लोरेन्सो जुस्तिनयानी का जन्म इटली के वेनिस
प्रान्त में, पहली जुलाई सन् 1381 ई. को, जुस्तिनयानी कुलीन परिवार में हुआ था। लोरेन्सो
वेनिस के प्रथम प्राधिधर्माध्यक्ष थे।
लोरेन्सो की माता एक धर्मपरायण महिला
थीं जिन्होंने बाल्यकाल से ही अपने पुत्र में धर्म, विश्वास एवं आध्यात्म के बीज आरोपित
किये थे। सन् 1400 ई. में आल्गा स्थित सन्त जॉर्ज धर्समाज में लोरेन्सो ने प्रवेश किया
जहाँ उनकी सादगी, विनम्रता, अकिंचनता, त्याग- तपस्या तथा प्रार्थना के प्रति उनकी उत्सुकता
को देख उनके साथी नवदीक्षार्थी अत्यधिक प्रभावित हुए।
सन् 1406 ई. में लोरेन्सो
पुरोहित अभिषिक्त कर दिये गये तथा कुछ समय बाद ही धर्मसमाज के प्रमुख नियुक्त किये गये।
इस पद पर आसीन होते ही उन्होंने आल्गा के सन्त जॉर्ज धर्मसमाज का संविधान तैयार किया
तथा कई सुधार किये। इस संविधान के विस्तार हेतु वे इतने उत्सुक थे कि उन्हें धर्मसमाज
का संस्थापक माना जाने लगा। इसी दौरान, सन्त पापा यूजीन चौथे ने लोरेन्सो को कास्तेल्लो
का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया। सम्पूर्ण कास्तेल्लो धर्मप्रान्त में उन्होंने जगह-जगह
गिरजाघरों एवं मठों का निर्माण करवाया तथा युवाओं के लिये प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना
की।
सन् 1451 ई. में सन्त पापा निकोलस पंचम ने कास्तेल्लो धर्मप्रान्त को
ग्रादो की प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ के साथ मिला दिया तथा इसका स्थानान्तरण वेनिस में
कर दिया। इस प्रकार लोरेन्सो जुस्तिनयानी वेनिस के सर्वप्रथम प्राधिधर्माध्यक्ष नियुक्त
किये गये। 08 जनवरी सन् 1456 तक को प्राधिधर्माध्यक्ष लोरेन्सो जुस्तियानी का निधन हो
गया। उनका पर्व 05 सितम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "पृथ्वी के शासको!
न्याय से प्रेम रखो। प्रभु के विषय में ऊँचे विचार रखो और निष्कपट हृदय से उसे खोजते
रहो; क्योंकि जो उसकी परीक्षा नहीं लेते, वे उसे प्राप्त करते हैं। प्रभु अपने को उन
लोगों पर प्रकट करता है, जो उस पर अविश्वास नहीं करते" (प्रज्ञा ग्रन्थ 1:1-2)।