वाटिकन सिटीः पवित्रभूमि में सन्त पापा फ्राँसिस की तीन दिवसीय यात्रा शुरु(पृष्ठभूमि)
वाटिकन सिटी, 24 मई सन् 2014 (सेदोक): मध्यपूर्व में अपनी पहली तीन दिवसीय यात्रा के
लिये, शनिवार, 24 मई को, रोम समयानुसार प्रातः आठ बजे वाटिकन से रवाना, विश्वव्यापी काथलिक
कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस इस तीर्थयात्रा के प्रथम पड़ाव जॉर्डन पहुँच
चुके हैं।
सन्त पापा फ्राँसिस की यह दूसरी अन्तरराष्ट्रीय प्रेरितिक यात्रा है।
विगत वर्ष 28 वें विश्व युवा दिवस पर सन्त पापा ने ब्राज़ील की यात्रा की थी।
ख्रीस्तीयों
द्वारा पारम्परिक रूप से "पवित्रभूमि" कहे जानेवाले जॉर्डन, फ़िलिस्तीनी क्षेत्र और इस्राएल
में सन्त पापा फ्राँसिस की यात्रा का उद्देश्य पवित्रभूमि में नित्य घटती ख्रीस्तीय जनता
में आशा का संचार करना तथा समस्त धर्मों के नेताओं से शांति हेतु कार्य करने की अपील
करना है।
सन्त पापा फ्राँसिस की इस तीन दिवसीय यात्रा की पूर्व सन्ध्या ईराक
के प्राधिधर्माध्यक्ष लूईस साको ने कहा, "सन्त पापा मध्यपूर्व के ख्रीस्तीयों के दर्द
को महसूस करते हैं तथा क्षेत्र में व्याप्त हत्याओं, विनाश एवं संघर्षों की पृष्ठभूमि
में उनका आगमन जीवन का सन्देश है। यह एक अपील है कि इस क्षेत्र को दमघोंटू संकट से बाहर
निकलने के लिये सभी पक्ष अपनी-अपनी स्थिति के पुनरावलोकन का साहस जुटायेँ।"
ग़ौरतलब
है कि 20 वीं शताब्दी के दौरान ख्रीस्तीयों की संख्या में नित्य गिरावट आती गई है। हाल
के वर्षों में हुए अरबी संघर्ष, सिरिया के गृहयुद्ध तथा इस्लामी चरमपंथ ने ख्रीस्तीयों
के पलायन की प्रक्रिया को और अधिक प्रश्रय दिया है। इस शताब्दी के आरम्भ में मध्य पूर्व
के ख्रीस्तीयों की संख्या 20 प्रतिशत हुआ करती थी जो इस समय मात्र 4 प्रतिशत रह गई है।
एक सदी पूर्व फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के बेथलहम शहर की जनसंख्या पूर्णतः ख्रीस्तीय थी जबकि
आज यहाँ की दो तिहाई जनता इस्लाम धर्मानुयायी है, इसी शहर में रविवार को सन्त पापा फ्राँसिस
सार्वजनिक ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे।
जैरूसालेम के काथलिक प्राधिधर्माध्यक्ष
फोआद त्वाल ने चेतावनी दी है कि यदि पवित्रभूमि में ख्रीस्तीयों के पलायन की यही प्रवृत्ति
जारी रही तो पवित्रभूमि शानदार आकर्षणों से भरा किन्तु विश्वासियों से खाली एक "आध्यात्मिक
डिजनीलैंड 'बन सकता है।
इस्राएल की यदि बात की जाये तो ख्रीस्तीयों की संख्या
में यहाँ आशाजनक वृद्धि देखी गई है किन्तु यह कहना मुश्किल है कि उनका जीवन सुगम एवं
सरल है। यहूदी चरमपंथियों के हमलों से वे जूझ रहे हैं जिनमें कई ख्रीस्तीय पुण्य स्थलों
पर अंकित भित्तिचित्रों में "अरब और ईसाइयों को मौत" तथा "येसु कचरा हैं" जैसे घृणात्मक
एवं अपकीर्तिकर वाक्यांश पढ़ने को मिलते हैं।
फिलीस्तीनी क्षेत्र में भी ख्रीस्तीयों
का जीवन आसान नहीं है। सन् 2007 में, इस्लामी कट्टरपंथियों ने गज़ा पट्टी के एकमात्र
ख्रीस्तीय पुस्तकालय को आग के हवाले कर उसके मालिक की हत्या कर दी थी। सन् 2010 में,
पश्चिमी तट पर निर्मित एकमात्र ख्रीस्तीय अनाथालय को फिलीस्तीनी अधिकारियों के दबाव के
बाद बन्द करना पड़ा था।
इस सन्दर्भ में, सन्त पापा फ्राँसिस की तीन दिवसीय यात्रा
मध्यपूर्व के अल्पसंख्यक ख्रीस्तीयों में साहस एवं आशा के संचार का सुनहरा अवसर प्रस्तुत
कर सकती तथा उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिये धैर्य एवं शक्ति प्रदान कर सकती
है।
ईराक के प्राधिधर्माध्यक्ष लूईस साको कहते हैं: "अपने मनोबल को उठाने के
लिये हम सन्त पापा से शांति के वचन सुनने के लिये आतुर हैं। मध्यपूर्व के रास्तों एवं
गलियों में इन दिनों एक ही सवाल है और वह यह कि सन्त पापा कौनसा सन्देश लेकर आ रहे हैं।"
मध्यपूर्व की ख्रीस्तीय जनता के समक्ष प्रस्तुत इन चुनौतियों के बीच शनिवार 24 मई
को सन्त पापा फ्राँसिस ने जॉर्डन के अम्मान में अपनी तीर्थयात्रा का उदघाटन किया।
जॉर्डन
के सम्राट अब्दल्लाह से मुलाकात के उपरान्त सन्त पापा अम्मान स्थित "अल हुसैन यूथ सिटी"
स्टेडियम में ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे तथा यदर्न नदी के तट के परे, येसु मसीह के बपतिस्मा
स्थल, बेथनी में सिरिया एवं ईराक के शरणार्थियों की भेंट करेंगे।