2014-06-23 09:30:51

प्रेरक मोतीः सन्त जोसफ कफासो (1811 ई.-1860 ई.)
(23 जून)


वाटिकन सिटी, 23 जून सन् 2014:

जोसफ कफासो का जन्म, इटली के पीडमन्ट प्रान्त के कास्तेलनुओवो दा आस्ती में, एक कृषि परिवार में, सन् 1811 ई. में हुआ था। ट्यूरिन शहर में उनकी शिक्षा दीक्षा पूरी हुई और यहीं के गुरुकुल एवं विश्वविद्यालय में उन्होंने दर्शन एवं ईश शास्त्र का अध्ययन किया। सन्त फ्रांसिस को समर्पित प्रशिक्षण संस्थान से धर्मतत्वविज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि पा लेने के बाद उन्होंने गुरुकुलों में अध्यापन कार्य आरम्भ कर दिया था। विकृत रीढ़ की हड्डी के बावजूद जोसफ कफासो नैतिक धर्मशास्त्र के एक लोकप्रिय शिक्षक और शानदार व्याख्याता सिद्ध हुए जिन्होंने यानसेनीज़म का सक्रिय विरोध किया तथा कलीसियाई मामलों में राज्य की घुसपैठ को चुनौती दी।


सन् 1848 ई. में लूईजी गुआला के बाद जोसफ कफासो ही उक्त ईशशास्त्री प्रशिक्षण संस्थान के कुलपति एवं प्राचार्य नियुक्त किये गये। उनके अनुशासन, पवित्रता एवं उच्च मानकों ने युवा पुरोहितों को गहनतम ढंग से प्रभावित किया। पुरोहितों एवं गुरुकुल छात्रों के मार्गदर्शक एवं आध्यात्मिक गुरु रूप में भी उन्होंने ख़्याति प्राप्त की। इसके अलावा, क़ैदियों की वे प्रायः भेंट किया करते थे तथा उनके लिये संस्कारों का सम्पादन एवं ख्रीस्तयाग अर्पित किया करते थे। क़ैदियों की दयनीय स्थिति में सुधार लाने के भी उन्होंने कई प्रयास किये।


सन् 1827 ई. में जोसफ कफासो की मुलाकात सन्त डॉन बोस्को से हुई जिनके वे क़रीबी दोस्त बन गये। जोसफ कफासो से प्रोत्साहन पाकर ही डॉन बोस्को ने किशोरों की प्रेरिताई आरम्भ की थी। ट्यूरिन में, 23 जून, सन् 1860 ई. को जोसफ कफासो का निधन हो गया था। उनका पर्व 23 जून को मनाया जाता है। सन्त जोसफ कफासो क़ैदियों के संरक्षक सन्त हैं।


चिन्तनः "सान्त्वना देने वाली वाणी जीवन-वृक्ष है, किन्तु कपटपूर्ण जिह्वा मन को निराश करती है। मूर्ख अपने पिता के अनुशासन की उपेक्षा करता, किन्तु समझदार चेतावनी पर ध्यान देता है। धर्मी के घर में समृद्धि है, किन्तु दुष्ट की आय झंझट पैदा करती है" (सूक्ति ग्रन्थ 15:4-6)।









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