जापान के शहीद सन्त विन्सेन्ट कॉन कोरिया के मूलनिवासी
थे। सन् 1591 ई. में उन्हें युद्धबन्दी रूप में जापान लाया गया था। बाद में उन्होंने
ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था। युवावस्था में उन्होंने येसु धर्मसमाज में प्रवेश
पाया तथा आरमीना के येसु धर्मसमाजी गुरुकुल में पुरोहिताभिषेक के लिये तैयार हुए। अपने
अभिषेक के उपरान्त तीन दशकों तक उन्होंने जापान और चीन में धर्मशिक्षक का कार्य किया।
जापान में ख्रीस्तीय धर्म के उत्पीड़न के दौरान धर्मशिक्षक एवं प्रचारक फादर विन्सेन्ट
कॉन को, धन्य फ्राँसिस पाखेको के साथ, सन् 1626 ई. में गिरफ्तार कर लिया था तथा नागासाकी
में, ज़िन्दा जला दिया गया था। सन् 1867 ई. में प्रभु सेवक विन्सेन्ट कॉन को धन्य घोषित
कर वेदी का सम्मान प्रदान किया गया था। सन्त विन्सेन्ट कॉन का पर्व 20 जून को मनाया जाता
है।
चिन्तनः प्रार्थना, बाईबिल पाठ एवं मनन चिन्तन से हम भी सत्य के साक्षी
बनने का साहस प्राप्त करें।