2014-04-27 12:11:21

वाटिकन सिटीः जॉन 23 वें एवं जॉन पौल द्वितीय की जन्मभूमि के लोगों को सन्त पापा फ्राँसिस का सन्देश


वाटिकन सिटी, 27 अफ्रैल सन् 2014 (सेदोक): धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें तथा धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय की सन्त घोषणा से पूर्व 23 अप्रैल को सन्त पापा फ्राँसिस ने दो अलग –अलग सन्देश प्रेषित कर दोनों सन्त पापाओं की जन्मभूमि के लोगों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित की थी तथा आशा व्यक्त की थी कि काथलिक कलीसिया के इन दो महापुरुषों के जीवन से नागर समाज अनवरत प्रेरणा प्राप्त करता रहेगा।

इटली स्थित बेरगामो धर्मप्रान्त के लोगों को प्रेषित सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने सार्वभौमिक कलीसिया को मिले जॉन 23 वें के वरदान के लिये हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उनके पद चिन्हों पर चलने का बेरगामो के लोगों को परामर्श दिया था। उन्होंने कहा कि हालांकि आन्जेलो रॉनकाल्ली का परिवार निर्धन एवं साधारण परिवार था तथापि, वह प्रभु के प्रेम से परिपूरित था जिसने अपनी सादगी को अन्यों में बाँटना जाना।

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "निश्चित्त रूप से आज विश्व बदल गया है तथा ख्रीस्तीय समुदाय के समक्ष नवीन चुनौतियाँ हैं। तथापि, जॉन 23 वें की धरोहर आज भी सुसमाचार के आनन्द का प्रसार करने हेतु बुलाई गई कलीसिया के लिये प्रेरणा का स्रोत हैं।

उन्होंने कहा, "द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा वांछित नवीकरण ने वह रास्ता खोल दिया जिससे सुसमाचार रूपी झरने से प्रत्येक मनुष्य निर्मल एवं मीठे जल का आनन्द उठा सकें।

पोलैण्ड को सम्बोधित सन्देश में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः "जॉन पौल द्वितीय का निवेदन था कि हम भयभीत न होवें बल्कि ख्रीस्त के प्रति अपने मन के द्वारों को खोलें और यही उन्होंने सबसे पहले कियाः "समाज, संस्कृति, राजनैतिक एवं आर्थिक निकायों के द्वारों को ख्रीस्त के प्रति खोल दिया, ईश्वर से मिलनेवाली महाशक्ति से उन्होंने, प्रतीयमान रूप से, कभी न पलट सकने वाली प्रवृत्ति को भी पलट कर रख दिया। महान मानवीय करिश्मे के साथ विश्वास, प्रेम एवं प्रेरितिक साहस का साक्ष्य प्रदान करते हुए पोलिश राष्ट्र के इस अनुकरणीय सुपुत्र ने, ख्रीस्त के अनुयायी होने, कलीसिया के सदस्य होने तथा सुसमाचार का प्रचार करने से भय न खाने में सम्पूर्ण विश्व के ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की सहायता की। संक्षेप में: उन्होंने हमारी सहायता की कि हम सत्य से कभी भय न खायें क्योंकि सत्य ही स्वतंत्रता की गारंटी है।"









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