वाटिकन सिटी, बुधवार, 03 सितम्बर सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि
ख्रीस्तीय पहचान बौद्धिक ज्ञान अथवा बड़ी बड़ी डिगरियाँ हासिल करने से नहीं मिलती है।
वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में मंगलवार, 02 सितम्बर
को ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने यह बात कही।
प्रभु
येसु के अधिकार से सम्बन्धित सुसमाचार पाठ पर चिन्तन करते हुए उन्होंने कहाः "ख्रीस्तीय
पहचान ज्ञान अथवा डिगरियों से नहीं आती अपितु प्रभु ख्रीस्त के सदृश पवित्रआत्मा से प्रेरित
होने पर मिलती है क्योंकि पवित्रआत्मा से अभिषिक्त होकर ही प्रभु येसु ख्रीस्त का अधिकार
प्रकाश में आया था।"
उन्होंने कहा कि लोग येसु ख्रीस्त के शब्दों को सुनकर आश्चर्यचकित
थे क्योंकि येसु अधिकार के साथ बात करते थे।
सन्त पापा ने कहा कि प्रभु येसु
कोई साधारण उपदेशकर्त्ता नहीं हैं क्योंकि पवित्रआत्मा द्वारा अभिषिक्त होने के कारण
वे उपदेश देते हैं। वे जो कुछ बोलते हैं वह पवित्रआत्मा के सामर्थ्य से बोलते हैं।
सन्त
पापा ने कहाः "येसु ईश्वर के पुत्र हैं जो अभिषिक्त किये गये तथा हमारे बीच भेजे गये
ताकि विश्वमंडल के ओर छोर तक वे मुक्ति ला सकें, स्वतंत्रता ला सके।"
सन्त पापा
ने कहा, "हम भी स्वतः से प्रश्न कर सकते हैं कि हमारी ख्रीस्तीय पहचान क्या है? इसका
उत्तर सन्त पौल सटीक रूप से प्रदान करते हैं, जब वे कहते हैं कि "हम उनके विषय में मानवीय
प्रज्ञा द्वारा सिखाये गये शब्दों से नहीं बोलते हैं", क्योंकि सन्त पौल की प्रज्ञा मानवीय
प्रज्ञा का नहीं अपितु ईश्वरीय प्रज्ञा का फल है। इसलिये यह जानना ज़रूरी है कि मनुष्य
अपने बल पर ईश्वर के आत्मा के कार्यों के बारे में नहीं समझ सकता, इसके लिये उसे पवित्रआत्मा
की प्रेरणा की ज़रूरत होती है।"