मणिपुर, शुक्रवार 22 अगस्त, 2014 (बीबीसी) सामाजिक कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला को शुक्रवार
को पुलिस ज़बरदस्ती उठा कर ले गई। इरोम बुधवार को रिहा होने के बाद अस्पताल के बाहर
ही धरने पर बैठी थी। सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून (आफ़्स्पा) हटाए जाने की मांग
को लेकर क़रीब 14 साल से इरोम शर्मिला मणिपुर में भूख हड़ताल पर हैं। उन्हें लंबे
समय से अस्पताल में ही हिरासत में रखा गया था। बुधवार को अदालत के आदेश पर उन्हें रिहा
किया गया था। रिहा होने के कुछ देर बाद ही उन्होंने अस्पताल के बाहर ही उपवास शुरू
कर दिया था। उस वक़्त उन्होंने कहा था, "जब तक सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून (आफ़्स्पा)
हटाने की मेरी माँग मान नहीं ली जाती मैं तब तक उपवास करती रहूँगी। अदालत का यह आदेश
कि मैं आत्महत्या का प्रयास नहीं कर रही हूँ, स्वागत योग्य है।" वह 13 साल से मणिपुर
के एक अस्पताल में न्यायिक हिरासत में थीं। मानवाधिकार के लिए संघर्षरत इरोम पूर्वोत्तर
राज्यों में लागू ' सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून 'यानी अफ़सपा के कथित दुरूपयोग के
मद्देनज़र इस क़ानून को निरस्त करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं. सशस्त्र बल
विशेषाधिकार क़ानून साल 1958 से पूर्वोत्तर राज्यों में जबकि 1990 से ये भारत प्रशासित
कश्मीर में भी लागू है। सूचना के अधिकार से जुड़ी और राष्ट्रीय सलाहकार समिति की सदस्य
अरुणा रॉय का कहना है कि लोकतंत्र में अफ़सपा के लिए कोई जगह नहीं है। अरुणा रॉय ने
कहा,''अगर हम लोग भारत के पूरे हिस्से को बराबरी का दर्जा नहीं देते हैं, चाहे वे पूर्वोत्तर
हो या जम्मू-कश्मीर जहाँ अफ़सपा लागू है तो वहाँ सारे संवैधानिक अधिकार स्थगित होते है।
तो हम गणतंत्र कैसे है, संविधान कहाँ लागू है?