पापमोचक, धर्मगुरु एवं धर्मवीर पापनुशियुस
मिस्र के मूल निवासी थे। महान सन्त अन्तोनी के मार्गदर्शन में, अनेक वर्ष उजाड़ प्रदेश
में व्यतीत करने के बाद पापनुशियुस को अवर थेबाईस का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया
था। वे उन पापमोचकों एवं धर्मवीरों में से एक थे जिन्होंने राजा माक्सिमीन दाईया के शासनकाल
में घोर अत्याचार सहे थे।
बताया जाता है कि ख्रीस्तीय विश्वास का परित्याग
न करने के लिये धर्मवीर पापनुशियुस तथा उनके साथियों को दण्डित किया गया था। ख्रीस्तीय
विश्वास के ख़ातिर उन्हें घोर यातनाएँ दी गई, यहाँ तक कि उनकी दाहिनी आँख निकाल ली गई
थी किन्तु उन्होंने प्रभु ख्रीस्त में अपना विश्वास नहीं गँवाया बल्कि आततायियों के समक्ष
विश्वास का साक्ष्य देते रहे। आँख निकालने के बाद पापनुशियुस एवं उनके साथियों को खदानों
में काम करने के लिये भेज दिया गया था।
निष्ठुर राजा माक्सिमीन दाईया की
मृत्यु के बाद कलीसिया में फिर शांति लौटी तथा पापनुशियुस अपने धर्मप्रान्त लौट सके।
उस समय मिस्र में आरियनवादी अपधर्मियों का बोलबाला था किन्तु पापनुशियुस ने अपधर्मियों
के समक्ष काथलिक विश्वास का बचाव किया इसी कारण उन्हें नीस की धर्मसभा के लिये चुना गया
था।
धर्मसभा के दौरान कॉन्सटेनटाईन महान प्रायः उनसे सलाह मशवरा किया करते
थे। इसके अतिरिक्त, धर्माध्यक्ष पापनुशियुस सन्त अथानासियुस के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये
हुए थे। 335 ई. में टियर की धर्मसभा में वे सन्त अथानासियुस के साथ ही गये थे। इस धर्मसभा
के कई प्रतिभागी आरियनवाद से प्रभावित दिखाई पड़े। धर्मसभा में, जैरूसालेम के धर्माध्यक्ष
माक्सीमुस भी उपस्थित थे जिन्हें एक तरफ ले जाकर धर्माध्यक्ष पापनुशियुस ने पूछा, "ये
लोग जो आरियनवाद की इतनी डींग हाँक रहे हैं क्या ख्रीस्तीय विश्वास के ख़तिर इनकी भी
आँख निकाली गई थी और क्या इनकी आँख में भी वही निशान है जो हमारी आँख में है?" (चौथी
शताब्दी में एलेक्ज़ेनड्रिया के धर्माध्यक्ष रहे आरियुस के अनुयायियों को आरियनवादी कहा
जाता है। उनका कहना था कि ईश पुत्र येसु ख्रीस्त पिता ईश्वर के बराबर नहीं थे, वे पिता
ईश्वर से कुछ कम थे।)
धर्माध्यक्ष पापनुशियुस का निधन कब हुआ इस बारे में कोई
ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है किन्तु रोमी शहीदनामे के अनुसार, चौथी शताब्दी के धर्माध्यक्ष
और धर्मवीर, सन्त पापनुशियुस का पर्व 11 सितम्बर को रखा गया है।
चिन्तनः सन्त पापनुशियुस की मध्यस्थता से, हम भी, विश्वास के तत्वों को अक्षुण
रखते हुए सुसमाचार के प्रेम सन्देश की उदघोषणा करें।