वाटिकन सिटी 14 अप्रैल सन् 2014 लिडवीना का जन्म हॉलेण्ड के शीदाम नगर के एक श्रमिक
परिवार में हुआ था। 16 वर्ष की आयु में स्नो स्केटिंग करते समय लिडवीना की एक पसली में
चोट आ गई थी जो कभी ठीक नहीं हो सकी और उन्होंने आजीवन शैया पकड़ ली। इसीलिये लिडवीना
को रोगों एवं रोगियों की संरक्षिका घोषित किया गया है। अपने जीवन काल में उन्होंने रोगग्रस्त
रहते हुए अपार कष्ट सहा किन्तु प्रभु को अपनी पीड़ा अर्पित करते हुए धैर्यपूर्वक जीवन
यापन करती रहीं। प्रार्थना और मनन चिन्तन में वे अपना समय व्यतीत किया करती थी जिसके
दौरान कई बार उन्हें दिव्य दर्शन प्राप्त हुए। अपनी रोगावस्था को प्रभु ईश्वर की
इच्छा मानकर स्वीकार करने वाली शीदाम की लिडवीना का निधन सन् 1433 ई. में हो गया था।
सन् 1890 ई. में सन्त पापा लियो 13 वें ने उन्हें सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान
किया था। शीदाम की सन्त लिडवीना का पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"सर्वशक्तिमान् प्रभु ईश्वर! तेरे कार्य महान और अपूर्व हैं। राष्ट्रों के राजा! तेरे
मार्ग न्याय संगत और सच्चे हैं", (प्रकाशना ग्रन्थ के विजय गीत से- 15: 3)।