मुंबईः सन्त घोषित दोनों सन्त पापा संशयवादी विश्व में ईश्वर का प्रसार करने में सक्षम
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मुम्बई, 29 अप्रैल सन् 2014 (एशिया न्यूज़): "सन्त घोषित दोनों सन्त पापा संशयवादी एवं
अविश्वासी विश्व में ईश्वर का प्रसार करने में सक्षम बने।" भारत के लोकतांत्रिक एवं मानवाधिकार
कार्यकर्ता तथा ग्लोबल काऊन्सल ऑफ इन्डियन क्रिस्टियन्स के अध्यक्ष साजन के. जॉर्ज ने
सन्त पापा जॉन 23 वें एवं सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय को रविवार को सन्त घोषित किये जाने
के उपलक्ष्य में एशिया न्यूज़ को लिखे एक पत्र में यह बात कही।
उन्होंने लिखा,
"मैं इन दो सन्त पापाओं में स्पष्ट रूप से आनन्द व पवित्रता के दर्शन कर सकता हूँ। अपने
जीवन द्वारा उन्होंने इस संशयवादी एवं अविश्वासी विश्व के समक्ष ईश्वर को जिस तरह प्रस्तुत
किया वैसा विरले ही कर सकते हैं। जैसा कि बेनेडिक्ट 16 वें हमें स्मरण दिलाते हैं: "सन्त
लोग मानव अस्तित्व की महान तीर्थयात्रा करने में सक्षम बने ठीक वैसे ही जैसे प्रभु येसु
ख्रीस्त ने उनसे पहले किया था, इसलिये कि वे निराश लोगों के विशाल जनसमुदाय के लिये महान
आशा से परिपूरित थे।"
श्री जॉर्ज ने प्रश्न कियाः "2 जून, सन् 1979 ई. को सम्पन्न,
उनकी मातृभूमि पोलैण्ड में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय की पहली पोलैण्ड यात्रा को कौन
भुला सकता है? जो छः दशकों तक लगभग पूरे यूरोपीय महाद्वीप को नास्तिक-साम्यवादी गला घोंट
पकड़ में बाँधनेवाली विचारधारा को उखाड़ फेंकने का अस्त्र बनी।"
उन्होंने कहा
कि सन्त पापा जॉन 23 वें तथा सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय की पवित्रता विशेष रूप से द्वितीय
वाटिकन महासभा से सम्बद्ध है। सन् 1962 में महासभा बुलाकर सन्त पापा जॉन 23 वें ने विश्व
के प्रति कलीसिया के द्वारों को खोल दिया तथा सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय इन द्वारों से
होकर विश्व की राहों पर निकले तथा अपनी प्रेरितिक यात्राओं द्वारा उन्होंने लोगों में
प्रेम एवं आशा का संचार किया।
देहली में राजघाट पर महात्मा गाँधी को श्रद्धान्जलि
अर्पित करने के उपरान्त अतिथि ग्रन्थ में लिखे सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों को
उन्होंने याद किया। उन्होंने लिखा थाः "वह संस्कृति जो एकान्तिक होने का प्रयास करती
है वह टिक नहीं पाती है।"
श्री जॉर्ज ने कहा कि दोनों नये सन्त लोकप्रिय
होने के साथ-साथ निर्धनों के लिये आशा का प्रतीक है।