सन्त मार्क या मारकुस चार सुसमाचार लेखकों में
से एक हैं। दूसरा सुसमाचार सन्त मारकुस द्वारा लिखा गया है जिन्हें नवीन व्यवस्थान पर
कहीं कहीं योहन नाम से भी पुकारा गया है। मारकुस तथा उनकी माता मरिया दोनों ही आरम्भिक
कलीसिया के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। जैरूसालेम में उनकी माता का घर आरम्भिक ख्रीस्तीयों
का मिलन स्थल हुआ करता था।
मारकुस, प्रभु येसु मसीह द्वारा चुने गये, 70
शिष्यों में से एक हैं जिन्होंने प्रभु ख्रीस्त के स्वर्गारोहण के 19 वर्ष बाद, सन् 49
ई. में, एलेक्ज़ेनड्रिया की कलीसिया को स्थापित किया था जो आज कॉप्टिक ऑरथोडोक्स कलीसिया
होने का दावा करती है। मारकुस ही एलेक्ज़ेन्ड्रिया के प्रथम धर्माध्यक्ष थे तथा अफ्रीका
में ख्रीस्तीय धर्म का सूत्रपात करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। एलेक्ज़ेन्ड्रिया,
ख्रीस्तीय धर्म की चार मूल पीठों में से एक है।
साईप्रस द्वीप की यात्रा
में मारकुस, सन्त पौल तथा अपने चचेरे भाई सन्त बरनाबस के साथी रहे थे। रोम में वे सन्त
पेत्रुस एवं सन्त पौलुस के सहयोगी थे। सन्त पेत्रुस की संगति में ही वे विश्वास में सुदृढ़
हुए थे तथा उन्हीं की प्रेरणा से, सन् 60 ई. के आसपास, उन्होंने सुसमाचार लेखन कार्य
शुरु किया था। दूसरा सुसमाचार उन्होंने ग्रीक भाषा में लिखा ताकि ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन
करनेवाले नवख्रीस्तानुयायी प्रभु ख्रीस्त के सन्देश को समझ सकें तथा आत्मसात कर सकें।
परम्परा के अनुसार, मारकुस से रोमी शासकों ने विनती की थी कि वे सन्त पेत्रुस की शिक्षाओं
को लिपिबद्ध करें। सन्त मारकुस रचित सुसमाचार को पढ़ने पर इस बात की पुष्टि होती है।
इस प्रकार, दूसरा सुसमाचार, प्रेरितों के राजकुमार, सन्त पेत्रुस की आँखों से देखा गया,
प्रभु येसु मसीह के जीवन का वर्णन है। काथलिक कलीसिया 25 अप्रैल को सन्त मार्क या मारकुस
का पर्व मनाती है।
चिन्तनः सुसमाचार उदघोषणा में सहभागी होकर
हम भी प्रभु येसु ख्रीस्त के प्रेम सन्देश को जन जन में फैलायें तथा विश्व में न्याय
एवं शांति की स्थापना में योगदान प्रदान करें।