील साबित होती है।″
उन्होंने बतलाया कि एक-दूसरे को
चोट देने एवं लम्बे समय तक नराजगी में बीताने के कारण, दूसरी शादी किये हुए एक दम्पति
से उनकी मुलाकात हुई थी जो कलीसिया के संस्कारों से बहिष्कृत थी। उन्होंने कहा, ″युखरिस्त
संस्कार से बहिष्कृत होने के कारण वे निरंतर पूर्व के रिश्ते की याद करते एवं बीती गलती
को याद कर अपने में दोषी महसूस करते हैं।″
स्टेफन एवं सांद्रा कोनवे ने
समलैंगिक विवाह पर भी अपने विचार प्रकट किया। उन्होंने बच्चों के विषय में भी कई
टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने कहा कि परिवार में माता-पिता अपने बच्चों को सबसे कीमती उपहार
के रूप में, उन्हें स्वतंत्रता प्रदान कर सकते हैं जिसे बच्चे अपने जीवन साथी का चुनाव
खुद कर सकें तथा वैवाहिक संबंध को प्रथम स्थान दे सकें।