उन लोगों का कोई भविष्य नहीं, जिनका पीढ़ी के साथ संबंध नहीं
वाटिकन सिटी, सोमवार, 29 सितम्बर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 28
सितम्बर को, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, हज़ारों वयोवृद्धों एवं ख्रीस्तीय
विश्वासियों के साथ पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा अंत में भक्त समुदाय के साथ देवदूत
प्रार्थना का पाठ किया।
उन्होंने प्रवचन में कहा, ″आज का सुसमाचार पाठ मुलाकात
का सुसमाचार है। यह एक युवा एवं वयोवृद्ध के बीच आनन्द, विश्वास एवं आशा से पूर्ण मुलाकात
है। मरिया किशोरावस्था में थी एवं इलिजाबेथ बुढ़ापे की देहलीज पर किन्तु ईश्वर ने
उस पर करूणा प्रदर्शित की और अब उसके गर्भ के छः महीने हो चुके थे, वह एक शिशु को जन्म
देने की तैयारी कर रही थी।
संत पापा ने कहा कि माता मरिया यहाँ हमारे लिए एक
उत्तम नमूना पेश करती है। वह अपनी वयोवृद्ध कुटुम्बनी इलिजाबेथ से मिलने जाती है, उनके
साथ रहती तथा निश्चय ही, उसकी मदद करती है किन्तु उससे भी बढ़कर वह अपनी वयोवृद्ध कुटुम्बनी
से खुद के लिए शिक्षा ग्रहण करती है। संत पापा ने कहा कि वयोवृद्धों को जीवन का अनुभव
होता है।
संत पापा ने पाठ पर चिंतन करते हुए कहा कि यह पाठ ईश्वर की दस आज्ञाओं
में से चौथी आज्ञा पर प्रकाश डालता है, ″अपने माता-पिता का आदर करों जिससे तुम बहुत दिनों
तक उस भूमि पर जीते रहो, जिसे तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हें प्रदान करेगा।″ (निगमन 20꞉12)
संत
पापा ने कहा, ″जिन लोगों का अपने रिश्तेदारों के साथ कोई संबंध नहीं होता तथा जिन्हें
एक बच्चे के रूप में माता-पिता के हाथ से जीवन प्राप्त करने के प्रति कृतज्ञता की भावना
नहीं होती है, उन लोगों का कोई भविष्य नहीं होता। माता-पिता जिन्होंने हमें जीवन प्रदान
किया उनके प्रति कृतज्ञ होना, जीवन दाता पिता ईश्वर के प्रति कृतज्ञता है किन्तु ऐसे
भी युग रहे हैं जब जटिल ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक कारणों से युवा पढ़ी यह महसूस करती है
कि वह अपने माता-पिता के हस्तक्षेप से दूर रहे। यह एक प्रकार का युवा विद्रोह है किन्तु
जब तक पीढ़ियों के बीच सम्पर्क की कमी हो, नये रिश्ते स्थापित न हों और अंतर-पीढ़ी संतुलन
में अविश्वास हो तो उसका परिणाम सभी के लिए दरिद्रता की एक गंभीर परिस्थिति को उत्पन्न
करेगा। समाज में उभरती हर स्वतंत्रता का अर्थ सही नहीं होता है और वह अधिनायकवाद के रूप
में बढ़ता है।
प्रेरित संत पौलुस द्वारा तिमोथी तथा ख्रीस्तीय समुदाय के सम्बोधन
में हम यही संदेश पाते हैं। येसु परिवार की संहिता को नष्ट नहीं करते तथा उसे नयी पीढ़ी
के लिए हस्तांतरित करते हैं बल्कि वे उसे सम्पूर्णता प्रदान करते हैं। ईश्वर ने एक नवीन
