हेमी, रविवार, 17 अगस्त 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने प्रेरितिक यात्रा के
चौथे दिन 17 अगस्त को हेमी में एशिया के धर्माध्यक्षों से मुलाकात कर उन्हें अपना संदेश
दिया। उन्होंने कहा, ″यह विशाल प्रायद्वीप जो विविध संस्कृतियों का गढ़ है सुसमाचार
का साक्ष्य हेतु कलीसिया को वार्ता एवं उदारता में बहुमूखी और सक्रिय होने का निमंत्रण
देता है।″ संत पापा ने कहा कि वार्ता एशियाई कलीसिया के मिशन का प्रमुख हिस्सा है
किन्तु व्यक्ति एवं संस्कृति में वार्ता के मार्ग को अपनाते हुए हमें यह ध्यान देने की
आवश्यकता है कि हमारे कदम एवं उद्देश्य का मौलिक केन्द्र क्या है। निश्चय ही, वार्ता
हमारी पहचान है, एक ख्रीस्तीय पहचान। हम सच्ची वार्ता में प्रवेश नहीं कर सकते जब तक
हमें अपनी पहचान का पता न हो। संत पापा ने धर्माध्यक्षों के सम्मुख ख्रीस्तीय पहचान
को नष्ट करने वाले तीन मुख्य चुनौतियों को रखा- पहला, सापेक्षवाद का भ्रामक ज्ञान जो
सत्य के वैभव को अस्पष्ट कर देता तथा हमारे पाँव को अस्थिर कर, भ्रम एवं निराशा के बालू
में धकेल देता है। आज ख्रीस्तीयों को भी यह प्रलोभन प्रभावित कर रहा है। उन्हें तेजी
से बदलते विश्व तथा गुमराही परिवर्तन के बीच यह भूलने के लिए मजबूर कर रहा है कि संसार
में ऐसी चीज़ें भी विद्यामान हैं जो कभी नहीं बदलते तथा जिनका परम आधार ख्रीस्त हैं।
जो कल थे आज हैं तथा हमेशा बने रहेंगे। (गौदियुम एत्सपेस-10) दूसरी चुनौती है कि संसार
हमारी ख्रीस्तीय पहचान को ललकारता है किन्तु वह छिछला है। हमारी ख्रीस्तीय पहचान एकमात्र
ईश्वर की आराधना करने एवं एक-दूसरे को प्यार करने तथा उनकी सेवा करने के द्वारा प्रदर्शित
होती है। संत पापा ने ख्रीस्तीय पहचान के लक्षण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह फलदायक
होती है क्योंकि इसका जन्म एवं विकास प्रभु से वार्ता तथा पवित्र आत्मा की प्रेरणा द्वारा
हुई है। यह न्याय, भलाई एवं शांति का फल उत्पन्न करती है। संत पापा ने कहा कि मौलिक
संवाद सहानुभूति की मांग करता है। हम न केवल अन्यों के शब्दों को सुने किन्तु अनकही पुकारों
पर भी ध्यान दें। इसके लिए वार्ता की आवश्यकता है। हम दूसरों के विवेक से बहुत कुछ सीखते
तथा समझदारी, मित्रता एवं सहानुभूति की उदार भावना में बढ़ते हैं।