सन्त आनथेल्म एक कारथुज़ियन भिक्षु थे जिन्हें
सन्त पापा के परमाध्यक्षीय अधिकारों के रक्षक माना जाता है। आनथेल्म का जन्म, सन् 1107
ई. में, फ्राँस के सेवॉय राज्य स्थित शामबेरी के प्रासाद में, हुआ था। पुरोहित अभिषिक्त
होने के बाद, 30 वर्ष की आयु में उन्होंने पोर्तेस में कारथुज़ियन भिक्षु समाज में प्रवेश
पाया। दो वर्ष बाद, सन् 1139 ई. में, फादर आनथेल्म को, फ्राँस के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों
में निर्मित कारथुज़ियन धर्मसमाजी भिक्षुओं के मठ "ले ग्रान्दे षार्त्रूज़" का मठाध्यक्ष
नियुक्त कर दिया गया था।
फादर आनथेल्म ने इस मठ को कारथुज़ियन धर्मसमाज का
प्रधान मठ बनाने हेतु कड़ी मेहनत की। मठ के इर्द गिर्द उन्होंने एक प्रतिरक्षक दीवार
तथा जलप्रबन्धन हेतु जलसेतुओं का भी निर्माण करवाया। मठाध्यक्ष के पद पर रहते हुए उन्होंने
कारथुज़ियन धर्मसमाज के अन्य मठों को भी एक धारा में लाने का सराहनीय प्रयास किया। इसके
लिये उन्होंने सभी मठों में समान नियमों की प्रस्तावना की तथा महिलाओं को भी मठवासी जीवन
का मौका दिया, जिनके लिये अलग मठों का निर्माण किया गया।
सन् 1152
ई. में, आनथेल्म प्रधान मठ "ले ग्रान्दे षार्त्रूज़" पुनः लौटे तथा यहाँ से उन्होंने
अपधर्मी विक्टर चतुर्थ के विरुद्ध तत्कालीन सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर तृतीय के अधिकारों
का बचाव किया। सन् 1163 ई. में, सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर तृतीय ने, आनथेल्म को, फ्राँस
स्थित बेल्ली का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
धर्माध्यक्ष पद पर रहते
आनथेल्म ने पौरोहित्य जीवन के नियमों में सुधार लाने का सराहनीय कार्य किया। उन्होंने
पुरोहितों से आग्रह किया कि वे, सांसारिक माया जाल से मुक्त होकर, प्रार्थना, ध्यान एवं
मनन चिन्तन को महत्व दें तथा कारथुज़ियन बुलाहट के अनुकूल अपना जीवन यापन करें। आनथेल्म,
अनुशासन के भी बड़े पक्के थे जिसके चलते उन्होंने स्थानीय सामंत हमबर्ट मोरियेन्ने पर
कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी। हमबर्ट ने एक पुरोहित का अपहरण कर लिया था तथा अपहृत
को मुक्त कराने का प्रयास करनेवाले एक अन्य पुरोहित की हत्या कर दी थी। हमबर्ट के कुकर्म
का पता चलते ही धर्माध्यक्ष आनथेल्म ने उन्हें काथलिक धर्म से बहिष्कृत कर दिया था। हमबर्ट
ने धर्म से बहिष्कृत किये जाने की शिकायत रोम तक की जिसके बाद उन्हें पुनः काथलिक धर्म
में प्रवेश दे दिया गया। इसका विरोध करते हुए धर्माध्यक्ष आनथेल्म ने बेल्ली का परित्याग
कर दिया। तदोपरान्त, सन्त पापा एलेक्ज़ेनडर ने आनथेल्म को हेनरी द्वितीय एवं सन्त थॉमस
बेकेट के बीच उठे विवाद को सुलझाने के लिये इंगलैण्ड जाने का आदेश दिया किन्तु, बिगड़ते
स्वास्थ्य के कारण, आनथेल्म, इस मिशन पर नहीं जा सके और बेल्ली लौट गये। यहाँ जीवन के
अन्तिम दिनों तक वे निर्धनों एवं कुष्ठ रोगियों की देखरेख करते रहे।
जब आनथेल्म
मृत्युशय्या पर पड़े थे तब सामंत हमबर्ट उनसे मिलने आये। हमबर्ट ने अपने किये पर पश्चाताप
किया तथा आनथेल्म से क्षमा मांगी। 26 जून, सन् 1178 ई. को दयावान कारथुज़ियन भिक्षु,
धर्माध्यक्ष एवं सन्त पापा के अधिकारों के रक्षक, आनथेल्म का निधन हो गया। कारथुज़ियन
धर्मसमाजी मठों में, सन् 1607 ई. से, उनका पर्व, 26 जून को, मनाया जाता है। उनके पवित्र
अवशेष, फ्राँस के बेल्ली नगर में, सुरक्षित हैं। धार्मिक कलाकृतियों में आनथेल्म को दैवीय
हाथ से प्रज्वलित एक दीपक लिये दर्शाया गया है।
चिन्तनः "धन्य है वह मनुष्य,
जो दुष्टों की सलाह नहीं मानता, पापियों के मार्ग पर नहीं चलता और अधर्मियों के साथ नहीं
बैठता, जो प्रभु का नियम-हृदय से चाहता और दिन-रात उसका मनन करता है! वह उस वृक्ष के
सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया, जो समय पर फल देता है, जिसके पत्ते कभी मुरझाते
नहीं। वह मनुष्य जो भी करता है, सफल होता है" (स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 1:1-3)।