2014-04-29 12:22:13

प्रेरक मोतीः सियेना की सन्त कैथरीन (1347-1380)


वाटिकन सिटी, 29 अप्रैल सन् 2014

ऊन के कपड़े बुनने और रंगनेवाले, उत्तरी इटली के एक परिवार में कैथरीन का जन्म 25 मार्च सन् 1347 ई. को हुआ था। 25 बच्चों वाले परिवार की वे सबसे नन्हीं सन्तान थी। जब कैथरीन मात्र 06 वर्ष की थी तब ही से उन्हें रहस्यमय अनुभव प्राप्त होने लगे थे जैसे कई बार उन्होंने रखवाल दूत को लोगों को सम्भालते देखा था। जब कैथरीन 16 वर्ष की थी तब वे दोमीनिकन धर्मसमाज के लोकधर्मी समुदाय से जुड़ गई थी। अपना अधिकाधिक समय वे प्रार्थना एवं मनन चिन्तन में व्यतीत किया करती थी जिसके दौरान कई बार उन्हें येसु, मरियम और सन्तों के दर्शन मिले थे।


काथलिक धर्मशास्त्रियों के अनुसार सियेना की कैथरीन अपने युग की एक सिद्धहस्त एवं महान धर्मतत्व विद्धान थी यद्यपि उन्होंने कभी भी ईशशास्त्र का औपचारिक अध्ययन नहीं किया था। सन् 1377 ई. में कैथरीन ने सन्त पापा ग्रेगोरी 11 वें को आविन्योन से रोम जाने के लिये सहमत किया था। अपने मरण के समय कैथरीन पश्चिमी कलीसिया में आये अलगाव को समाप्त करने के प्रयास में लगी थी। सन् 1375 ई. में उनके शरीर पर क्रूसित येसु के घाव उभर आये थे जो उनके मरने के बाद ही स्पष्टतया दिखाई पड़े। सियेना की कैथरीन के आध्यात्मिक गुरु थे कापुआ के धन्य रेमण्ड। सियेना की कैथरीन के पत्र तथा "एक वार्ता" शीर्षक से उनके द्वारा लिखा गया प्रबन्ध काथलिक कलीसियाई साहित्य के देदीप्यमान दस्तावेज़ों में से एक बन गये हैं।


29 अप्रैल सन् 1380 ई. को, 33 वर्ष की आयु में, रोम में सियेना की कैथरीन का निधन हो गया था। सन् 1430 ई. तक उनका पार्थिव शव भ्रष्ट और किसी भी प्रकार से विकृत नहीं हुआ था। सियेना की सन्त कैथरीन को सन् 1970 में काथलिक कलीसिया की आचार्य घोषित किया गया था। इटली के संरक्षक असीसी के सन्त फ्राँसिस के साथ सियेना की कैथरीन को भी इटली की संरक्षिका सन्त घोषित किया गया है। सियेना की कैथरीन का पर्व 29 अप्रैल को मनाया जाता है।



चिन्तनः "जो सदा जीवित रहता है, उसने सब कुछ की सृष्टि की है। वही न्यायी है और सदा ही अजेय राजा बना रहता है। कौन उसके कार्यो का पूरा वर्णन कर सकता है? कौन उसकी महिमा का अनुसन्धान कर सकता है? कौन उसके महिमामय सामर्थ्य को घोषित करेगा? कौन उसकी दयालुता का बखान करेगा? उन में न तो कुछ घटाया और न कुछ बढ़ाया जा सकता है। प्रभु के चमत्कारों की थाह कोई नहीं ले सकता" (प्रवक्ता ग्रन्थ 18: 1-5)।








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