प्रेरक मोतीः वास्तुकारों के संरक्षक सन्त थॉमस (निधन सन् 72 ई.) (3 जुलाई)
वाटिकन सिटी, 03 जुलाई सन् 2014:
सन्त थॉमस यहूदी थे जो प्रभु येसु ख्रीस्त के
12 प्रेरितों में से एक थे। वे प्रभु येसु ख्रीस्त के समर्पित चेले थे। जब प्रभु येसु
ने अपने शिष्यों को बताया कि वे यहूदिया लौट कर अपने बीमार मित्र लाज़रुस की भेंट करने
जा रहे थे तब थॉमस व्याकुल हो उठे थे क्योंकि यहूदिया के तत्कालीन अधिकारी प्रभु ख्रीस्त
के विरोधी थे तथा उन्हें हानि पहुँचा सकते थे। येसु की जान पर बने ख़तरे को भाँपकर थॉमस
ने अपने साथी प्रेरितों से कहा था कि वे येसु के संग-संग जायें।
फिर, अन्तिम
भोजन कक्ष में जब प्रभु येसु ने प्रेरितों से कहा कि वे उनके लिये जगह तैयार करने जा
रहे थे तब भी थॉमस व्याकुल हो उठे और बोलने लगे कि उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था इसपर
प्रभु येसु ने थॉमस को वह आश्वासन दिया जो युगयुगान्तर के लिये ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों
का आश्वासन बन गया है, येसु ने कहा थाः "मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ"।
येसु
के पुनःरुत्थान में अपनी भूमिका के लिये भी सन्त थॉमस विख्यात हैं। प्रभु येसु के दुखभोग
एवं क्रूसमरण से, अन्य शिष्यों की तरह, थॉमस भी पूर्णतः हताश एवं निराश होकर टूट चुके
थे इसीलिये जब उन्होंने सुना कि येसु जी उठे हैं तो विश्वास करने से इनकार कर दिया। इसी
कारण थॉमस को "शंकालु थॉमस" भी कहा जाता है। प्रभु येसु ख्रीस्त ने स्वयं प्रकट होकर
उन्हें फटकार बताई थी और अपने बगल एवं हाथों पर कीलों के छेदों में उंगली डालकर देखने
के लिये कहा था। प्रभु के घावों को छू लेने पर थॉमस ने सार्वजनिक रूप से पुनःरुत्थान
का साक्ष्य देते हुए कहा थाः "मेरे प्रभु और मेरे ईश्वर"।
तिबेरियस की झील
के तट पर प्रभु येसु के दर्शन के अवसर पर भी थॉमस मौजूद थे जब चमत्कारी ढंग से मछलियों
का जाल भर गया था। नवीन व्यवस्थान में उद्धरित इन्हीं घटनाओं के फलस्वरूप हमारा परिचय
थॉमस से होता है। परम्परा के अनुसार, प्रभु येसु के स्वर्गारोहण और पेन्तेकॉस्त के बाद
सन्त थॉमस को पारथियाई, मेदीज़ तथा फारसी लोगों के बीच सुसमाचार प्रचार के लिये भेज दिया
गया था जहाँ से, अन्ततः, सन् 52 ई. में, वे भारत पहुँचे थे। भारत में सन्त थॉमस ने मलाबार
समुद्री तट पर जीवन यापन करनेवाली जनता के बीच सुसमाचार का प्रचार किया था। यही कारण
है कि दक्षिण भारत के ख्रीस्तीय धर्मानुयायी स्वतः को "सन्त थॉमस के ख्रीस्तीय" बताते
हैं। सन् 72 ई. में, छुरा भोंक कर, सन्त थॉमस को मार डाला गया था। सन्त थॉमस का पर्व
03 जुलाई को मनाया जाता है। बताया जाता है कि सन्त थॉमस ने दक्षिण पूर्व एशिया के राजा
गोन्दोफोरुस के लिये एक स्वर्ण महल की वास्तुकारी की थी तथा महल का निर्माण करवाया था
इसीलिये उन्हें वास्तुकारों का संरक्षक सन्त भी कहा जाता है।
चिन्तनः
सन्त थॉमस की जीवनी प्रभु येसु मसीह में हमारे विश्वास को सुदृढ़ करे तथा सुसमाचार की
उदघोषणा हेतु हमें प्रेरित करे ताकि न्याय एवं शांति पर आधारित विश्व समाज के निर्माण
का सपना साकार हो सके।