2014-09-10 11:26:10

वाटिकन सिटीः येसु प्राध्यपक नहीं हैं, वे लोगों के बीच हैं, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, बुधवार 10 सितम्बर, सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि येसु ख्रीस्त प्राध्यपक नहीं हैं बल्कि हमारे बीच रहते हैं, उन्होंने पापियों को चुना है तथा वे हमारे लिये निरन्तर प्रार्थना करते रहते हैं।

मंगलवार को, वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग के अवसर पर येसु के जीवन के तीन क्षणों पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि येसु वे प्राध्यापक नहीं है जो शिक्षक के सिंहासन से बोलते हैं बल्कि वे लोगों के बीच जाते तथा उनसे बातें करते हैं, उन्होंने पापियों को चुना तथा उनके लिये अनवरत प्रार्थना करते रहते हैं।

येसु के जीवन के तीन प्रमुख क्षणों का स्मरण कर सन्त पापा ने कहा कि पहला है प्रार्थना। उन्होंने कहाः "येसु ने सारी रात पिता से प्रार्थना में बिताई, वे हमारे लिये प्रार्थना करते हैं हालांकि यह विचित्र प्रतीत हो सकता है कि जो हमें मुक्ति देने आया, जिसके पास शक्ति है वह भी पिता से प्रार्थना करता है तथापि, येसु अनवरत हमारे लिये प्रार्थना करते रहते हैं, वे ही हमारे मध्यस्थ हैं और यह तथ्य हमारे लिये साहस का स्रोत होना चाहिये।"

सन्त पापा ने कहा कि पिता से प्रार्थना के साथ साथ येसु ने 12 प्रेरितों का चयन किया। प्रभु स्पष्टतया कहते हैं: "तुमने मुझे नहीं मैंने तुम्हें चुना है।" यह है दूसरा महत्वपूर्ण क्षण जो हमें साहस प्रदान करता है क्योंकि ख़ुद प्रभु येसु ने हमें चुना है। बपतिस्मा के दिन उन्होंने हमें चुना है। सन्त पापा ने कहा कि इसी सन्दर्भ में सन्त पौल कहते हैं "उन्होंने माता के गर्भ से मुझे चुना।"

सन्त पापा ने कहा कि येसु की दृष्टि में हम सब बराबर हैं, उनकी दृष्टि में सब के सब महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने हम सब को चुना है।

सन्त पापा ने कहाः "तीसरी बात ध्यान देने योग्य यह कि येसु ख्रीस्त ने पापियों को चुना। इसका उदाहरण यूदस इसकारियोती है जिसने येसु के साथ विश्वासघात किया था। उन्होंने कहा कि येसु अपने लोगों के बीच रहते, उनके साथ रहते हैं। जनसमुदाय उनकी ओर आकर्षित रहा करता था, लोग उनके स्पर्श की कामना करते थे क्योंकि येसु चंगाई प्रदान करनेवाले हैं। वे पापियों को क्षमा करते तथा बीमारों को चंगाई प्रदान करते हैं।"

सन्त पापा ने कहाः "येसु कोई सुदूर रहस्यवादी शिक्षक नहीं हैं जो दूर अपने आसन पर बैठकर शिक्षा प्रदान करते हैं बल्कि वे लोगों के बीच रहते, उनसे बातें करते तथा उन्हें चंगाई प्रदान करते हैं।"








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