2014-04-11 09:07:39

वाटिकन सिटीः सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय का जीवन और मिशन


वाटिकन सिटी, 11 अप्रैल सन् 2014 (सेदोक): ईश्वरीय करुणा को समर्पित रविवार की पूर्व सन्ध्या, शनिवार, दो अप्रैल सन् 2005 को सन्ध्या नौ बजकर 37 मिनट पर, 27 वर्षों तक विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष रहे, हमारे प्रिय मेषपाल सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने इस धरती का परित्याग कर अनन्त जीवन की ओर प्रस्थान किया था। लाखों की तादाद में रोम शहर एवं वाटिकन के इर्द गिर्द एकत्र होकर प्रार्थना में हम सब उनकी इस अन्तिम तीर्थयात्रा में शामिल हुए थे और फिर सन् 2011 की पहली मई को, प्रभु सेवक सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय की धन्य घोषणा के लिये देश विदेश से, रोम में, लगभग दस लाख विश्वासी एकत्र हुए थे जिनमें विश्व के विभिन्न देशों के 90 प्रतिनिधिमण्डल सहित यूरोप के पाँच शाही परिवार तथा 16 राष्ट्राध्यक्ष शामिल थे।


सन्त पापा जॉन पाल द्वितीय से मध्यस्थता करने के बाद फ्राँस की एक काथलिक धर्मबहन सि. मारी साईमन पियर ने अपनी पुरानी पार्किनसन्स बीमारी से रोग मुक्ति पाई थी। चिकित्सीय जाँच पड़ताल के बाद वैज्ञानिकों ने सि. की चंगाई को समझ में न आनेवाली घटना बताया। इसी चमत्कार को परमधर्मपीठीय सन्त प्रकरण परिषद ने मान्यता प्रदान की थी तथा 01 मई, सन् 2011 ई. को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने जॉन पौल द्वितीय को धन्य घोषित किया था। उन्होंने इस अवसर पर कहा था कि हालांकि सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय का निधन सबके लिये गहन दुःख का समय सिद्ध हुआ तथापि, यह कृपा का काल था, ..................


सन्त पापा फ्राँसिस, रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, 27 अप्रैल को, ईश्वरीय करुणा को समर्पित रविवार के दिन धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें तथा धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय को सन्त घोषित कर काथलिक कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान करेंगे। श्रोताओ, विगत सप्ताह के प्रसारण में हमने सन्त पापा जॉन 23 वें के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित कराया था। आज के प्रसारण में लीजिये प्रस्तुत है 27 वर्षों तक सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया की बागडोर सम्भालने वाले सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के जीवन एवं मिशन की कुछ झलकियाँ।


कारोल वोईतिला नाम से पोलैण्ड के वादोविट्स नगर में 18 मई सन् 1920 को आदरणीय सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय का जन्म हुआ था। 16 अक्तूबर 1978 से दो अप्रैल सन् 2005 तक आप सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे। लगभग चार शताब्दियों बाद कलीसिया के परमाध्यक्ष के पद पर नियुक्त होनेवाले आप पहले ग़ैरइताली सन्त पापा थे। कलीसिया के परमाध्यक्ष रूप में अपने नाम की घोषणा के बाद उन्होंने विनीत हृदय से स्वीकार किया था कि वे ठीक से इताली भाषा नहीं बोल पाते थे किन्तु उन्हें विश्वास था कि उनको सुननेवाले उनकी ग़लतियों को सुधारने में उनकी मदद करेंगे। ............


सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय का परमाध्यक्षीय काल कलीसियाई इतिहास के सर्वाधिक दीर्घ कालों में से एक था। उनके परमाध्यक्षीय काल के दौरान ही, विभिन्न आयामों के अन्तर्गत, विश्व अनेक अभूतपूर्व परिवर्तनों का साक्षी बना। इसीलिये उनका नाम 20 सदी के सर्वाधिक प्रभावशाली नेताओं की सूची में शामिल हो गया है। इस महापुरुष को पहले अपनी मातृभूमि और फिर सम्पूर्ण पूर्वी यूरोप में साम्यवाद को समाप्त करने का श्रेय दिया जाता है। साम्यवाद को ख़त्म करने के अतिरिक्त आपने कड़े शब्दों में पूंजीवाद की ज्यादतियों की भी निंदा की थी। यहूदी धर्म, इस्लाम धर्म, पूर्वी ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीयों तथा एंगलिकन कलीसिया के साथ काथलिक कलीसिया के सम्बन्धों को सुधारने में भी सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने बेजोड़ भूमिका निभाई थी। अपने अनेक प्रवचनों, उपदेशों एवं सन्देशों द्वारा उन्होंने लोगों में साहस का संचार किया तथा उन्हें अन्यों के प्रति उदार बनने के लिये प्रोत्साहन दिया। उनके द्वारा उच्चरित ये शब्द सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हो गये हैं: ..........."डरिये मत, अपने मन के द्वारों को खुला रखें, ख्रीस्त के प्रति उदार बनें, उन्हें ग्रहण करने के लिये अपने मन के द्वारों को खोलें, राष्ट्रों, आर्थिक निकायों एवं राजनैतिक निकायों के बीच खड़ी दीवारों को ध्वस्त करें तथा संस्कृति, सभ्यता एवं विकास के विशाल मैदानों की पनर्खोज करने से न डरें।


सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के परमाध्यक्षीय काल के दौरान ही काथलिक कलीसिया ने युवा प्रेरिताई पर विशेष बल दिया। उन्होंने युवाओं को कलीसिया का भविष्य निरूपित कर उनमें ख्रीस्त के साक्षी बनने की चेतना जाग्रत की। सन् 1995 ई. में मनीला में आयोजित विश्व युवा दिवस के अवसर पर उन्होंने युवाओं से कहा था, "ख्रीस्त आपको भेज रहे हैं, जैसे 2000 वर्ष पूर्व मानवजाति मुक्तिदाता ख्रीस्त की प्रतीक्षा कर रही थी वैसे ही वह आज भी कर रही है, उसके समक्ष आपको ख्रीस्त के सत्य और प्रकाश के साक्षी बनना है।"


जीवन के आरम्भिक क्षण से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक मानव प्रतिष्ठा का सम्मान करनेवाली काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा को अक्षुण रखने के लिये जॉन पौल द्वितीय तथाकथित प्रगतिवादियों की आलोचना का भी शिकार बने। एक ओर द्वितीय वाटिकन महासभा के सुधारों को प्रोत्साहित करने के लिये वे परिवर्तन के इच्छुक अधिकांश ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की प्रशंसा के पात्र बने तो दूसरी ओर परम्परावादियों के कटाक्षों का भी उन्हें निशाना बनना पड़ा। इन आलोचनाओं की परवाह किये बिना सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय अथक मिशनरी उत्साह एवं अदभुत ऊर्जा के साथ, उदार हृदय से, अपनी परमाध्यक्षीय प्रेरिताई का निर्वाह करते रहे। अपने किसी भी पूर्वाधिकारी से अधिक वे ईश प्रजा से मिले, राष्ट्राध्यक्षों, राजनीतिज्ञों तथा विभिन्न कार्यक्षेत्रों के विश्व नेताओं से बातचीत कर उन्होंने विश्व को न्याय एवं शांति से परिपूर्ण स्थल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटेन में अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने जिन शब्दों का उच्चार किया था वे युगों तक शान्ति निर्माण का नुस्खा बने रहेंगे, ........... "जहाँ कहीं भी बलशाली कमज़ोर पर हावी होता है, जहाँ कहीं भी निरंकुश शासक और सत्ताधारी प्रजा का शोषण करते हैं वहाँ शान्ति निर्माण धूमिल हो जाता है, शान्ति का मन्दिर धराशायी हो जाता है।"


अपने शान्ति मिशन के तहत ही सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपने परमाध्यक्षीय काल के दौरान विश्व के 129 राष्ट्रों में प्रेरितिक यात्राएँ कीं। अपनी मातृभाषा पोलिश के अतिरिक्त सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय इताली, फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी, स्पानी, पुर्तगाली, यूक्रेनी, रूसी, क्रोएशियाई, एस्पेरान्तो, प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे।

पवित्रता में विकसित अपनी तीर्थयात्रा में नित्य आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान 1,340 प्रभु सेवकों को धन्य एवं 483 धन्य आत्माओं को सन्त घोषित किया था ताकि हमारे युग के स्त्री-पुरुषों के समक्ष पवित्रता के आदर्श प्रस्तुत किये जा सके तथा युगयुगान्तर तक मानवजाति के प्रेरणा स्रोत बने रहें। उनके पूर्ववर्ती सन्त पापा पाँच शताब्दियों में भी इस संख्या को पार नहीं कर पाये थे। कार्डिनलमण्डल का भी आपने विस्तार किया तथा कुल मिलाकर 232 कार्डिनलों की नियुक्ति की। 15 विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभाएँ बुलाई तथा अनेक धर्मप्रान्तों की रचना की जिनमें पूर्वी यूरोप के धर्मप्रान्त उल्लेखनीय हैं।


सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के नेतृत्व में ही काथलिक कलीसिया ने तृतीय सहस्राब्दि की देहलीज़ को पार किया तथा येसु मसीह की दो हज़ारवीं जयन्ती मनाई। "नवीन सहस्राब्दि की ओर" शीर्षक से प्रकाशित सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के प्रेरितिक पत्र के साथ ही काथलिक कलीसिया ने 21 वीं सदी के नवयुग में प्रवेश किया।


काथलिक विश्वास के अद्वितीय रखवाले, सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय विवेक, प्रज्ञा एवं साहस के साथ काथलिक, धर्मतत्ववैज्ञानिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक धर्मसिद्धान्तों को प्रोत्साहित करने के लिये सदैव समर्पित रहे। उनके द्वारा रचित 14 विश्व पत्र, 15 प्रेरितिक उदबोधन, 11 प्रेरितिक संविधान, 45 प्रेरितिक पत्र युग-युग तक सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया एवं विश्व के समस्त ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के लिये मार्गदर्शन का स्रोत बने रहेंगे।









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