2014-04-27 12:06:39

वाटिकन सिटीः सन्त पापा जॉन 23 वें तथा द्वितीय वाटिकन महासभा


वाटिकन सिटी, 27 अप्रैल सन् 2014 (सेदोक): 76 वर्ष की आयु में सन्त पापा जॉन 23 वें काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे किन्तु इसके बावजूद उनके जीवन एवं कार्यों ने काथलिक कलीसिया के इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठों को जोड़ा है। सन् 1962 से सन् 1965 तक जारी रही ऐतिहासिक द्वितीय वाटिकन महासभा बुलाकर सन्त पापा जॉन 23 वें ने उन लोगों को भी आश्चर्यचकित कर दिया था जिन्होंने, उनकी ढलती उम्र के कारण, उनकी भूमिका को केवल एक रखवाले सन्त पापा की भूमिका तक सीमित करना चाहा था। द्वितीय वाटिकन महासभा ने काथलिक धर्म में अभूतपूर्व परिवर्तनों की बहाली की। लैटिन के अतिरिक्त विश्व की अन्य भाषाओं को जगह मिली, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के बीच एकता पर बल दिया गया, यहूदियों के साथ काथलिक कलीसिया के सम्बन्ध सुधरे जिससे काथलिक कलीसिया में विश्व के प्रति नई सोच एवं नये दृष्टिकोण को जगह मिली।

जॉन 23 वें मानवाधिकारों के प्रबल वक्ता थे। अपने विख्यात विश्व पत्र "पाचेम इन तेर्रिस" में उन्होंने लिखा था, "मनुष्य को जीने का अधिकार है। उसे शारीरिक अखण्डता तथा अपने समुचित विकास के आवश्यक साधनों का अधिकार है, विशेष रूप से, भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, विश्राम तथा अन्ततः, आवश्यक सामाजिक सेवाओं का अधिकार है।" "पाचेम इन तेर्रिस" को पूरा करने के दो माहों बाद ही 03 जून सन् 1963 ई. को, "पापा बुओनो", "भले सन्त पापा" के नाम से विख्यात जॉन 23 वें ने इस धरती से विदा ली थी। 03 सितम्बर, सन् 2000 को सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित किया था।








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