ईश्वर की सेवा करने का सुगम तरीका, भाई-बहनों की सेवा
वाटिकन सिटी, शनिवार 5 जुलाई 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 5 जुलाई
को प्रेरितिक यात्रा पर इटली के दक्षिणी प्रांत मोलिसे स्थिति कम्पोबासो के स्टेडियम
में हज़ारों विश्वासियों के लिए पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया। उन्होंने प्रवचन में
प्रज्ञा ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन प्रस्तुत किया जहाँ कहा गया है, ″जो प्रज्ञा के
अनुयायी बने, उसने उन्हें उनके कष्टों से मुक्त किया।″(प्रज्ञा.10꞉9) संत पापा ने
कहा, ″प्रथम पाठ हमें ईश्वरीय प्रज्ञा की याद दिलाता है जो उन लोगों को बुराई एवं शोषण
से मुक्ति दिलाती है जिन्होंने स्वयं को प्रभु की सेवा के प्रति समर्पित किया है। वास्तव
में ईश्वर तटस्थ नहीं हैं किन्तु उनकी प्रज्ञा उन लोगों के पक्ष में है जो कमज़ोर हैं,
भेदभाव के शिकार हैं समाज में शोषित हैं और जो ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखते हैं। पुराना
व्यवस्थान हमें बतलाता है कि यही अनुभव याकूब और योसेफ ने पाया था। यह कलीसियाई जीवन
के दो मुख्य पहलुओं को प्रकट करता हैः ईश्वर की सेवा तथा लोगों की सेवा। संत पापा
ने कहा कि हम ऐसे लोग हैं जो ईश्वर की आराधना एवं अर्चना करते हैं। ईश्वर को विभिन्न
रूपों में अनुभव किया जा सकता है ख़ासकर प्रार्थना में, सुसमाचार की घोषणा से तथा उदार
कार्यों के माध्यम से। कुँवारी मरियम इसके अच्छे उदाहरण हैं, उन्होंने स्वर्ग दूत के
संदेश को प्राप्त कर तुरन्त कहा था, मैं प्रभु की दासी हूँ तथा अपनी कुटुम्बनी एलिज़बेथ
की सेवा में शीघ्रता से चल पड़ी थी। यह दर्शाता है कि ईश्वर की सेवा करने का सबसे सुगम
तरीका है आवश्यकता में पड़े अपने भाई-बहनों की सेवा करना। माता कलीसिया प्रत्येक
दिन प्रभु की दासी बनना सीखती है जिससे कि वह आवश्यकता में पड़े लोगों, कमजोर एवं निष्कासित
लोगों की मदद हेतु आगे बढ़ सके। उदारता के कार्य हम अपने परिवार, पल्ली, कार्य क्षेत्रों
तथा पड़ोसियों के बीच सम्पन्न कर सकते हैं। संत पापा ने कहा कि उदारता का परिचय ही
सच्चा सुसमाचार प्रचार है। इसमें कलीसिया हरदम सबसे आगे रहती है। वह लोगों की कठिनाईयों
में उन्हें साथ देती है तथा आशा का संचार करती है। कम्पोबासो के लोगों को सम्बोधित
कर संत पापा ने कहा, ″धर्माध्यक्ष के प्रेरितिक उत्साह में उदारता पूर्वक सहयोग कर आप
भी यही कर रहे हैं। मैं आप सभी को प्रोत्साहन देता हूँ कि ईश्वर की सेवा एवं लोगों की
सेवा मार्ग पर डटे रहे तथा सहानुभूति की संस्कृति का प्रचार सभी ओर करें। मानव प्रतिष्ठा
का कद्र हर आशा एवं कार्यों का केंद्र हो। इस प्रकार, कलीसिया वह प्रजा है जो ईश्वर
की आवश्यकता महसूस करती है जो उनकी मुक्ति का एहसास करती तथा स्वतंत्र जीवन यापन करती
है। पाप तथा स्वार्थ के सभी बंधनों से स्वतंत्र होकर हम अपने आपको नाज़रेथ की माता मरिया
की तरह समर्पित करे। एसी स्वतंत्रता जिसे हम ईश्वर की कृपा द्वारा ख्रीस्तीय समुदाय में
एक-दूसरे की सेवा द्वारा प्राप्त कर सकें।