सन्त पौलुस का पर्व भी सन्त पेत्रुस के साथ 29
जून को ही मनाया जाता है।
पौलुस या पौल का जन्म तुर्की के तारसुस में हुआ था।
उनका नाम पौल न होकर सौल था। वे यहूदी माता पिता के सुपुत्र थे जिनकी शिक्षा दीक्षा उस
युग के प्रभावशाली फ़रीसी समुदाय के नियमों के अनुकूल हुई थी। फ़रीसी समुदाय के होने
के नाते सौल तथा उनके माता पिता को रोमी नागरिकता प्राप्त थी। सौल के पिता पेशे से तम्बुओं
के निर्माता और व्यापारी थे। सौल ने अपने जीवन काल में प्रभु येसु ख्रीस्त से कभी मुलाकात
नहीं की थी। जब उन्हें जैरूसालेम भेजा गया तब ख्रीस्त के अनुयायियों की विरुद्ध चली अत्याचार
की धारा में वे भी बह गये तथा ख्रीस्तीयों का उत्पीड़न करने लगे।
एक बार
ख्रीस्तीयों के एक दल को गिरफ्तार करने सौल जैरूसालेम से दमिश्क जा रहे थे कि अचानक आँधी
चली, बिजली चमकी तथा सौल अपने घोड़े से ज़मीन पर गिर गये। उसी क्षण उनकी दृष्टि छिन गई
तथा उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आया। कड़कती बिजली के बीच ही उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी "सौल,
सौल मुझे क्यों सता रहे हो?" मानों यह वाणी सुनकर सौल का मनपरिवर्तन हो गया। ख्रीस्तीयों
के उत्पीड़न के बजाय उन्होंने बपतिस्मा ग्रहण किया तथा सौल से पौल बन गये।
इस
घटना के बाद पौल ने कई मिशनरी यात्राएँ कीं तथा सुसमाचार प्रचार हेतु अपना जीवन अर्पित
कर दिया। इसी दौरान, जैरूसालेम की पाँचवी यात्रा करते समय, पौल को गिरफ्तार कर लिया गया
तथा कैसरिया में, दो वर्ष तक, क़ैद रखा गया। अपने कारावासी जीवन के समय पौल ने अपनी रोमी
नागरिकता का दावा किया जिसके बाद सन् 60 ई. में उन्हें रोम प्रेषित कर दिया गया। जैरूसालेम
से रोम की जलयात्रा के दौरान उनका पोत भंग हो गया जिसके कारण पौल ने रोम के रास्तें में
पड़नेवाले माल्टा द्वीप में पड़ाव किया तथा रोम जाने तक वहीं पर सुसमाचार का प्रचार करते
रहे।
रोमी सम्राट नीरो के शासनकाल में सन् 63-64 ई. में पौल रोम पहुँचे।
कुछ समय तक रोम में भी उन्होंने अपना प्रचार कार्य जारी रखा किन्तु 64 ई. के अन्त में
दुष्ट नीरो ने रोम को आग के हवाले कर दिया तथा इसका आरोप ख्रीस्तीयों पर मढ़ दिया। रोम
को नष्ट करने के आरोप में समस्त ख्रीस्तीयों को गिरफ्तार कर मार डाला गया। पौल इन्हीं
में से थे जिन्हें गिरफ्तार कर प्राण दण्ड दे दिया गया था। इतिहासकारों के अनुसार, पौल
का सिर उनके धड़ से अलग कर रोमी सैनिकों ने उन्हें मार डाला था। ख्रीस्तीय धर्म के महान
प्रेरित एवं शहीद सन्त पौलुस को भी रोम शहर का संरक्षक माना जाता है। सन्त पेत्रुस के
साथ साथ सन्त पौलुस का पर्व भी 29 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः
कठिन क्षणों में ख्रीस्तीय विश्वास के तत्वों को अक्षुण रखने तथा प्रभु ख्रीस्त के साक्षी
बनने के लिये अनवरत प्रार्थना की नितान्त आवश्यकता है।