2014-06-17 12:53:40

प्रेरक मोतीः सन्त एमिली दे वियालार (1797 ई.- 1856 ई.)
(17 जून)


वाटिकन सिटी, 17 जून सन् 2014:

एमिली दे वियालार का जन्म फ्राँस के लाँगेदोक के एक कुलीन घराने में, सन् 1797 ई. में हुआ था। पिता, बेरॉन जेम्स अगस्टीन दे वियालार तथा माता, अन्तोनियेत्ता की वे इकलौती सन्तान थीं। पिता बेरॉन जेम्स अगस्टीन दे वियालार फ्राँस के सम्राट लूईस 18 वें तथा चार्ल्स दसवें के चिकित्सक भी रहे थे।


माता अन्तोनियेत्ता के निधन के उपरान्त 15 वर्ष की आयु में एमिली को पेरिस में अपनी स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी तथा अकेले रह गये पिता के घर आकर रहना पड़ा। वहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हुई। पिता, एमिली का विवाह कराना चाहते थे जिसपर उनमें मतभेद उत्पन्न हो गये क्योंकि एमिली अनाथ बच्चों की देखरेख में अपना जीवन यापन करना चाहती थी। सन् 1832 ई. में, एमिली के नाना का निधन हो गया जो एमिली के नाम पर बहुत सी चल और अचल सम्पत्ति छोड़ गये। गायलाक में नाना ने एमिली के लिये एक विशाल भूसम्पत्ति छोड़ी थी जिसपर एमिली ने अपने तीन साथियों के साथ अनाथ बच्चों के लिये एक स्कूल खोल दिया। एमिली के साथ इस नेक काम में 12 अन्य युवतियाँ भी जुड़ गई। कुछ ही समय बाद, गायलाक के महाधर्माध्यक्ष ने इन्हें धर्मसंघी परिधान धारण करने की अनुमति दे दी। यही धर्मसंघ बाद में जाकर सन्त योसफ दर्शन को समर्पित धर्मसंघ के नाम से विख्यात हो गया। अनाथ बच्चों की देखरेख एवं शिक्षा, ज़रूरतमन्दों की मदद तथा बीमारों की सेवा धर्मसंघ का प्रमुख मिशन है।


बीमारों की देखरेख करते-करते एमिली भी बीमार हो चली थी तथा हरनिया से ग्रस्त हो गई थी। 24 अगस्त, सन् 1856 ई. को उनका निधन हो गया था। सन्त योसफ दर्शन को समर्पित धर्मसंघ की संस्थापिका, एमिली दे वियालार को, सन् 1951 ई. में सन्त घोषित किया गया था। उनका पर्व 17 जून को मनाया जाता है।


चिन्तनः "जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, वह किसी से नहीं डरता। वह कभी नहीं घबराता, क्योंकि उसे प्रभु का भरोसा है। जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, उसकी आत्मा धन्य है। वह किस पर निर्भर रहता है? उसे कौन सँभालता है? जो लोग प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, उन पर प्रभु की आँखे टिकी रहती है। प्रभु पक्की ढाल, सुदृढ़ आधार, लू से आश्रय, दोपहर की धूप से छाया है। वह ठोकर खाने से बचाता और गिरने वालों की सहायता करता है। वह आत्मा को ऊपर उठता और आँखों को ज्योति प्रदान करता है। जो प्रभु पर भरोसा रखते हैं, वह उन्हें सत्य और धर्म के मार्ग पर ले चलता है" (प्रवक्ता ग्रन्थ 34: 16 से 21)









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