2014-06-20 14:56:00

धर्म के नाम पर प्रताड़ना मानव विवेक एवं मर्यादा का अपमान


वाटिकन सिटी, शुक्रवार 20 जून, 2014 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार 20 जून को वाटिकन सिटी के एक सभागार में धार्मिक स्वतंत्रता पर ' लुमसा ' द्वारा आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि अन्तरराष्ट्रीय कानून और गंभीर विश्व संकट के संदर्भ में अन्तरराष्ट्रीय धार्मिक स्वंत्रता पर चिन्तन करना अति महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा अति महत्वपूर्ण हो गया है। काथलिक कलीसिया का इतिहास है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन आरंभ से करती रही है । जब वाटिकन द्वितीय महासभा सम्पन्न हुई तो इसने ' दिग्नीतातीस ह्रयूमाने ' (मानव मर्यादा) नामक एक दस्तावेज़ जारी किया जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में विस्तारपूर्वक चिन्तन किया ।

संत पापा ने कहा कि प्रत्येक मानव एक तीर्थयात्री है जो सत्य, अपने अस्तित्व और मंजिल के बारे में निरंतर खोज करता रहता है। मानव के मन-दिल में जो प्रश्न उठ रहे हैं उन्हें कदापि दबाया नहीं जा सकता है क्योंकि वे उनके ह्रदय से आते हैं। इन सवालों की प्रकृति धार्मिक है और इसके लिये धार्मिक स्वतंत्रता ज़रूरी है ताकि वे इस प्रकट कर सकें।

संत पापा ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का मानव का मौलिक अधिकर है जो उसकी मर्यादा को प्रकट करता है। इसी के सहारे मानव सत्य की खोज करता, इस पर बना रहता और इसको महत्व देता है।

उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता मात्र एक व्यक्तिगत पूजा - आराधना नहीं है। धार्मिक स्वतंत्रता है सत्य से मिलने वाले सिद्धांतों के आधार पर व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन जीना।

आज दुनिया में एक ऐसी चुनौती है जहाँ छिछली सोच नैतिकता के स्तर को कमजोर करते और सहिष्णुता के झूठे विचार के आधार पर उन लोगों को प्रताड़ना देते हैं जो सत्य को बचाने का प्रयास करते हैं।

संत पापा ने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि कानूनी, वैधानिक या अंतरराष्ट्रीय संस्थायें, मानव प्रकृति में आंतरिक रूप से निहित धार्मिक स्वतंत्रता, मानव मर्यादा और मानव की स्वतंत्रता की रक्षा करे। ऐसा करना एक स्वस्थ लोकतंत्र का सूचक है और राज्य की वैधता का एक मुख्य स्रोत हैं।

संत पापा ने कहा कि कानूनों और संविधानों में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता और मनष्य के जीवन में इनके कार्यान्वयन से आपसी सम्मान की मावना बढ़ती है और एक पूरे राष्ट्र में बिना द्विधा और विरोध के सहयोग का वातावरण विस्तृत होता है।

आज इस बात को स्वीकार करना कठिन होता है कि धार्मिक संबद्धता के कारण लोग सताये जाते हैं। यह मानव के विवेक तथा सचेत शांति की खोज करने वाले मन को सालता है। यह मानव की मर्यादा अपमान है।














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