2014-10-07 11:45:40

प्रेरक मोतीः सन्त अरतालदुस (1101ई. – 1206ई.)


वाटिकन सिटी, 07 अक्टूबर सन् 2014:

अरतालदुस का जन्म, फ्राँस के सेवॉय प्रान्त स्थित सोदोनोद दुर्ग में, सन् 1101 ई. में हुआ था। 18 वर्ष की आयु में अरतालदुस ड्यूक आमादेयुस तृतीय के दरबार गये थे किन्तु लगभग दो वर्ष बाद ही, उन्होंने पोर्तेस में सन्त ब्रूनो को समर्पित कारथुसियन मठवासी जीवन का वरण कर लिया था। कई वर्षों की पुरोहिताई एवं मठवासी जीवन यापन के उपरान्त "ग्रान्दे चारत्रुस" नामक मठ के प्राचार्य ने अरतालदुस को वालरोमनी की घाटी में एक मठ की स्थापना हेतु प्रेषित कर दिया था। पोर्तेस से अपने छः अन्य मठवासी धर्मबन्धुओं के साथ मिलकर अरतालदुस ने वालरोमनी में सन्त ब्रूनो को समर्पित धर्मसमाज के एक मठ की स्थापना की। समुदाय फलने-फूलने लगा था किन्तु, दुर्भाग्यवश, अचानक आग लगी और सबकुछ आग में भस्म हो गया। अरतालदुस को सबकुछ नये सिरे से आरम्भ करना पड़ा। आरवियर्स नदी के किनारे उन्होंने ज़मीन ख़रीदी तथा वहाँ अपने धर्मसमाज का मठ स्थापित किया।


सन्त ब्रूनो के पदचिन्हों पर चलते हुए पुरोहित अरतालदुस को आरवियर्स नदी तट पर स्थापित मठ से भी चले जाना पड़ा। सन्त पापा के परामर्श पर अस्सी वर्ष की आयु में उन्होंने अपने मठ की कोठरी का परित्याग कर दिया। वृद्धावस्था के बावजूद उन्हें बेयली का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था हालांकि, दो वर्ष बाद, उन्होंने धर्माध्यक्षीय पद त्याग दिया था तथा पुनः आरविर्यस मठ लौट गये थे जहाँ वे अपनी जीवन के अन्तिम दिन तक रहे। उनके अन्तिम दिनों में लिनकन के सन्त ह्यू उनसे मिलने आये थे जो उन दिनों फ्राँस की यात्रा पर थे।


सन्त ह्यू के जीवन चरित के अनुसार, इस अवसर पर, सन्त ह्यू ने अरतालदुस को फटकार भी बताई थी इसलिये कि अरतालदुस ने, सांसारिक माया-मोह को त्यागकर पूर्णतः ईश्वर को समर्पित रहने की शपथ ग्रहण करनेवाले, समुदाय के समक्ष उनसे राजनीति का समाचार पूछा था। सन् 1206 ई. में, मठवासी पुरोहित अरतालदुस का निधन हो गया था। फ्राँस के बेयली धर्मप्रान्त ने 1834 ई. में, कारथुसियन धर्मसमाज द्वारा धन्य कहलाये जानेवाले सन्त अरतालदुस की भक्ति की पुष्टि की थी। निधन के समय, कारथुसियन धर्मसमाजी और मठवासी अरतालदुस की उम्र 105 वर्ष की थी। उनका पर्व 07 अक्टूबर को मनाया जाता है।


चिन्तनः "जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे"(प्रज्ञा ग्रन्थ 3:9)।








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