फ्रिवली वेनेत्सिया, शनिवार, 13 सितम्बर 2014 ( वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने आज
13 सितम्बर को, फ्रिवली वेनेत्सिया स्थित औस्ट्रो-हंगेरियन कब्रिस्तान पर प्रथम विश्व
युद्ध के 1 लाख शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए व्यक्तिगत प्रार्थना की तथा रेडीपुलिया
के मीलिटरी तीर्थस्थल में पावन ख्रीस्तयाग अर्पित कर उपस्थित हज़ारों श्रद्धालुओं को
विश्व शांति का संदेश दिया।
संत पापा ने शांति संदेश में युद्ध को एक पागलपन
की संज्ञा दी।
उन्होंने कहा, ″ईश्वर सृष्टि के कार्य को जारी रखते हैं और हम मानव
उस कार्य में सहभागी होने के लिए बुलाये गये हैं किन्तु युद्ध द्वारा ईश निर्मित सुन्दर
रचना को हम नष्ट करते हैं। युद्ध सब कुछ बर्बाद कर देता है यहाँ तक कि भाई-बहन के बीच
रिश्ते को भी। युद्ध मूर्खता है इसका उद्देश्य सिर्फ नष्ट करना है यह विनाश के द्वारा
अपना विकास करना चाहता है।″
संत पापा ने प्रवचन में कहा कि लालच, असहिष्णुता
तथा सत्ता की भूख युद्ध को अंजाम देती है। यह सिद्धांतों द्वारा अपने को न्यायसंगत ठहराती
किन्तु उसके उद्देश्य घृणित है। जिस प्रकार काईन ने अपने भाई की हत्या करने के पश्चात्
ईश्वर से कहा था, क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ? उसी प्रकार युद्ध कर्ताओं के लिए
बुजुर्गों, माता-पिताओं एवं बच्चों का कोई महत्व नहीं।
संत पापा ने सुसमाचार पाठ
पर चिंतन करते हुए कहा कि सुसमाचार में येसु द्वारा बतलाये गये वचन इस मनोभावना के बिलकुल
विपरीत है। येसु कहते हैं कि वे सबसे नगण्य समझे जाने वाले भाई में भी उपस्थित हैं।
वे राजाओं एवं न्यायकर्ताओं सहित भूखों, प्यासों, परदेशी, बीमार तथा कैदियों सभी में
उपस्थित हैं और जो उन लोगों की देखभाल करता है वह प्रभु के अनन्त आनन्द को प्राप्त करता
है।
संत पापा ने कहा कि इस पुण्य स्थल पर कई शहीद हैं जिनके दुःख एवं आँसुओं
को आज हम याद करते हैं। उन्होंने कहा कि आज भी कई लोग शहीद हो रहे हैं क्योंकि धन
एवं सत्ता के लोभी आज भी विद्यामान हैं उनके लिए हथियारों का निर्माण एवं व्यापार ही
सब से बढ़कर है। युद्ध का षडयंत्र करनेवालों एवं संघर्षों की योजना बनाने वालों के दिलों
में यही लिखा हुआ है, ″मेरे लिए यह क्या मायने रखता है?″
संत पापा ने कहा कि
यद्यपि उन्होंने युद्ध द्वारा बहुत अधिक धन अर्जित कर लिया होगा तथापि अपने हृदय में
सहानुभूति के आँसु बहाने की शक्ति खो दिया है। ‘मेरे लिए यह क्या मायने रखता है’ की भावना
ने उसके आँसू सूखा दिये हैं। सन् 1914 ई. की परिस्थिति आज भी दिखाई पड़ती है।
संत
पापा ने सभी के अपील करते हुए कहा कि एक बेटा, भाई और पिता के रूप में मैं आप सभी
से आग्रह करता हूँ कि हम मन परिवर्तन करें, हमारे हृदय में ‘मेरे लिए यह क्या मायने रखता
है?’ की भावना के बदले मूर्खतापूर्ण नरसंहार के शिकार लोगों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न
हो।