परिवार की स्थापना की है जिसमें खून के रिश्ते का अधिक महत्व नहीं होता किन्तु पिता ईश्वर
की इच्छा पूरी करने में होता है। येसु एवं पिता ईश्वर का प्यार, माता-पिता, भाई-बहन एवं
दादा दादी सभी के प्यार को पूरा कर देता है। सुसमाचार एवं पवित्र आत्मा द्वारा पारिवारिक
संबंध को नवीनता मिलती है। यही कारण है कि संत पौलुस तिमोथी से जो एक पुरोहित होने के
नाते समुदाय के पिता स्वरूप थे उनसे आग्रह कर रहे हैं कि वयोवृद्ध एवं परिवार के सभी
सदस्यों का सम्मान किया जाए।
संत पौलुस एक पिता के रूप में तिमोथी को शिक्षा देते
हुए कह रहे हैं, ″बड़े-बूढ़े को कभी नहीं डाँटो, बल्कि उससे इस प्रकार अनुरोध करो, मानो
वह तुम्हारा पिता हो। युवकों को भाई, वृद्धाओं को माता और युवतियों को बहन समझ कर उनके
साथ शुद्ध मन से व्यवहार करो।″ (1तिम. 5꞉1) इस प्रकार परिवार का शीर्ष ईश्वर की इच्छा
पूरी करने से इन्कार नहीं कर सकता किन्तु उससे भी बढ़कर, ख्रीस्त का प्रेम उन्हें इस
बात के लिए बल प्रदान करता है। यद्यपि कुँवारी मरिया मसीहा की माता बनीं तथापि उन्होंने
अपने को ईश्वर के प्रेम से प्रेरित समझा और शीघ्रता से अपनी वृद्ध कुटुम्बनी की सेवा
के लिए चल पड़ी।
अतः हम इस प्रति मूर्ति की ओर दृष्टि लगायें जो आनन्द, आशा,
विश्वास और उदारता से पूर्ण हैं। हम चिंतन करें कि कुवाँरी मरिया ने इलिज़ाबेथ के घर
जाकर उनसे म़ुलाकात किया। उन्होंने उनकी खुशी इज़हार करते हुए गाये गये भजन को भी सुना,
जिसे आज हमने भी सुना है, ″प्रभु-ईश्वर! युवावस्था से तू ही मेरी आशा और भरोसा है। अब
मैं बूढ़ा हो चला हूँ, मुझे नहीं छोड़; मैं दुर्बल हो गया हूँ, मुझे नहीं त्याग; प्रभु!
अब मैं बूढ़ा हो चला, मेरे केश पक गये; फिर भी, मेरा परित्याग न कर, जिससे मैं इस पीढ़ी
के लिए तेरे सामर्थ्य का, भावी पीढ़ियों के लिए तेरे पराक्रम का बखान करूँगा। युवा
मरिया ने उस भजन को सुनकर उसे अपने हृदय में संचित रखा। इलिजाबेथ एवं जकेरियस से प्राप्त
प्रज्ञा ने उसे धनी बनाया। यद्यपि माता-पिता के रूप में अनुभवी नहीं थे क्योंकि उनके
लिए भी यह पहला अवसर था तथापि वे ईश्वर पर विश्वास एवं उनसे मिलने वाली आशा के अनुभवी
थे। संत पापा ने कहा कि यही सभी लोगों को करना चाहिए। कुवाँरी मरिया वयोवृद्धों को सुनती
थी, उनकी प्रज्ञा को संचित रखती थी और एक नारी, एक पत्नी और एक माता रूप में यही उसके
लिए बहुमूल्य था।
कुँवारी मरिया हमारे लिए युवा पीढ़ी एवं वृद्धों के बीच मुलाकात
का उदाहरण प्रस्तुत करती है। भविष्य को बनाये रखने के लिए हम लोगों से संबंध बनाये रखें।
युवाओं में बल होता है जिनके द्वारा वे आगे बढ़ सकते हैं जब कि वयोवृद्ध में धन एवं प्रज्ञा
की शक्ति होती है।