वाटिकन सिटी 09 मई सन् 2014 सन्त पाखोमियुस मिस्र के सन्त थे। उनका जन्म लगभग सन्
292 ई. में मिस्र के थेबैद में हुआ था। जब वे 21 वर्ष के थे तब उन्हें सम्राट की सेना
में भर्ती कर लिया गया था। सैनिकों के प्रति थेबैद के ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की उदारता
ने पाखोमियुस को इतना अधिक प्रभावित किया था कि सेना से पदत्याग के तुरन्त बाद उन्होंने
ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था।
स्नान संस्कार प्राप्त करने के बाद
वे मिस्र के तत्कालीन ख्रीस्तीय भिक्षुओं के साथ जा मिले। पालेमोन नामक भिक्षु के साथ
उन्होंने त्याग-तपस्या एवं पूर्ण समर्पण का जीवन आरम्भ कर दिया। बाद में पाखोमियुस को
नील नदी के किनारे ताबेनीज़ी में एक मठ की स्थापना करने की बुलाहट प्राप्त हुई।
लगभग
सन् 318 ई. में पाखोमियुस ने एक मठ की स्थापना की तथा अपने भिक्षु साथी पालेमोन के साथ
वहीं जीवन यापन करने लगे। शीघ्र ही मठ में प्रत्याशियों का आना शुरु हो गया तथा देखते
ही देखते उनकी संख्या सौ से अधिक हो गई। सामुदायिक जीवन के सिद्धान्तों पर पाखोमियुस
ने उनके जीवन यापन की व्यवस्था की। उनके द्वारा स्थापित मठ, कुछ ही समय में, नील नदी
के किनारे जीवन यापन करनेवालों के लिये आध्यात्मिकता का गढ़ बन गया। मठ में प्रवेश पाने
के इच्छुक लोगों की व्यवस्था के लिये पाखोमियुस को दस अन्य मठों की स्थापना करनी पड़ी
जिनमें दो मठ महिलाओं के लिये भी स्थापित किये गये।
सन् 346 ई. में पाखोमियुस
के निधन से पूर्व उनके द्वारा स्थापित मठों एवं आवासों में मठवासियों की संख्या लगभग
सात हज़ार हो गई थी तथा पूर्व में इन मठों का अस्तित्व 11 वीं शताब्दी तक बना रहा। वस्तुतः,
मठवासी जीवन के नियमों को लिखनेवाले सन्त पाखोमियुस पहले मठवासी भिक्षु थे। बाद में,
सन्त बेज़िल एवं सन्त बेनेडिक्ट, दोनों ने ही सन्त पाखोमियुस द्वारा निर्मित नियमों से
प्रेरणा ग्रहण की थी। अस्तु, यद्यपि सन्त अन्तोनी को ख्रीस्तीय मठवासी जीवन के पितामह
माना जाता है, मठवासी जीवन के नियमों की रचना सन्त पाखोमियुस द्वारा ही की गई थी। सन्त
पाखोमियुस का पर्व 09 मई को मनाया जाता है। 09 मई को सन्त ग्रेगोरी नाज़ियनसेन तथा सन्त
बियातुस का भी पर्व मनाया जाता है।
चिन्तनः धर्म के प्रति उदासीन वर्तमान
जगत के युवा, सन्त पाखोमियुस के जीवन से प्रेरणा पाकर, प्रभु ईश्वर में आशा की किरण का
साक्षात्कार करें।