वाटिकन सिटी, सोमवार, 15 सितम्बर सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि
"ख्रीस्त का प्रेम जो विवाह संस्कार द्वारा पति एवं पत्नी के बन्धन को पवित्र करता वही
उनके वैवाहिक जीवन को समर्थन प्रदान करता तथा जब यह प्रेम कमज़ोर पड़ने लगता, घाव से
भर जाता तथा टूटने लगता है तब भी उसे नवीकृत करता है।"
रविवार को रोम स्थित सन्त
पेत्रुस महागिरजाघर में सन्त पापा फ्राँसिस ने 20 दम्पत्तियों को विवाह संस्कार प्रदान
कर उनके बन्धन को पवित्र किया। इनमें कुछ दम्पत्ति ऐसे भी थे जो बहुत समय से साथ रह रहे
थे।
रोम धर्मप्रान्त द्वारा जारी एक वकतव्य में कहा गया कि रविवार को विवाह संस्कार
ग्रहण करनेवाले "दम्पत्ति अनेक अन्य दम्पत्तियों के समान ही थे जिनमें से कुछेक एक साथ
जीवन यापन करते आये हैं तथा कुछ की सन्तानें भी हैं।"
रविवार को ही काथलिक कलीसिया
ने पवित्र क्रूस की भक्ति का महापर्व मनाया। ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा फ्राँसिस
ने गणना ग्रन्थ से लिये पाठ पर चिन्तन करते हुए रेगिस्तान में जीने वाले प्राचीन काल
के लोगों के बारे में कहा कि वे भी कई परिवारों का समुदाय था। उन्होंने कहाः "ये लोग
हमें परिवारों से निर्मित कलीसिया का स्मरण दिलाते हैं जो अपने पथ पर अग्रसर होती हुई
वर्तमान विश्व के रेगिस्तान को पार करती चली जाती है।"
सन्त पापा ने कहा यह हमारा
ध्यान परिवारों की ओर आकर्षित करता है, हमारे परिवारों की ओर जो दैनिक जीवन की कठिनाइयों
को सहते हुए दिन ब दिन जीवन पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते रहते हैं। उन्होंने कहाः "एक परिवार
में निहित शक्ति एवं गहन मानवता को मापना सचमुच में असम्भव है जिसमें आपसी सहायता, शिक्षा
के लिये समर्थन, परिवार सदस्यों के परिपक्व होते ही रिश्तों का विकास तथा सुख- दुःख
में सबकी साझेदारी, सबकुछ एक साथ देखा जा सकता है।"
उन्होंने कहाः "परिवार वह
प्रथम स्थल है जहाँ हम व्यक्तियों स्वरूप गढ़े जाते हैं, परिवार ही वे ईंट हैं जिन्हें
जोड़कर समाज का निर्माण किया जाता है।"