फ्राँस के गैसकोनी ज़िले के पोई गाँव में विन्सेन्ट
डे पौल का जन्म, 24 अप्रैल सन् 1581 ई. में, एक साधारण ग्रामीण परिवार में हुआ था। फ्राँसिसकन
धर्मसमाजियों के अधीन विन्सेन्ट डे पौल की शिक्षा दीक्षा सम्पादित हुई। शिक्षा में विन्सेन्ट
इतने प्रवीण थे कि चार साल के अध्ययन के बाद ही एक सज्जन ने उन्हें अपने बच्चों का शिक्षक
नियुक्त कर दिया था।
सन् 1596 ई. में, ईशशास्त्र के अध्ययन हेतु विन्सेन्ट
ने टोलूज़ विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था तथा सन् 1600 ई. में पुरोहित अभिषिक्त
कर दिये गये थे। सन् 1605 ई. में विन्सेन्ट जब मारसेल्स से नारबोन तक समुद्री यात्रा
कर रहे थे तब उन्हें तुर्की के समुद्री डाकुओं ने पकड़ लिया था। डाकू उन्हें ट्यूनिस
ले गये जहाँ उन्होंने युवा पुरोहित विन्सेन्ट को गुलाम रूप में बेच दिया। दो वर्षों तक
गुलाम रहने के बाद विन्सेन्ट वहाँ से भागने में सफल हो गये।
ट्यूनिस से लौटने
के बाद दो वर्षों तक विन्सेन्ट रोम में अध्ययनरत रहे जहाँ से उन्हें एक मिशन पर फ्राँस
के सम्राट हेनरी चतुर्थ के यहाँ प्रेषित किया गया। मार्ग्रेट दे वालोईस में वे पल्ली
पुरोहित रहे और बाद में कुछ समय के लिये उन्होंने क्लीशी पल्ली में प्रेरितिक सेवाएँ
अर्पित की। पल्ली मिशन के दौरान ही उन्हें एक कुलीन परिवार "गॉन्डी" के यहाँ सेवा के
लिये बुला लिया गया। गॉन्डी में, विन्सेन्ट, मदाम दे गॉन्डी के आध्यात्मिक गुरु बन गये।
मदाम दे गॉन्डी की मदद से ही विन्सेन्ट गाँववासियों एवं किसानों के बीच सुसमाचार का प्रचार
करते रहे थे। तदोपरान्त, पुरोहित विन्सेन्ट को फ्राँस के गैलीज़ अर्थात् नाव खेने वाले
बन्दियों की प्रेरितिक सेवा हेतु पल्ली पुरोहित नियुक्त कर दिया गया था। क़ैदियों के
संग रहते-रहते वे कईयों के मनपरिवर्तन का कारण बने। अन्धकार में जीवन यापन करनेवालों
को, उन्होंने, सुसमाचार के प्रकाश से आलोकित किया।
सन् 1625 ई. में विन्सेन्ट
डे पौल ने मिशन धर्मसमाज की स्थापना की। यह पुरोहितों का एक धर्मसमाज है जिसके सदस्य-पुरोहितों
को सामान्यतः विनचेनशिययन्स या लाज़ारिस्ट नाम से पहचाना जाता है। सन् 1633 में, लूईज़े
दे मारीलेक की मदद से उन्होंने "डॉटर्स ऑफ चैरिटी" अर्थात् उदारता की धर्मबहने नामक धर्मसंघ
की स्थापना की। अपनी दया एवं करुणा, निर्धनों के प्रति उदारता तथा अपने विनम्र स्वभाव
के लिये विन्सेन्ट डे पौल फ्राँस तथा यूरोप के अनेक देशों में विख्यात हो गया थे। 27
सितम्बर, सन् 1660 ई. में, अस्सी वर्षीय, उदारता के प्रेरित, विन्सेन्ट डे पौल का, पेरिस
स्थित उनके निवास में, निधन हो गया। सन् 1737 ई. में, विन्सेन्ट डे पौल सन्त घोषित किये
गये थे। सन्त विन्सेन्ट डे पौल का पर्व, 27 सितम्बर को, मनाया जाता है, वे कल्याणकारी
संस्थाओं तथा निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों के प्रति उदारता को समर्पित धर्मसमाजों एवं धर्मसंघों
के संरक्षक सन्त हैं।
चिन्तनः सादगी और विनम्रता में व्यतीत, सन्त विन्सेन्ट
डे पौल की जीवन, ज़रूरतमन्दों के प्रति उदारता हेतु हमारी प्रेरणा का स्रोत बने।