2014-04-19 10:35:43

रोमः रोम के ऐतिहासिक कोलोस्सेऊम पर सन्त पापा ने किया क्रूस मार्ग का नेतृत्व


रोम, 19 अप्रैल सन् 2014 (सेदोक): रोम के ऐतिहासिक स्मारक कोलोस्सेऊम पर गुड फ्रायडे के उपलक्ष्य में, शुक्रवार 18 अप्रैल को, सन्त पापा फ्राँसिस ने पवित्र क्रूस मार्ग के मुकामों पर चिन्तन एवं प्रार्थनाओं का नेतृत्व किया।


पवित्र क्रूस मार्ग के मुकामों पर चिन्तन एवं प्रार्थना के उपरान्त कोलोस्सेऊम के इर्द गिर्द एकत्र लगभग 40,000 श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर सन्त पापा फ्रांसिस ने कहा, "विजय बुराई की नहीं; प्रेम, दया एवं क्षमा की होगी।"


सन्त पापा ने कहा, "येसु के क्रूस में हमें जूदस की कटुता एवं पेत्रुस के इनकार की वेदना मिलती है, मिथ्याभिमान और खोखलापन दिखाई देता है तथा झूठे मित्रों के झूठे दावे सुनने को मिलते हैं। तथापि, इतनी अधिक बुराईयों के समक्ष हम प्रभु ईश्वर के प्रेम की विशालता का भी दर्शन करते हैं क्योंकि प्रभु हमें हमारे पापों के अनुसार नहीं परखते अपितु अपनी करुणा के वैभव के अनुसार हम पर दयादृष्टि रखते हैं।"


जूदस एवं पेत्रुस के विश्वासघात के सन्दर्भ में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहाः "उस क्रूस का बोझ परित्यक्त लोगों की रात जितना भारी था, वह प्रिय जनों की मौत जैसा भारी था, भारी इसलिये कि उसमें सब बुराईयों की कुरूपता एवं भद्दापन समाहित था।"


"तथापि, उन्होंने कहा, "वह एक महिमामय क्रूस था, एक लम्बी रात के उपरान्त उषाकाल के स्वरूप क्योंकि वह ईशप्रेम का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारी दुष्टताओं एवं हमारे विश्वासघात से कहीं अधिक महान है। मनुष्य जब स्वतः को दुष्टात्मा द्वारा निर्देशित होने देता है तब उसकी विकराल विरूपता सामने आती है और उसी को हम क्रूस में देखते हैं।"


इस वर्ष पवित्र क्रूस मार्ग के मुकामों पर चिन्तन महाधर्माध्यक्ष मरिया ब्रेगान्तीनी द्वारा तैयार किया गया था जो 2007 तक इटली के कलाब्रिया प्रान्त में प्रेरिताई करते रहे थे और जिन्हें कई बार अपराधिक-माफियाइस संगठनों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। क्रूस मार्ग के चिन्तन में उन्होंने हमारे युग की कई बुराईयों की ओर ध्यान आकर्षित कराया।


वस्तुतः, पहले मुकाम पर, येसु का खण्डन आसान आरोपों, भीड़ के सतही निर्णय तथा कपटपूर्ण पूर्वाग्रहों को दर्शाता है जो मानव मन को कठोर बनाकर नस्लवाद और बहिष्कार की संस्कृति को गले लगाता है।"


दूसरे मुकाम पर, येसु के कन्धों पर डाला गया क्रूस का बोझ उन सब बुराइयों का बोझ है जिनसे आर्थिक मन्दी और उसके गम्भीर सामाजिक परिणाम उत्पन्न हुएः रोज़गार असुरक्षा, बेरोज़गारी, बरख़ास्तगियाँ, ऐसी अर्थव्यवस्था जो लोगों की सेवा करने के बजाय उनपर निरंकुश शासन करने लगी, वित्तीय अटकलबाज़ियाँ, व्यावसायियों के बीच आत्महत्याएँ, भ्रष्टाचार, सूदख़ोरी, स्थानीय उद्योगों की समाप्ति।"


सातवें मुकाम पर, येसु में "हम उन लोगों के कटु अनुभवों की झलकियाँ पाते हैं जो किसी न किसी प्रकार बन्धक बने हैं तथा नाना प्रकार के कष्ट भोग रहे हैं। सब तरफ से घेर लिये गये हैं, दूर ढकेल दिये गये हैं और गिर पड़े हैं।


आठवें मुकाम पर, "हम उन पुरुषों के लिये विलाप करें जो अपनी सारी हिंसा महिलाओं पर ढा देते हैं। उन महिलाओं के लिये हम विलाप करें जो भयभीत हैं, शोषण का शिकार हैं तथा गुलामी में जीवन यापन कर रही हैं।"


दसवें मुकाम पर, "निर्दोष, निरावृत एवं प्रताड़ित येसु में, हम सब निर्दोष लोगों और, विशेष रूप से, नन्हें बच्चों की प्रतिष्ठा पर प्रहार होता देखते हैं।"


कोलोस्सेऊम में सम्पादित क्रूस मार्ग की प्रार्थना के अवसर पर क्रूस ढोनेवाले व्यक्तियों का चयन भी चिन्तन के अनुकूल ही किया गया था। क्रूस के पहले एवं अन्तिम मुकाम पर रोम के प्रतिधर्माध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष अगोस्तीनो वाल्लीनी ने क्रूस उठाया। शेष मुकामों पर एक मज़दूर, एक व्यावसायी नेता, दो विदेशियों, मादक पदार्थों की आसक्ति से पुनर्वास हेतु स्थापित आश्रम के दो निवासियों, दो क़ैदियों, दो बेघर व्यक्तियों, दो रोगियों, दो बच्चों, दो वयोवृद्धों, दो महिलाओं, एक परिवार, पवित्रभूमि की रखवाली करनेवाले फ्राँसिसकन धर्मसमाज के दो मठवासियों तथा एड्स रोगियों की सेवा करनेवाली दो धर्मबहनों ने बारी बारी क्रूस उठाया।



अपने सम्बोधन में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि येसु के क्रूस का स्पर्श करने पर हमें एहसास होता है कि हम ईश्वर के प्रेम के पात्र हैं। उनके क्रूस के समक्ष हम ईश सन्तान होने का अनुभव प्राप्त करते हैं।


उन्होंने प्रार्थना कीः "हे प्रभु! हमें क्रूस से पुनःरुत्थान की ओर अग्रसर कर तथा यह सिखा कि बुराई अन्तिम शब्द नहीं हो सकता अपितु अन्तिम शब्द एवं अन्तिम विजय प्रेम, करुणा एवं क्षमा की है।"


"हे ख्रीस्त! पुनः उदघोषित करने में हमारी मदद करः कल मैं ख्रीस्त के साथ क्रूसित हुआ था, आज मैं उनका उनके साथ महिमान्वित हुआ हूँ। कल में उनके साथ मर चुका था; आज मैं उनके साथ ज़िन्दा हूँ। कल, मैं उनके साथ दफ़ना दिया गया था; आज मैं उनके साथ पुनर्जीवित हो गया हूँ।"



अपने सम्बोधन के समापन पर सन्त पापा ने कहा, "अन्ततः, हम सब मिलकर रोगियों का स्मरण करें। हम सब मिलकर उन लोगों को याद करें जो क्रूस का बोझ ढोने के लिये अकेले छोड़ दिये गये हैं ताकि क्रूस के बोझ तले वे आशा की शक्ति, पुनःरुत्थान की शक्ति तथा ईश्वर के प्रेम की शक्ति का अनुभव प्राप्त करें।"









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