सन्त जेम्स येसु मसीह के 12 प्रेरितों में से
एक थे। वे जेबेदी एवं सलोमी के पुत्र तथा प्रेरितवर सन्त योहन के भाई थे। आलफेउस के बेटे,
छोटे सन्त जेम्स से, प्रेरित सन्त जेम्स अलग थे जिन्हें ज्येष्ठ जेम्स भी कहा जाता है।
सुसमाचारों से हमें ज्ञात होता है कि जेम्स मछुआ समुदाय के थे तथा प्रभु येसु के निकट
शिष्य सिमोन पेत्रुस से अत्यधिक प्रभावित थे। येसु के आदेश पर जाल डालने के बाद सिमोन
पेत्रुस एवं उनके भाई योहन ने इतनी मछलियाँ पकड़ ली थीं कि उनका जाल फटा जा रहा था। यह
देखकर जेम्स के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और जब येसु ने उन्हें उनके अनुसरण के लिये
बुलाया तो वे तुरन्त उनके पीछे हो लिये।
जेम्स प्रभु येसु के 12 प्रेरितों
में से एक बन गये जिन्हें सुसमाचार प्रचार एवं चंगाई का मिशन सौंपा गया। प्रेरित चरित
ग्रन्थ बताते हैं कि जेम्स कलीसिया के प्रथम शहीदों में से हैं। आरम्भिक कलीसिया के उत्पीड़न
काल में राजा हेरोद अग्रिप्पा प्रथम ने तलवार से वार कर उन्हें मार डाला था। किंवदन्ती
है कि जिस व्यक्ति ने जेम्स को पकड़वाया था उसने, बाद में, पश्चाताप कर ख्रीस्तीय धर्म
का आलिंगन कर लिया था इसलिये उसे भी जेम्स के साथ मार डाला गया था। सन् 44 ई. के लगभग
प्रेरितवर सन्त जेम्स शहीद हुए थे। सन्त जेम्स टोपी बनानेवालों, गठियाग्रस्त रोगियों
तथा मुश्किल में पड़े श्रमिकों के संरक्षक सन्त हैं। उनका पर्व 25 जुलाई को मनाया जाता
है।
चिन्तनः "प्रभु! मेरे बल! मैं तुझे प्यार करता हूँ। प्रभु मेरी चट्टान
है, मेरा गढ़ और मेरा उद्धारक। ईश्वर ही मेरी चट्टान है, जहाँ मुझे शरण मिलती है। वही
मेरी ढाल है, मेरा शक्तिशाली उद्धारकर्ता और आश्रयदाता। प्रभु धन्य है! मैंने उसकी दुहाई
दी और मैं अपने शत्रुओं पर वियजी हुआ" (स्तोत्र ग्रन्थ 18:1-4)।