सन्त फ्रेडरिक, नीदरलैण्ड के मध्यभाग स्थित
ऊटरेख्ट के निवासी थे तथा फ्रीसियन्स के राजा रादबॉन के पोते थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा
ऊटरेख्ट के पुरोहितों के अधीन हुई तथा बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक एवं प्रार्थनामय
जीवन के प्रति आकर्षित रहे थे। ईश्वर एवं धर्म का ज्ञान पाने को वे सदैव लालायित रहा
करते थे। उनके पुरोहिताभिषेक के बाद ऊटरेख्ट के काथलिक धर्माध्यक्ष रिकफ्रीड ने नवख्रीस्तीयों
के प्रशिक्षण का कार्यभार उन्हें सौंपा जिसे उन्होंने पूरी सूझ बूझ एवं विवेक के साथ
निभाया।
धर्माध्यक्ष रिकफ्रीड के निधन के बाद, फ्रेडरिक ऊटरेख्ट के धर्माध्यक्ष
नियुक्त कर दिये गये। इस पद पर आसीन होते ही उन्होंने सम्पूर्ण धर्मप्रान्त तथा आस पास
के क्षेत्रों में सुधार अभियान आरम्भ किया तथा जन जन में ख्रीस्त के सुसमाचार की ज्योत
जगाने का प्रयास किया। उन दिनों ऊटरेख्ट एवं वालखेरन क्षेत्रों में अन्धविश्वास एवं बुतपरस्ती
का बोलबाला था। इस अन्धकार से लोगों को सुसमाचार के प्रकाश में लाने हेतु धर्माध्यक्ष
फ्रेडरिक को गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई लोग उनके शत्रु बन गये तथा उनके
विरुद्ध षड़यंत्र रचे जाने लगे। इन सब कठिनाईयों के बावजूद सुसमाचारी सन्देश का प्रसार
करना फ्रेडरिक ने अपना प्राथमिक मिशन माना तथा साहसपूर्वक आगे बढ़ते रहे।
साधारण
लोगों में बुतपरस्ती एवं अन्धविश्वास जैसी बुराईयाँ तो दूसरी ओर राजसी और शाही घरानों
में भोग विलासिता एवं दुष्ट जीवन शैली व्याप्त थी। धर्माध्यक्ष फ्रेडरिक ऐसे ही लोगों
का परिचय येसु मसीह के प्रेम से कराना चाहते थे। वे जानते थे कि उनका कार्यक्षेत्र ख़तरों
से खाली नहीं था तथा लोग रूखेपन एवं उपेक्षा भाव से भरे थे किन्तु वे हताश नहीं हुए बल्कि
अपने मिशन में दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते गये।
18 जुलाई, सन् 838 ई. को जब धर्माध्यक्ष
फ्रेडरिक ख्रीस्तयाग सम्पन्न कर प्रार्थना में लीन थे तब दो अज्ञात व्यक्तियों ने चाकुओं
से उनपर वार किया तथा उन्हें मार डाला। मरते क्षण धर्माध्यक्ष फ्रेडरिक के मुख से, स्तोत्र
ग्रन्थ के ये शब्द निकले, "जीवितों के देश में, मैं प्रभु की प्रशंसा करूँगा", और उन्होंने
अपने प्राण त्याग दिये।
धर्माध्यक्ष फ्रेडरिक के हत्यारों का पता नहीं लग
पाया है। कुछ लोगों का कहना है कि धर्माध्यक्ष के मिशनरी कार्यों से रुष्ट लोगों ने उनकी
हत्या कर दी थी जबकि कुछेक लोगों के अनुसार रानी साहिबा जूडिथ द्वारा किराये पर लिये
गये हत्यारों ने धर्माध्यक्ष फ्रेडरिक की हत्या की थी क्योंकि धर्माध्यक्ष ने खुलेआम,
राजसी जीवन की भोगविलासिता तथा दुष्ट जीवन शैली का विरोध किया था। ऊटरेख्ट के धर्माध्यक्ष
फ्रेडरिक को काथलिक कलीसिया में शहीद एवं सन्त घोषित किया गया है। उनका पर्व 18 जुलाई
को मनाया जाता है।
चिन्तनः पुत्र! यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते
हो, तो विपत्ति का सामना करने को तैयार हो जाओ। तुम्हारा हृदय निष्कपट हो, तुम दृढ़संकल्प
बने रहो, विपत्ति के समय तुम्हारा जी नही घबराये। ईश्वर से लिपटे रहो, उसे मत त्यागो,
जिससे अन्त में तुम्हारा कल्याण हो। जो कुछ तुम पर बीतेगा, उसे स्वीकार करो तथा दुःख
और विपत्ति में धीर बने रहो; क्योंकि अग्नि में स्वर्ण की परख होती है और दीन-हीनता की
घरिया में ईश्वर के कृपापात्रों की। ईश्वर पर निर्भर रहो और वह तुम्हारी सहायता करेगा।
प्रभु के भरोसे सन्मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ। प्रभु के श्रद्धालु भक्तो! उसकी दया पर भरोसा
रखो। मार्ग से मत भटको; कहीं पतित न हो जाओ। प्रभु के श्रद्धालु भक्तों! उस पर भरोसा
रखो और तुम्हें निश्चय ही पुरस्कार मिलेगा। प्रभु के श्रद्धालु भक्तो! उसके उपकारों की,
चिरस्थायी आनन्द और दया की प्रतीक्षा करो। प्रभु के श्रद्धालु भक्तों! उस से प्रेम रखो
और तुम्हारे हृदयों में प्रकाश का उदय होगा (प्रवक्ता ग्रन्थ 2: 1-10)।